BPSE 145
BPSE 145 Free Assignment In Hindi
BPSE 145 Free Assignment In Hindi jan 2022
प्रश्न 1. एक क्षेत्र के रूप में पूर्वोत्तर भारत के गठन की चर्चा करें।
उत्तर- आज़ादी से पूर्व यह क्षेत्र मुख्य रूप से असम एवं बंगाल क्षेत्र में विभाजित था। विभाजन के पश्चात् तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के उत्तरी एवं पूर्वी क्षेत्र में असम एवं कुछ अन्य क्षेत्रों से अलग होकर धीरे-धीरे सात राज्यों का गठन हुआ।
इन राज्यों के उद्भव ,में प्रमुख रूप से राजनीतिक एवं स्थानीय समुदायों ने अहम भूमिका निभाई। स्थानीय समुदाय जैसे- नगाओं की मांग पर नगालैंड राज्य का गठन किया गया।
उत्तर-पूर्व क्षेत्र में इन सात राज्यों के अतिरिक्त सिक्किम को भी शामिल किया जाता है। यद्यपि सिक्किम मूल रूप से भारत का हिस्सा नहीं था
लेकिन वर्ष 1975 में सिक्किम की इच्छा के अनुरूप इसको भारत में शामिल कर लिया गया। इसके उत्तर में चीन एवं भूटान, पूर्व की ओर म्यांमार तथा दक्षिण में बांग्लादेश अवस्थित है।
इसकी अवस्थिति भू-सामरिक एवं आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भारत के अन्य हिस्सों से यह क्षेत्र सिलीगुड़ी गलियारे के माध्यम से ही प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है जिससे कनेक्टिविटी इस क्षेत्र के लिये प्रमुख समस्या है।
साथ ही यह क्षेत्र लंबे समय से उपेक्षा का शिकार रहा है तथा यहाँ विकास से जुड़ी गतिविधियाँ भी सीमित ही रही हैं। इसके अतिरिक्त भौगोलिक स्थिति तथा स्थानीय जनजातीय संस्कृति एवं अलगाववाद भी इसके विकास में बाधक बना रहा।BPSE 145 Free Assignment In Hindi
पूर्वोत्तर का महत्त्व-आर्थिक विकास का असमान दृष्टिकोण तथा किसी विशेष क्षेत्र की पिछड़ी स्थिति उस देश की आर्थिक संवृद्धि में बाधक बन सकती है।
इसके अतिरिक्त भारत के पश्चिम में पाकिस्तान की उपस्थिति मध्य-पूर्व में भारतीय हितों के प्रसार को बाधित करती है। इसकी पूर्ति भारत पूर्व के देशों से कर सकता है।
इसी संदर्भ में भारत ने 90 के दशक में ‘लुक ईस्ट’ नीति को बल दिया था जिसे बदल कर अब मौजूदा सरकार ने ‘एक्ट ईस्ट’ कर दिया है। भारत के लिये न सिर्फ यह पूर्व के देशों से जुड़ने का एक द्वार है बल्कि इसके माध्यम से इस क्षेत्र के विकास पर भी बल दिया जा सकता है।
भारत ने बांग्लादेश, भूटान तथा म्यांमार के साथ कुछ समझौतों को अंजाम दिया है जिसके माध्यम से यह क्षेत्र आर्थिक संवद्धि की ओर बढ़ सकता है।
प्रायः ऐसा माना जाता है कि कोई क्षेत्र यदि आर्थिक रूप से पिछड़ा है एवं उसका सीमित विकास ही हो सका है तो ऐसे स्थान पर उग्रवाद एवं अन्य समस्याओं को बल मिलता है।
इसी कारण स्वायत्तता एवं विकासात्मक मुद्दों के चलते यह क्षेत्र स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही से ही उग्रवाद एवं अलगाववाद से ग्रसित रहा है। विभिन्न सरकारी प्रयासों के चलते इस क्षेत्र में शांति स्थापित हो सकी है। मणिपुर के कुछ क्षेत्र अब भी उग्रवादी गतिविधियों से ग्रस्त हैं।BPSE 145 Free Assignment In Hindi
पूर्वोत्तर में कानून व्यवस्था सुधरने के पश्चात् इस क्षेत्र में अवसंरचनात्मक सुधार पर बल दिया जा रहा है, अवसंरचना निर्माण के बाद यह क्षेत्र भी आर्थिक विकास की दौड़ में शामिल हो सकेगा।
पूर्वोत्तर क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों के दृष्टिकोण से समृद्ध है। पेट्रोलियम एवं खनिज संसाधनों की उपलब्धता के साथ-साथ इस क्षेत्र का पर्यावरण पर्यटन के लिये अनुकूल माहौल उपलब्ध करता है।
यदि उपर्युक्त संसाधनों के दोहन हेतु अवसंरचना का विकास किया जाता है तो यह क्षेत्र आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बनने की भी क्षमता रखता है।
चुनौतियाँ-यद्यपि पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्य (सिक्किम को छोड़कर) भौगोलिक रूप से एक-दूसरे के साथ संबद्ध हैं फिर भी इस क्षेत्र में बहुत अधिक में विविधता मौजूद है।
ब्रह्मपुत्र एवं बराक घाटी (जहाँ बड़ी संख्या में लोग निवास करते हैं) के अलावा अन्य क्षेत्रों में लोगों की आबादी बहुत कम है।
अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य में जनसंख्या घनत्व 13 है, तो असम में यह घनत्व 300 के करीब है। भारत में निवास करने वाले 635 जनजातीय समुदायों में से 200 इसी क्षेत्र में निवास करते हैं। इन जनजातियों की भाषा एवं बोलियाँ तथा सांस्कृतिक विश्वास अलग अलग हैं।BPSE 145 Free Assignment In Hindi
इसके अतिरिक्त ये समुदाय अपनी संस्कृति के प्रति तीव्र लगाव रखते हैं जिससे विभिन्न प्रकार की समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या पर्याप्त अवसंरचना की कमी को माना जा सकता है।
इस क्षेत्र में ऊर्जा, सड़क, रेल, नदी मार्गों एवं हवाई अड्डों का उचित विकास नही हो सकता है। बड़ी संख्या में नदियों एवं पहाड़ी क्षेत्र के कारण अवसंरचना निर्माण में न सिर्फ अधिक समय लगता है बल्कि अधिक खर्चीला भी है।
इस क्षेत्र के किसानों को (न सिर्फ देश के बाहर बल्कि देश के भीतर भी) उपयुक्त बाज़ार उपलब्ध नहीं हो पाने के कारण यहाँ कृषक गतिविधियाँ भी सीमित रूप से ही विकसित हो सकी हैं।
जिस प्रकार देश के अन्य भागों में शासन में सुधार की आवश्यकता है वैसे ही इस क्षेत्र में भी सुधार किया जाना ज़रूरी है।
किसी भी योजना को लागू करने और उसकी सफलता के लिये आवश्यक है कि स्थानीय स्तर पर, जैसे कि पंचायत एवं ग्रामीण स्तर से राज्य स्तर तक अभिशासन में सुधार किया जाए।
उपाय-ज़मीनी स्तर पर नियोजन के माध्यम से लोगों को सशक्त करना, इसके लिये शासन और विकास में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना आवश्यक है।
इससे लोगों की ज़रूरतों को समझने में आसानी होगी तथा उनके लिये उपयोगी कार्यकम बनाना भी आसान होगा जिससे इस क्षेत्र में विकास का एक माहौल तैयार हो सकेगा।
कृषिगत उत्पादकता को सुधार कर तथा गैर-कृषिगत रोज़गार के अवसरों का निर्माण कर ग्रामीण क्षेत्र के विकास पर ध्यान देना।BPSE 145 Free Assignment In Hindi
पूर्वोत्तर क्षेत्र में मौजूद संसाधनों पर आधारित विकास को बढ़ावा देना। यह क्षेत्र नदी तंत्र से घिरा हुआ एवं पहाड़ी होने के कारण जलविद्युत की अत्यधिक क्षमता रखता है।
इसके अतिरिक्त पर्यटन, कृषि से जुड़े प्रसंस्करण उद्योग, कीटपालन तथा इस क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों पर आधारित अवसंरचना में निवेश आदि पर भी बल देना आवश्यक है।
नवाचार एवं कौशल शिक्षा के माध्यम से उद्यमिता के लिये माहौल तैयार करना तथा योजना एवं कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन के लिये क्षमता निर्माण करना।
सड़क, रेलवे, अंतर्देशीय जलमार्ग, वायु परिवहन सेवाओं, जल विद्युत, कोयला, जैव-ईंधन और संचार नेटवर्क के माध्यम से बुनियादी ढाँचे को संवर्द्धित करना।
सरकार द्वारा पूर्वोत्तर के मणिपुर को म्याँमार होते हुए थाईलैंड से जोड़ने की त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना पर पहले ही निर्माण कार्य किया जा रहा है।
भारत के अन्य भागों एवं पूर्वोत्तर के मध्य बांग्लादेश उपस्थित है, इससे प्रत्यक्ष कनेक्टिविटी प्रदान करने में बाधा उत्पन्न होती है।BPSE 145 Free Assignment In Hindi
भारत द्वारा बांग्लादेश से सड़क, रेलवे तथा अंतर्देशीय जलमार्ग के माध्यम से ट्रांज़िट की सुविधा प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। कालादान परियोजना के ज़रिये भी भारत, म्यांमार के सितवे बंदरगाह से पूर्वोत्तर को जोड़ने पर कार्य कर रहा है।
इस प्रकार की कनेक्टिविटी परियोजनाएँ न सिर्फ इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देंगी बल्कि पूर्वोत्तर के समग्र विकास में भी सहायक होंगी। उपर्युक्त कार्यों को बल देने के लिये अत्यधिक निवेश की आवश्यकता होगी,
इस निवेश की पूर्ति सरकार बजट के माध्यम से तथा निजी निवेश को आकर्षित करके कर सकती है। आरंभिक स्तर पर यह कोष केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा दिया जाना चाहिये।
इस निवेश से जब इस क्षेत्र की स्थिति में सुधार प्रदर्शित होने लगेगा तब निजी क्षेत्र भी इस ओर आकर्षित होगा।

प्रश्न 2. भारतीय संविधान की छठीं अनुसूची की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर– संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों के लिए अलग व्यवस्था करती है. अनुच्छेद 244A को 22वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1969 के माध्यम से संविधान में जोड़ा गया था
यह संसद को असम के कुछ आदिवासी क्षेत्रों और स्थानीय विधानमंडल या मंत्रिपरिषद या दोनों के लिए एक स्वायत्त राज्य स्थापित करने का अधिकार देता है.
इसे सबसे पहले 1949 में संविधान सभा द्वारा पारित किया गया था. यह जनजातीय आबादी के अधिकारों की रक्षा के लिए स्वायत्त जिला परिषदों (ADCs) को अधिनियमित करने की शक्ति प्रदान करता है. एडीसी वे निकाय हैं जो जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं BPSE 145 Free Assignment In Hindi
इन निकायों को राज्य विधानसभा के भीतर स्वायत्तता दी गई है. जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने केंद्र सरकार को भारतीय संविधान की 6 वीं अनुसूची के तहत लद्दाख को एक आदिवासी क्षेत्र घोषित करने की सिफारिश की है।
जनजातीय मंत्रालय ने 24 जनवरी, 2020 को केंद्र सरकार को यह प्रस्ताव भेजा है। उत्तर पूर्व भारत के चार राज्यों को छठी अनुसूची के तहत आदिवासी का दर्जा मिला। वे राज्य गृह मंत्रालय के अधीन आते हैं।
हालांकि, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम को पांचवीं अनुसूची के तहत आदिवासी क्षेत्र घोषित किया गया है। ये राज्य जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अंतर्गत आते हैं।
जनजातीय कार्य मंत्रालय का प्रस्ताव-एक सरकारी समाचार पोर्टल पर प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने गृह मंत्रालय को लद्दाख को छठी अनुसूची का दर्जा प्रदान करने के लिए एक प्रस्ताव भेजा है।
प्रस्ताव में कहा गया था कि जनजातीय मंत्रालय लद्दाख की विरासत को समद्ध और संरक्षित करने के लिए सभी आवश्यकताओं की देखभाल करेगा। भारतीय संविधान की 6 वीं अनुसूची क्या है?
संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों के लिए अलग व्यवस्था करती है। अनुच्छेद 244 ए को 22 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1969 के माध्यम से संविधान में जोड़ा गया। BPSE 145 Free Assignment In Hindi
यह संसद को असम के कुछ आदिवासी क्षेत्रों और स्थानीय विधानमंडल या मंत्रिपरिषद या दोनों के लिए एक स्वायत्त राज्य स्थापित करने का अधिकार देता है। यह 1949 में संविधान सभा द्वारा पारित किया गया था।
यह जनजातीय आबादी के अधिकारों की रक्षा के लिए स्वायत्त जिला परिषदों (ADCS) के अधिनियमित करने की शक्ति प्रदान करता है। एडीसी वे निकाय हैं जो जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन निकायों को राज्य विधानसभा के भीतर स्वायत्तता दी गई है।
छठी अनुसूची के लाभ-लद्दाख के लोग आदिवासी का दर्जा प्राप्त करना चाहते हैं ताकि देश के अन्य हिस्सों से लोग वहां न आकर बसें। यह उनकी जनसांख्यिकीय मान्यता की भी रक्षा करेगा।
छठी अनुसूची भी भूमि पर मूल निवासियों के विशेषाधिकार की रक्षा करेगी। छठी अनुसूची आदिवासी समुदायों को काफी स्वायत्तता प्रदान करती है।
जिला परिषद और क्षेत्रीय परिषद को कानून बनाने की वास्तविक शक्ति प्राप्त है। ये निकाय क्षेत्र में विकास, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, सड़कों और नियामक शक्तियों के लिए योजनाओं की लागत को पूरा करने के लिए भारत के समेकित कोष से धन को मंजूरी दे सकते हैं।
. संविधान की छठी अनुसूची चार पूर्वोत्तर राज्यों- असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में अनुच्छेद 244 के अनुरूप व्यवहार करती है।
. राज्यपाल को जिले के क्षेत्रों को बढ़ाने या घटाने अथवा स्वायत्त ज़िलों के नाम में परिवर्तन कर सकने की शक्ति प्राप्त है।
यद्यपि संघ कार्यकारी का शक्तियाँ पाँचवीं अनुसूची में शामिल क्षेत्रों के प्रशासन तक विस्तारित हैं, लेकिन छठी अनुसूची में शामिल क्षेत्र राज्य के कार्यकारी प्राधिकार के अंतर्गत आते हैं।
. संसद या राज्य विधानमंडल के अधिनियम स्वायत्त ज़िलों और स्वायत्त क्षेत्रों पर लागू नहीं होते हैं अथवा निर्दिष्ट संशोधनों और अपवादों के साथ ही लागू होते हैं।BPSE 145 Free Assignment In Hindi
. इन स्वायत्त परिषदों को व्यापक दीवानी और आपराधिक न्यायिक शक्तियाँ भी प्रदान की गई हैं, जैसे वे ग्राम न्यायालय आदि की स्थापना कर सकते हैं। हालाँकि इन परिषदों का न्यायिक क्षेत्राधिकार संबंधित उच्च न्यायालय के न्यायिक क्षेत्राधिकार के अधीन होता है।
. संविधान की छठी अनुसूची में 4 राज्यों के 10 स्वायत्त ज़िला परिषद शामिल हैं। जो इस प्रकार हैं
असम: बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद, कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद और दीमा हसाओ स्वायत्त ज़िला परिषद।
मेघालय: गारो हिल्स स्वायत्त ज़िला परिषद, जयंतिया हिल्स स्वायत्त ज़िला परिषद और खासी हिल्स स्वायत्त ज़िला परिषद।
त्रिपुरा: त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त ज़िला परिषद।
मिज़ोरम: चकमा स्वायत्त ज़िला परिषद, लाई स्वायत्त ज़िला परिषद, मारा स्वायत्त ज़िला परिषद।
सत्रीय कार्य – II
प्रश्न 3. पूर्वोत्तर भारत में पलयान के महत्व की चर्चा कीजिए।
उत्तर- भारत के पूर्वोत्तर भाग का इतिहास प्रवास का इतिहास रहा है। लिखित इतिहास से पहले, प्रवाह मुख्य रूप से पूर्वी दिशा से था, ताकि अधिकांश जातीयताएं जो आज ऑटोचथॉन होने का दावा करती हैं, वे भारत के पूर्व में, ज्यादातर दक्षिण पूर्व एशिया में अपने पूर्वजों का पता लगा सकती हैं।
इसके बाद, पश्चिमी दिशा के लोग भी आने लगे और असम की जाति हिंदू अक्समिया-बोलने वाली आबादी जैसे समुदाय अक्सर अपने मूल को मुख्य भूमि भारत (गोस्वामी 2007) के कुछ हिस्सों में खोजते हैं।
चाय बागानों में रोजगार के अवसर, कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता और अन्य संबंधित कारकों (बंद्योपाध्याय और चक्रवर्ती 1999) के कारण इस क्षेत्र में प्रवास का लगातार प्रवाह रहा है।
अध्ययनों से यह भी पता चला है कि इन राज्यों में आंतरिक प्रवास और अंतर्राष्ट्रीय प्रवास दोनों में प्रवासन का अधिक प्रवाह हो रहा है। मुखर्जी (1982) ने पूर्वोत्तर राज्यों में पर्याप्त प्रवासन पाया है।
2011 की जनगणना में पूर्वोत्तर में 14.9 मिलियन प्रवासी दर्ज किए गए, जो इस क्षेत्र की कुल आबादी का लगभग 33% है। BPSE 145 Free Assignment In Hindi
यह 2001 की जनगणना से लगभग 5.0 मिलियन प्रवासियों की वृद्धि दर्शाता है। पूर्वोत्तर भारत अतीत में कम जनसंख्या घनत्व वाला सीमांत क्षेत्र होने के कारण प्रवासियों का महत्वपूर्ण रिसीवर रहा है।
तालिका 1 जन्म स्थान और अंतिम निवास स्थान की परिभाषा के आधार पर पर्वोत्तर राज्यों में प्रवास का परिमाण देती है। दो परिभाषाओं के आधार पर प्रवासन में बहत अधिक अंतर नहीं है।
जन्म स्थान के आधार पर प्रवासन का अपेक्षित कम आकलन क्षेत्र और साथ ही पूरे देश में नहीं देखा जा सका। देश में लगभग 45 करोड़ लोग, जो कुल जनसंख्या का 37 प्रतिशत है, प्रवासी हैं। यह देखा गया है कि देश के औसत की तुलना में पूर्वोत्तर क्षेत्र में गतिशीलता कम है।
लगभग 37% देश के औसत की तुलना में इस क्षेत्र के लगभग एक-तिहाई लोग प्रवासी हैं। अरुणाचल प्रदेश एकमात्र ऐसा राज्य है जहां देश के औसत से अधिक प्रवासियों का प्रतिशत लगभग 45% आबादी प्रवासियों के रूप में है।
सबसे कम गतिशीलता मणिपुर, मेघालय और नागालैंड राज्यों में देखी जाती है, जहां लगभग एकचौथाई प्रवासी हैं। देश में लगभग 60% प्रवासी एक ही जिले के भीतर चले गए हैं।
पूर्वोत्तर राज्यों में, नागालैंड और मिजोरम अरुणाचल प्रदेश में गणना के जिले के भीतर आने वाले प्रवासियों का अनुपात कम है।BPSE 145 Free Assignment In Hindi
मणिपुर, मेघालय और असम राज्यों में, लगभग दो-तिहाई प्रवासी गणना के जिले के भीतर चले गए हैं। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मेघालय के तीन राज्य अन्य राज्यों से प्रवासियों के एक बड़े प्रवाह का संकेत देते हैं।
अंतरराज्यीय प्रवासियों का योगदान अरुणाचल प्रदेश में 22% है, जबकि मणिपुर में यह मात्र 3.0% है। असम एकमात्र ऐसा राज्य है जहां देश के बाकी हिस्सों से अंतरराज्यीय प्रवास का हिस्सा क्षेत्र के भीतर अंतरराज्यीय प्रवास के हिस्से से अधिक है।
यह देखा गया है कि पूर्वोत्तर भारत में अंतर्राष्ट्रीय प्रवास इस क्षेत्र के कुल प्रवासियों का लगभग 2.5% है। त्रिपुरा राज्य में अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों का हिस्सा कुल प्रवासियों का 17% है, जो अंतरराज्यीय प्रवासियों के हिस्से से बहुत अधिक है।
लिंगानुपात की गणना प्रति 1000 पुरुष प्रवासियों पर महिला प्रवासियों की संख्या के रूप में की जाती है। राष्ट्रीय आंकड़ा प्रवास की धाराओं के बावजूद प्रवास के नारीकरण को दर्शाता है।
देश में प्रत्येक 1000 पुरुष प्रवासियों के लिए 2120 महिला प्रवासी हैं, जिनकी गणना राज्य के भीतर प्रवास में अधिक प्रभुत्व है।
देश के औसत की तुलना में पूर्वोत्तर क्षेत्र में महिला प्रवास का प्रभुत्व कम है। असम, मणिपुर और त्रिपुरा राज्य में महिला प्रवासियों के प्रभुत्व ने इस क्षेत्र में प्रवासी लिंगानुपात को 1681 तक खींच लिया।
इस क्षेत्र के सभी राज्यों में, यह देखा गया है कि पुरुष प्रवासी क्षेत्र के बाहर के राज्यों से अंतरराज्यीय प्रवास के प्रवाह पर हावी हैं।BPSE 145 Free Assignment In Hindi
शेष भारत से अंतरराज्यीय प्रवास का लिंगानुपात प्रति 1000 पुरुष प्रवासियों पर 866 महिला प्रवासी है, असम में सबसे अधिक 949 और मिजोरम में सबसे कम 494 है।
मेघालय और नागालैंड राज्यों में महिला प्रवासियों की तुलना में अधिक पुरुष प्रवासी हैं। 874 के प्रवासी लिंगानुपात के साथ मेघालय ने केवल क्षेत्र के भीतर से अंतरराज्यीय प्रवासियों के बीच महिला प्रवासियों का प्रभुत्व दिखाया। इसके विपरीत, नागालैंड में केवल अंतर्जिला प्रवासियों में महिला प्रवासी अधिक हैं।
प्रश्न 4. पूर्वोत्तर भारत में एक क्षेत्रीय दल की विशेषताओं को रेखांकित कीजिए।
उत्तर- नागा पीपुल्स फ्रंट-नागालैंड को पूर्वोत्तर क्षेत्र के अन्य राज्यों की तुलना में बहुत पहले राज्य का दर्जा मिला था।
पहले नागा हिल डिस्ट्रिक्ट (एनएचडी) के रूप में जाना जाता था, यह असम के संयुक्त राज्य का एक हिस्सा था और इसे राज्यपाल के प्रत्यक्ष प्रशासन के अधीन रखा गया था।
हालाँकि, 1960 के दशक के दौरान प्रचलित राजनीति की नाजुक और अस्थिर प्रकृति ने गहरे सामाजिक-राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों को जन्म दिया, जिसके लिए अंततः राज्य का दर्जा देना आवश्यक हो गया।
परिणामस्वरूप, पार्टी की गतिविधियाँ और अन्य जमीनी स्तर की लोकतांत्रिक संस्थाओं की पैठ धीरे-धीरे जड़ें जमाने लगी।BPSE 145 Free Assignment In Hindi
हालांकि, नागा नेताओं के कुछ असंतुष्ट वर्गों ने एक अलग और संप्रभु नागालैंड के गठन की अपनी महत्वाकांक्षा को जारी रखा। पहले राज्य विधान सभा चुनाव में, बमुश्किल दो राजनीतिक दलों ने चुनाव लड़ा, अर्थात नेशनल पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी।
15 बाद के चुनावों में, राजनीतिक दलों की संख्या में वृद्धि हुई और चुनावों का राजनीतिकरण किया जाने लगा। 1987 तक, कई क्षेत्रीय राजनीतिक दल थे जो राज्य विधान सभा चुनाव के लिए आए और लड़े।
नागालैंड नेशनलिस्ट ऑर्गनाइजेशन (एनएनओ), यूनाइटेड फ्रंट (यूएफ), यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ), नेशनल कन्वेंशन ऑफ नागालैंड (एनसीएन), नागा नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (एनएनडीपी), नागा पीपल का उल्लेख किया जा सकता है की पार्टी (एनपीपी), आदि कुछ क्षेत्रीय राजनीतिक दल थे जिन्होंने बाद के चुनावों में अपना नामकरण बदल दिया,
जबकि कुछ अन्य का किसी अन्य राजनीतिक दल में विलय हो गया। नागालैंड को राज्य का दर्जा मिलने के तुरंत बाद राजनीतिक दलों ने अपनी गतिविधियां शुरू कर दी।
नागालैंड की विधान सभा के लिए पहला आम चुनाव 1964 में हआ जिसमें आश्चर्यजनक रूप से कोई भी राजनीतिक दल चुनाव के लिए आगे नहीं आया।
राजनीतिक दलों के बीच कोई मुकाबला नहीं था। राष्ट्रीय दलों या उस मामले के लिए किसी भी अन्य क्षेत्रीय दलों ने चुनावी राजनीति में भाग लेने के लिए अपनी रुचि और इच्छा नहीं दिखाई।
पहले चुनाव के समय इसकी 40 सीटें थीं, जिसे बाद में 1974 में विधानसभा के तीसरे आम चुनाव में 60 सीटों तक बढ़ा दिया गया था। चूंकि, पहले चुनाव में कोई राजनीतिक दल नहीं लड़ा था, सभी 40 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने कब्जा कर लिया था।BPSE 145 Free Assignment In Hindi
यह उल्लेख किया जा सकता है कि 40 आवंटित विधानसभा सीटों के लिए कुल मिलाकर 73 उम्मीदवारों ने मतदान किया, जो राज्य की नई कार्यशील लोकतांत्रिक राजनीति में एक कमजोर और कम प्रतिस्पर्धात्मकता को दर्शाता है।
प्रश्न 5. पूर्वोत्तर भारत में स्वायत्तता आंदोलनों के मुख्य लक्षणों की पहचान कीजिए।
उत्तर स्वायत्ता आंदोलन किसी क्षेत्र के लोगों का सामूहिक प्रक्रिर्या है जो कि संघीय इकाइयों केन्द्र, राज्य एवं स्थानीय शासन के पुनर्गठन की बात करता है। ताकि लोग स्वयं को अपने कार्यो में व्यवस्त रख सकें और स्वायत्ता का लाभ उठा सकें।
स्वायत्ता कई प्रकार की होती है, सांस्कृतिक, जातीय, आर्थिक, राजनीतिक इत्यादि। जो क्षेत्र स्वायत्ता की माँग उठा रहे हैं उनमें इन मुद्दों पर कानून बनाने की जरूरत होती है।
संघीय ढाँचे में स्वायत्ता की अवधारणा के कई अर्थ हैं: किसी राज्य से अलग राज्य बनाना, या संघीय संबंधों को पुनः व्यवस्थित करना इत्यादि । स्वायत्ता को प्रायः आत्म-निर्णय के रूप में देखा जाता है।
हालांकि स्वनिणर्य और स्वायत्ता कभी-कभी एक दूसरे के प्रयास के रूप में इस्तेमाल की जाती है, भारतीय परिप्रेक्ष्य में उनके अलग-अलग माने है। आत्म-निर्णय अक्सर मौजूदा संप्रभु राज्य से बाहर एक संप्रभु की स्थापना को संदर्भित करता है।BPSE 145 Free Assignment In Hindi
इसे अलगाव के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें एक देश का एक क्षेत्र अलग-अलग और प्रभुसत्ता संपन्न राज्य बनाना चाहता है। भारत का संविधान किसी भी क्षेत्र को प्रभुसत्ता संपन्न राज्य की स्थापना को मान्यता नहीं देता हैं।
किसी राज्य के क्षेत्र में क्षेत्र और राज्य के बीच संघीय संबंधों की पुनर्व्यवस्था के लिये जो आंदोलन चलाया जो रहा हो, उसे स्वायत्ता आंदोलन कहा जाता है।
स्वायत्ता आंदोलन किसी क्षेत्र में सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक या राजनीतिक मामलों में अपने स्वायत्ता प्राप्त करने के लिए सामूहिक आंदोलन होते हैं।
ऐसी स्वायत्ता का प्रयास ऐसे राज्य और क्षेत्रों के बीच संघीय इकाइयों के बीच संबंधों के पुनर्विन्यास के लिए किया जाता है, जो स्वायत्ता चाहते हैं। जो क्षेत्र स्वायत्ता चाहते हैं उनकी स्वायत्ता की माँग हमेशा प्राथमिक माँग नहीं होती है।
कई मामलों में उनकी प्राथमिकता अलग राज्य बनाने की माँग होती है लेकिन आंदोलन के बढ़ते क्रम में नये निर्माण की माँग समाप्त हो जाती है और ऐसे आन्दोलनों को प्राथमिकता एक स्वायत्ता प्राप्त करने में बदल जाती है।
भारत में स्वायत्ता के आंदोलनों के प्रमुख उदाहरणों में बोडोलैण्ड, आंदोलन और कार्बी, डिमासा काचारी आंदोलन शामिल हैं।
असम राज्य के अंतर्गत मेघालय का एक स्वायत्त राज्य के रूप में मेघालय का (1971-72) राज्य के अंदर राज्य’ बनना एक अभूतपूर्व उदाहरण था।
यद्यपि, खासी, जेतिया और गारो पहाड़ी इलाकों के लोगों ने अलग राज्य की माँग की थी लेकिन केन्द्र सरकार ने अलग राज्य के बजाय (1971-72 में) स्वायत्त राज्य प्रदान किया और 1972 में स्वायत्त राज्य को अलग राज्य मेघालय में तब्दील कर दिया गया था।
स्वायत्ता आंदोलन की शुरुआत सामान्यतः मुखर लोगों के द्वारा की जाती है। इसका प्रमुख कारण था उनके क्षेत्र में लोग उस समय की सरकार के खिलाफ थे।BPSE 145 Free Assignment In Hindi
स्वायत्ता आंदोलन के पीछे मुख्य कारण किसी क्षेत्र के लोगों का यह मानना होता है कि उनके खिलाफ सामाजिक आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक आधार पर दूसरे क्षेत्रों या सरकार द्वारा भेदभाव किया जाता है।
उनका मानना होता है कि स्वायत्ता मिलने के बाद उनके साथ हो रहे भेदभाव को दूर किया जा सकता है और उनका विकास किया जा सकता है।
1) ये उन क्षेत्रों में उठाये जाते हैं जहाँ पर लोगों के साथ भेदभाव होता है। ये भेदभाव आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक तौर पर संसाधनयुक्त क्षेत्रों द्वारा किया जाता है।
2) इन मांगों को समाज के मुखर तबकों द्वारा उठाया जाता है जैसे मध्यम वर्ग, छात्र, नागरिक समाज के संगठन एवं राजनैतिक दल]
3) स्वायत्ता की माँग करने वालों का आरोप है कि उनका क्षेत्र “आंतरिक उपनिवेश” बन गया है, विशेषकर विकसित क्षेत्रों का उपनिवेश’ उनके प्राकृतिक संसाधनों का शोषण बाहरी लोगों द्वारा दिया जाता है तथा वे उन्हें अपने संसाधनों के प्रयोग बदले कोई भरना रोयल्टी भी नहीं मिलती।
4) उनके क्षेत्र को राज्य के राजनीतिक संस्थानों में उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता है तथा उनकी सहमति के बिना निर्माण लिये जाते हैं।
5) उनकी भाषा एवं संस्कृति को उचित पहचान नहीं दी जाती हैं तथा कई मामलों में उनके ऊपर भाषा थोपी जाती है।
6) स्वायत्ता आंदोलनों का कुछ राजनैतिक संदर्भ भी होता है।
सत्रीय कार्य – III
प्रश्न 6. स्वायत्त जिला परिषदों के महत्व की चर्चा कीजिए।
उत्तर- जनवरी 2019 में केंद्रीय मंत्रिमंडल दवारा पूर्वोत्तर राज्यों- असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा में जिला परिषदों की स्वायत्तता तथा वित्तीय संसाधनों एवं कार्यकारी शक्तियों में वद्धि के लिये के लिये अनुच्छेद 280 तथा संविधान की छठी अनुसूची में संशोधन को मंजूरी दी।
मेघालय के तीन स्वायत्त ज़िला परिषदों (Autonomous District Councils- ADCS) ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes- NCST) से आग्रह किया कि वह राज्य सरकार को उसके मामलों में हस्तक्षेप न करने निर्देश दे।
तीनों परिषदों ने 15वें वित्त आयोग को इस बात से भी अवगत कराया कि उनके द्वारा एकत्रित राजस्व से उनके दिन-प्रतिदिन की प्रशासनिक गतिविधियों और प्राथमिक कर्तव्यों (जैसा कि छठी अनुसूची में परिकल्पित है) की पूर्ति ही कठिनाई से हो पाती है तथा विकास कार्यों के लिये उनके पास कोई धनराशि शेष नहीं बचती।
पृष्ठभूमि भारत की जनसंख्या में 100 मिलियन जनजातीय आबादी शामिल है जिन्हें संवैधानिक रूप से दो अलग-अलग उपबंधों- पाँचवीं अनुसूची और छठी अनुसूची, के माध्यम से संबोधित किया गया है।
पाँचवीं और छठी अनुसूचियों पर संविधान सभा में 5-7 सितंबर, 1949 को चर्चा की गई थी उसके बाद फिर इसे पारित किया गया था। BPSE 145 Free Assignment In Hindi
पाँचवीं अनुसूची नौ राज्यों में विद्यमान जनजातियों के बहुमत पर लागू होती है जबकि छठी अनुसूची चीन और म्यांमार की सीमा से लगे उत्तर-पूर्वी राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों को दायरे में लेती है।
छठी अनुसूची जनजातीय समुदायों को पर्याप्त स्वायत्तता प्रदान करती है। असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिज़ोरम छठी अनुसूची के तहत ही स्वायत्त क्षेत्र हैं।
छठी अनुसूची के अंतर्गत ज़िला परिषद (District Council) और क्षेत्रीय परिषद (Regional Council) विधान निर्माण की वास्तविक शक्ति रखते हैं; विभिन्न विधायी विषयों पर उनका मंतव्य महत्त्वपूर्ण होता है;
विकास, स्वास्थ्य-देखभाल, शिक्षा, सड़क संबंधी योजनाओं के लिये भारत की संचित निधि से अनुदान प्राप्त करते हैं; और राज्य नियंत्रण के प्रति एक विनियामक शक्ति रखते हैं।
हस्तानांतरण (Devolution), विसंकेंद्रण (Deconcentration) एवं शक्ति-वितरण (Divestment) का अधिदेश उनके रीति-रिवाजों के संरक्षण, बेहतर आर्थिक विकास और इन सबसे महत्त्वपूर्ण उनकी नृजातीय सुरक्षा को सुनिश्चित करता है।
यद्यपि छठी अनुसूची की अपनी कमियाँ भी हैं जैसे- विधि-व्यवस्था का भंग होना, चुनावों का आयोजन न होना, सशक्तीकरण के बजाय बहिर्वेशन (Extrapolation) की स्थिति तथा राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में जनजातियों को बहुत आवश्यक सुरक्षा प्रदान प्राप्त नहीं हो पाती और वे सरकारी वित्तपोषण पर निर्भर बने रहते हैं। BPSE 145 Free Assignment In Hindi
प्रश्न 7. पूर्वोत्तर भारत में नये सामाजिक आंदोलनों में महिलाओं की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर- भारत विविध संस्कृतियों और मान्यताओं वाला विशाल देश है। अपने आप में लंबा इतिहास समेटे हुए। मगर जब भी देश के इतिहास और संस्कृति की बात होती है,
आमतौर पर सारा विमर्श उत्तर, उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत तक सिमटकर रह जाता है। ज्यादा से ज्यादा सुदूर दक्षिण को शामिल कर लिया जाता है।
पूर्वात्तर के प्रदेशों जो भारतीय भू-भाग के वैसे ही हिस्से हैं, जैसे बाकी प्रदेश के योगदान को आमतौर पर बिसरा दिया जाता है।
इसका एक कारण तो उनकी विशिष्ट जनजातीय संस्कृति है। हम प्रायः मान लेते हैं कि जनजातीय प्रभाव के कारण पूर्वाःत्तर के समाज आधुनिकताबोध से कटे हुए हैं।
जबकि सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक हलचलों से यह क्षेत्र वैसा ही प्रभावित रहा है, जैसा बाकी देश। कुछ मामलों में तो यह दूसरों से विशिष्ट है। जैसे 1904 और 1939 में मणिपुर में हुए दो ‘नुपी-लेन'(महिला-युद्ध) की मिसाल पूरे देश में अन्यत्र नहीं मिलती।
वे महिलाओं द्वारा अपने बल पर चलाए गए एकदम कामयाब जनांदोलन थे, जिन्होंने औपनिवेशिक भारतीय सरकार के संरक्षण में पल रही भ्रष्ट राजसत्ता को झुकने के लिए विवश कर दिया था।
उनके फलस्वरूप सामाजिक सुधारों का सिलसिला आरंभ हुआ। संवैधानिक सुधारों की राह प्रशस्त हुई।
हाल ही में, मिज़ो महिला आंदोलन उनकी जीत के करीब पहुंच गया जब राज्य विधि आयोग मिज़ो विवाह विधेयक 2013, मिज़ो विरासत विधेयक 2013 और मिज़ो तलाक विधेयक 2013 की समीक्षा करने की अंतिम प्रक्रिया में था। BPSE 145 Free Assignment In Hindi
यह मिजो हमीछे इंसुइहखम पावल (एमएचआईपी) के लंबे संघर्ष का परिणाम था, जो पी संगखुमी (एमएचआईपी के पूर्व अध्यक्ष) के तहत एक महिला संगठन है।
एमएचआईपी नेतृत्व में मिजो विवाह कानूनों में बदलाव की मांग कर रहा था, विशेष रूप से वे मिजो विवाहों में मिजो दुल्हन मूल्य को समाप्त करना चाहते थे। उन्होंने कहा, “अगर बाल-विवाह, पर्दा आदि जैसे सदियों पुराने रिवाज अब अवैध हो सकते हैं,
तो मिजोरम में दुल्हन की कीमत को अवैध क्यों नहीं घोषित किया जा सकता है?” वे महिलाओं के खिलाफ हिंसा, कार्यस्थलों में भेदभाव के खिलाफ भी लड़ते हैं, और राजनीतिक व्यवस्था में 33% महिलाओं के आरक्षण के लिए अभियान चलाते हैं। नागा मदर्स एसोसिएशन वर्तमान में एक महिला शांति बनाने वाला संगठन है।
यह 1984 में स्थापित किया गया था। एनएमए द्वारा उठाया गया सबसे स्पष्ट आंदोलन ‘शेड नो मोर ब्लड’ (जो उनका विषय भी है) आंदोलन था जो नशीली दवाओं के दुरुपयोग और शराब पर प्रतिबंध लगाने वाले अभियानों द्वारा लैंगिक हिंसा और मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ था।
वे नागालैंड के भूमिगत समूहों और सरकार के बीच संघर्ष विराम को पोषित करके और उसे बनाए रखते हुए शांति बनाए रखने और हिंसा पर रोक लगाने के लिए भी प्रशिक्षण देते हैं।
मीरा पैबी के साथ, वे सरकार से AFSPA को वापस लेने और अपने राज्य में शांति बनाए रखने और सशस्त्र बलों को आतंकवादियों के नाम पर निर्दोष ग्रामीणों को मारने के लिए रोकने की मांग करते हैं।
AFSPA (सशस्त्र बल विशेष सुरक्षा अधिनियम) के खिलाफ इरोम शर्मिला के आंदोलन को अब लगभग 16 साल हो गए हैं, BPSE 145 Free Assignment In Hindi
हालांकि हाल ही में उन्होंने मणिपुर में ओकर्म इबिबो के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए अपना अनशन तोड़ दिया था। उन्होंने नवंबर 2000 में अपना अनशन शुरू किया जब उन्होंने असम राइफल्स के जवानों को अफस्पा के तहत किशोर छात्रों सहित 10 लोगों की हत्या करते देखा।
उसे ‘आत्महत्या के प्रयास’ के लिए धारा 309 के तहत कई बार गिरफ्तार किया गया था, जिसका उसने हमेशा खंडन किया और उसे जबरदस्ती खिलाया गया।
उसने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उसे जीवन जीने की सभी उम्मीदें हैं लेकिन वह चाहती है कि केंद्र उसके राज्य से अफस्पा को वापस ले।
एमनेस्टी इंटरनेशनल 2015 द्वारा उन्हें अंतरात्मा की कैदी घोषित किया गया था। अपने लंबे आंदोलन को दिशा देने के लिए, उन्होंने हाल ही में मणिपुर चुनावों में भाग लेने का फैसला किया, जिसमें वह दुखद रूप से हार गईं, अपने 16 साल के उपवास के बाद केवल 90 वोट हासिल किए।
प्रश्न 8. नृजातीयता और पहचान की राजनीति के बीच संबंधों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- राजनीतिक पहचान राजनीतिक जुड़ाव से जुड़ी है, हम उम्मीद कर सकते हैं कि राजनीतिक पहचान को प्रभावित करने वाले कारक अल्पसंख्यकों और बहमत के लिए तुलनीय हों, जैसा कि पहले के शोध में राजनीतिक जुड़ाव के लिए दिखाया गया है (सैंडर्स एट अल।
क्योंकि महिलाओं को ‘संस्कृति के वाहक’ (शीतकालीन 2016) के रूप में माना जाता है और अल्पसंख्यक जातीय ‘मार्कर’ (वारिकू 2005) के प्रति अधिक संवेदनशील प्रतीत होते हैं। शिक्षा को जातीय पहचान से नकारात्मक रूप से जोड़ा गया है और राजनीतिक पहचान ।
राजनीतिक जुड़ाव (फिशर-न्यूमैन 2014; स्टैंड 2014; नंदी और प्लैट 2015) से सकारात्मक रूप से जोड़ा गया है, क्योंकि शैक्षिक प्राप्ति अल्पसंख्यकों के लिए पहचान का एक वैकल्पिक और मूल्यवान स्रोत प्रदान करती है, और जागरूकता बढ़ाती है और बोर्ड भर में राजनीति के साथ जुड़ाव।
बहुसंख्यक जातीय पहचान, इसके विपरीत, अतीत में अक्सर जातीय पहचान के अध्ययन में सामान्यीकृत या उपेक्षित हो गए हैं, जिसमें जातीयता को अल्पसंख्यकों (फेंटन और मान 2011) के संरक्षण के रूप में देखा जाता है। BPSE 145 Free Assignment In Hindi
हालाँकि, अनुसंधान का एक बढ़ता हुआ निकाय अब बहुसंख्यक या मूल आबादी की जातीय पहचान से स्पष्ट रूप से पूछताछ करता है। यह साहित्य बताता है कि बहुसंख्यकों के बीच जातीय पहचान अल्पसंख्यकों की तुलना में कमजोर है,
लेकिन यह भी प्रासंगिक रूप से अधिक विशिष्ट है (नंदी और प्लाट 2015, 2016)। यानी यह विशिष्ट स्थानीय, लौकिक और राजनीतिक 1परिस्थितियों (केनी 2014) के तहत राहत में आता है।
समकालीन अंग्रेजी पहचान अभिव्यक्ति को एक विशिष्ट ‘राष्ट्र की भावना’ से जोड़ा गया है (बॉन्ड 2017; लेड्डी-ओवेन 2014; कुमार 2003); और पूरे यूरोप में, हम देखते हैं कि राष्ट्रीय पहचानों की फिर से कल्पना की जा रही है।
राष्ट्रीयता के नागरिक निर्माण (स्मिथ 1991) के बजाय, राष्ट्रीय पहचान की जातीय जड़ें (विमर और ग्लिक शिलर 2003)ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी जैसे देशों में संबद्ध आंदोलनों के भीतर बढ़ती अभिव्यक्ति पा रही हैं।
नीदरलैंड और यूके, सामंजस्य और एकजुटता (रीस्केंस और राइट 2013) और अप्रवासी विरोधी पूर्वाग्रह (पेहरसन, विग्नोल्स, और ब्राउन 2009) के लिए इसी निहितार्थ के साथ।
सांस्कृतिक संघर्ष के बारे में हंटिंगटन (1993) के दावों को बहसंस्कृतिवाद से राजनीतिक वापसी में प्रतिध्वनि मिली है (कूपमैन्स 2013); और सार्वजनिक दृष्टिकोण ने बहुसांस्कृतिक समाजों (जैसे डफी और फ्रेरे-स्मिथ 2014) में साझा पहचान की असंगति में विश्वास दिखाया है।
प्रश्न 9. “क्राउन कालोनी” क्या थी? चर्चा कीजिए।
उत्तर- एक क्राउन कॉलोनी या शाही उपनिवेश ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर यूनाइटेड किंगडम (क्राउन) की सरकार दवारा प्रशासित एक उपनिवेश था। आमतौर पर एक गवर्नर होता था,
जिसे यूके के सम्राट द्वारा होम (यूके) सरकार की सलाह पर स्थानीय परिषद की सहायता से या उसके बिना नियुक्त किया जाता था।BPSE 145 Free Assignment In Hindi
कुछ मामलों में यह परिषद दो में विभाजित थी: एक कार्यकारी परिषद और एक विधान परिषद, और प्रिवी परिषद के समान थी जो सम्राट को सलाह देती है।
कार्यकारी परिषदों के सदस्य गवर्नरों द्वारा नियुक्त किए जाते थे, और क्राउन कॉलोनियों में रहने वाले ब्रिटिश नागरिकों का या तो स्थानीय सरकार में कोई प्रतिनिधित्व नहीं था, या सीमित प्रतिनिधित्व था।
कई क्राउन कॉलोनियों में यह सीमित प्रतिनिधित्व समय के साथ बढ़ता गया। चूंकि ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स ने कभी भी किसी भी उपनिवेश के लिए सीटों को शामिल नहीं किया है,
ब्रिटिश प्रजा या क्राउन कॉलोनियों में रहने वाले नागरिकों के लिए संप्रभ सरकार में कोई प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व नहीं था।
समय के साथ क्राउन कालोनियों का प्रशासन बदल गया और 1800 के दशक में कुछ शाही राज्यपालों, स्वशासी उपनिवेशों की शक्ति में ढील के साथ बन गए, जिसके भीतर संप्रभ राज्य (यूके सरकार) ने शासन के अधिकांश स्थानीय आंतरिक मामलों के लिए कानून प्रत्यायोजित किया।
राज्यपाल की सहमति से निर्वाचित विधानसभाओं। निर्वाचित विधानसभाओं की शुरुआत 1619 में वर्जीनिया की कॉलोनी के हाउस ऑफ बर्गेसेस और 1620 में बरमूडा की संसद की असेंबली में हुई थी।
कुछ क्राउन कॉलोनियों में सदियों से, अधिक स्वतंत्र अधिकार दिया गया था।
(जैसे फ़ॉकलैंड द्वीप समूह) या स्वशासी (जैसे बरमूडा) का नाम बदलकर “ब्रिटिश आश्रित क्षेत्र” कर दिया गया। फ़ॉकलैंड आइलैंडर्स और बाद में जिब्राल्टेरियन के अपवाद) ने पाया कि उनकी “यूनाइटेड किंगडम और कॉलोनियों की नागरिकता” रातोंरात ब्रिटिश आश्रित क्षेत्रों की नागरिकता में बदल गई थी,
ब्रिटिश नागरिकता का एक रूप जिसने उनके कुछ अधिकारों को छीन लिया, जिसमें निवास का अधिकार भी शामिल था। और यूनाइटेड किंगडम में काम करते हैं।
2002 से उपनिवेशों को आधिकारिक तौर पर ब्रिटिश प्रवासी क्षेत्र के रूप में जाना जाता है।
प्रश्न 10. सिक्किम पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर– सिखिम भारत के पूर्वोत्तर भाग में स्थित एक पर्वतीय राज्य है। अंगूठे के आकार का यह राज्य पश्चिम में नेपाल, उत्तर तथा पूर्व में चीनी तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र तथा दक्षिण-पूर्व में भूटान से लगा हुआ है।
भारत का पश्चिम बंगाल(बङ्गाल) राज्य इसके दक्षिण में है।अंग्रेजी, गोर्खा खस भाषा, लेप्चा, भूटिया, लिम्ब तथा हिंदी आधिकारिक भाषाएँ हैं।BPSE 145 Free Assignment In Hindi
हिन्दु तथा बज्रयान बौद्ध धर्म सिक्किम के प्रमुख धर्म हैं। गंगटोक(गङ्गटोक) राजधानी तथा सबसे बड़ा शहर है। सिक्किम नाम ग्याल राजतन्त्र द्वारा शासित एक स्वतन्त्र राज्य था,
परन्तु प्रशासनिक समस्यायों के चलते तथा भारत में विलय और जनमत के कारण 1975 में एक जनमत-संग्रह(सङ्ग्रह) के साथ भारत में इसका विलय हो गया।
उसी जनमत संग्रह(सङ्ग्रह) के पश्चात राजतन्त्र का अन्त तथा भारतीय संविधान की नियम-प्रणाली के ढाँचे में प्रजातन्त्र का उदय हुआ।
सिक्किम की जनसंख्या भारत के राज्यों में न्यूनतम तथा क्षेत्रफल गोआ के पश्चात न्यूनतम है। अपने छोटे आकार के बावजूद सिक्किम भौगोलिक दृष्टि से काफी विविधतापूर्ण है।
कञ्चनजञ्गा जो कि दुनिया की तीसरी सबसे ऊँची चोटी है, सिक्किम के उत्तरी पश्चिमी भाग में नेपाल की सीमा पर है और इस पर्वत चोटी को प्रदेश के कई भागो से आसानी से देखा जा सकता है।
साफ सुथरा होना, प्राकृतिक सुन्दरता पुची एवम् राजनीतिक स्थिरता आदि विशेषताओं के कारण सिक्किम भारत में पर्यटन का प्रमुख केन्द्र है। भारत ने 1947 में स्वाधीनता प्राप्त की।
इसके बाद पूरे देश में सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में अलग-अलग रियासतों का भारत में विलय किया गया। BPSE 145 Free Assignment In Hindi
इसी क्रम में 6 अप्रैल, 1975 की सुबह सिक्किम के चोग्याल को अपने राजमहल के द्वार के बाहर भारतीय सैनिकों के ट्रकों की आवाज़ सुनाई दी।भारतीय सेना ने राजमहल को चारों दिशा से घेर रखा था।
सेना ने राजमहल पर उपस्थित सैनिकों पर तुरंत नियंत्रण प्राप्त किया और सिक्किम की स्वतंत्रता की समाप्ति हो गयी। इसके बाद चोग्याल को उनके महल में ही नज़रबंद कर दिया गया।
इसके बाद सिक्किम में जनमत संग्रह कराया गया।जनमत संग्रह में 97.5 प्रतिशत लोगों ने भारत के साथ जाने का मत रखा।
जिसके बाद सिक्किम को भारत का 22वां राज्य बनाने का 36वा संविधान संशोधन विधेयक 23 अप्रैल, 1975 को लोकसभा में पेश किया गया
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