BHDS 184
BHDS 184 Free Assignment In Hindi
BHDS 184 Free Assignment In Hindi Jan 2022
प्रश्न 1) भारत में रेडियो प्रसारण के इतिहास पर चर्चा कीजिए।
उत्तर 1) स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व रेडियो का स्वरूप
अमेरिका और ब्रिटेन में ब्रॉडकार्सिंग कॉरिशन के गठन के बाद भारत में भी इस दिशा में सोचा जाने लगा।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व भारत में रेडियो से पहला प्रसारण 23 जुलाई 1927 में बंबई से शुरू हुआ। भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड इर्विन ने बंबई में इस केन्द्र का उद्घाटन किया।
उसी वर्ष 26 अगस्त 1927 को कलकत्ता केन्द्र काभी उद्घाटन बंगाल के गवर्नर सर स्टेनलेजेक्सन ने किया।
बंबई प्रसारण केन्द्र का उद्घाटन भाषण देते हुए लार्ड इरविन ने कहा कि प्रसारण के लिए भारत में विशेष संभावनाएँ हैं। क्षेत्र का विस्तार और उसकी दूरियाँ इस देश को प्रसारण के लिए विशेष रूप से उपयुक्त बना देती हैं।
मनोरंजन और शिक्षा दोनों ही दृष्टियों से इसकी संभावनाएँ अधिक है यद्यपि इस समय हम शायद उनकी सीमा का अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं। इरविन का यह कथन सही निकला और भारत में प्रसारण के विस्तार की संभावनाएँ दिखाई देने लगी थीं।BHDS 184 Free Assignment In Hindi
हालांकि भारत में रेडियो का प्रसारण 1927 के पूर्व प्राइवेट कम्पनियों और क्लबों द्वारा शुरू हो गया था। शुरू-शुरू में टाइम्स ऑफ इंडिया और डाक-तार विभाग ने आपस में मिल-जुलकर बंबई से प्रसारण का कार्य शुरू किया था।
इन्हीं दिनों मद्रास प्रेसीडेन्सी रेडियो क्लब ने भी हल्के फुल्के मनोरंजन कार्यक्रमों का प्रसारण शुरू कर दिया था। इस रेडियो क्लब का प्रसारण 21 जुलाई 1924 से शुरू हुआ था।
क्लब के सदस्यों ने आपस में पैसा इकट्ठा करके एक किलोवॉट का एक ट्रांरामिटर भी लगाया था। लेकिन आर्थिक कठिनाइयों के कारण यह रेडियो क्लब अधिक समय तक प्रसारण कार्य जारी नहीं रख सका। सन 1926 में यह क्लब बंद हो गया था।
लेकिन प्रसारण में रुचि रखने वालों की संख्या में वृद्धि होने लगी थी। रेडियो स्टेशन चालू करने के लिए क्या प्रक्रियाएँ अपनाई जाएँ इस संबंध में रेडियो निर्माताओं और प्रेस के प्रतिनिधियों ने सरकार से बातचीत करना शुरू कर दिया।
मार्च 1926 में इंडिया ब्रॉडकास्टिंग कम्पनी बनाई गई ओर कम्पनी ने 13 सितम्बर 1926 को प्रसारण करने का लाइसेंस सरकार से प्राप्त कर लिया। इस कम्पनी मे बंबई और कलकत्ता में डेढ-डेढ किलोवॉट क्षमता वाले टांसमिटर लगाए।
इन केन्द्रों से लगभग 55 किलोमीटर के दायरे में कार्यक्रम आसानी से सुने जा सकते थे। इस तरह भारत में प्रसारण की शुरूआत हई।BHDS 184 Free Assignment In Hindi
लेकिन आर्थिक संकट के कारण यह कम्पनी घाटे में चलने लगी थी। कम्पनी की आय लाइसेंसों से प्राप्त होती थी। लाइसेंसों से कम्पनी को इतनी आय नहीं होती थी कि वह अपना सारा काम सुचारु रूप से चला सके।
कम्पनी ट्रांसमिटर काखची. रखरखाव. कार्यक्रमों का खर्चा वहन नहीं कर पा रही थी। इसलिए कम्पनी ने सरकार से अनुरोध किया कि वह आर्थिक स्थिति को सुधारने का प्रयास करे।
भारत सरकार ने कम्पनी को अपने अधीन कर लिया और इसका नाम इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस कर दिया नाम बदल जाने पर आर्थिक दृष्टि से कोई सुधार नहीं आया।
सरकार ने 9 अक्टूबर 1931 को इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस को बंद करने का निर्णय लिया तो इसका भारी विरोध हुआ।
जनमानस की रुचि ओर आक्रोश को देखते हुए इस सर्विस को चाल रखने का निर्णय लिया गया और सरकार ने कम्पनी के विकास के लिए 40 लाख रुपये दिए। श्री पी.जी. एडमन्दस को कम्पनी के कन्ट्रोलर ऑफ ब्रांडिकास्टिंग के पद पर नियुक्त किया गया।
दिल्ली में रेडियो स्टेशन की स्थापना के लिए सरकार ने जनवरी 1934 में ढाई लाख रुपए स्वीकृत किए। सरकार ने आय में वृद्धि के लिए ग्रामोफोन रिकार्ड तथा रेडियो सेट पर आयात शुल्क में 50 प्रतिशत की वृद्धि कर दी।
परिणामस्वरूप ‘ब्रॉडकास्टिंग सर्विस की आय में दुगुनी वृद्धि हो गई। इसके अलावा सरकार को ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरिशन की प्रसारण प्रणाली के बारे में भी पर्याप्त जानकारी प्राप्त हो चुकी थी।
अतः दिल्ली में रेडियो स्टेशन खोलने के लिए ब्रिटिश ब्रॉडकारस्टिंग कॉरिशन के एक वरिष्ठ अधिकारी श्री लायनेल फील्डन को सन 1935 में अगस्त माह में भारत भेजा गया।
उन्होंने 30 अगस्त 1935 को कनन् ट्रोलर ऑफ ब्रॉडकास्टिंग का पद सम्भाला।।
भारत सरकार ने उनके लिए एक अलग ऑफिस खोला।
उस समय यह ऑफिस उद्योग और श्रम विभाग के अधीन रखा गया था। भारत में रेडियो स्टेशन की शुरूआत के लिए फील्डन ने बी.बी.सी. के अनुसंधान विभाग के प्रमुख श्री एच.एल. किर्की की सेवाओं की मांग की।
किर्की ने भारत आकर पहले तो विभिन्न स्थानों का दौरा किया और बाद में एक योजना का प्रारूप प्रस्तुत किया जिसमें पूरे देश में मध्यम तरंग (गीडियम वेब) के ट्रांसगिटर लगाने का सुझाव दिया; अगस्त 1936 में बी.बी.सी. के श्री सी.डब्ल्यू गोयडर भारत आए और उन्होंने चीफ इंजीनियर के रूप में पदभार संभाला।
उन्होंने यह अनुभव किया कि ट्रांसमिटरों के निर्माण के लिए जो धनराशि निर्धारित की गई है. वह पर्याप्त नहीं है। इसलिए उन्होंने मीडियम वेब तथा शॉटवेब की मिली-जुली सेवा प्रदान करने का प्रस्ताव किया।
फील्डन के भारत आगमन के बाद प्रसारण के विकास में कार्य आरम्भ होने लगा और एक जनवरी 1936 को दिल्ली में इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस ने प्रसारण आरम्भ कर दिया।
दिल्ली में प्रसारण के इतिहास में यह महत्वपूर्ण घटना हुई। 8 जून 1936 में इंडियन स्टेट ब्रॉडकारस्टिंग सर्विस का नाम बदल दिया गया और इसके स्थान पर ऑल इंडिया रेडियो रखा गया।
दिल्ली केन्द्र से जब प्रसारण आरम्भ हुए तो इस बात का ध्यान रखा गया कि रेडियो से प्रसारित कार्यक्रम शहरों तक ही न हो इसका विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों तक हो।BHDS 184 Free Assignment In Hindi
कार्यक्रमों में सुधार के लिए सलाहकार समितियाँ. सलाहकार परामर्श परिषद बनाई गई जो कार्यक्रमों की गुणवत्ता पर ध्यान देती थी।
जनवरी 1937 को श्रोताओं की प्रतिक्रियाएँ जानने के लिए श्रोता अनुसंधान एकक खोला गया।
इसी प्रकार दिल्ली में सितम्बर 1937 को चार्ल्स बार्स को समाचार वाचक (न्यूज़ रीडर) के पद पर नियुक्ल किया गया।
ऑल इंडिया रेडियो के वे पहले समाचार संपादक (न्यूज एडीटर थे। जो बाद में सेन्टर न्यूज ऑर्गेनाइजेशन के प्रथम समाचार निदेशक डायरेक्टर ऑफ न्यूज) बने।
2) स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद रेडियो का विकास
स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व 1944 में ऑल इंडिया रेडियो के महानिदेशक अहमदशाह बुखारी के कार्यकाल के दोरान प्रसारण के विस्तार की योजना बनाई गई। स्वतंत्र भारत का पहला रेडियो स्टेशन1 नवम्बर 1947 को जालंधर में खोला गया।
पहली जुलाई 1945 को श्रीनगर में रेडियो स्टेशन से प्रसारण आरम्भ हुआ, इसके बाद से देश के विभिन्न क्षेत्रों में ट्रांसमिटर लगाए गये और प्रसारण को गति मिली।
1945 में पटना. कटक, अमृतसर. शिलांग. नागपुर विजयवाड़ा ओर पणजी में प्रसारण के लिए केन्द्र खोले गए। 1950 के बाद प्रसारण केन्द्रों के लिए जो योजनाएं बनाई गई उन्हें पंचवर्षीय योजनाओं में प्राथमिकताएँ दी गई।
देश की सांस्कृतिक और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में रेडियो की भूमिका के महत्व को समझा गया। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने। उन्होंने भारतीय संदर्भ में प्रसारण को आगे बढ़ाने में नयी दिशा दी।
जिस समय देश का बँटवारा हुआ. (15 अगस्त 1947) तब छह रेडियो स्टेशन दिल्ली. बंदई. कलकत्ता. मद्रास. तिरुचि और लखनऊ भारत में रह गए और तीन रेडियो स्टेशन- लाहोर, पेशावर और ढाका . तत्कालीन पाकिस्तान में चले गए।BHDS 184 Free Assignment In Hindi
लेकिन आजादी के बाद जब देश में स्थितियों अनुकूल हुई तब प्रसारण की योजना और विस्तार पर अधिक ध्यान दिया गया।
प्रसारण केन्द्रों का विस्तार हुआ। बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की भावना को ध्यान में रखते हुए देश के कोने-कोने में ट्रांसमिटर लगाने के काम को प्राथमिकता दी गई और सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का भाध्यम बनकर रेडियो प्रसारण श्रोताओं के समक्ष उपस्थित हुआ।
1957 में ऑल इंडिया रेडियो का नाम बदलकर भारतीय परम्परा और संस्कृति से अनुप्रेरित होकर इसका नाम आकाशवाणी’ हो गया।
आजादी के बाद भारत में लोकतंत्र आया। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आधुनिक भारत के निर्माण के लिए पंचवर्षीय योजनाएँ बनाई। इन योजनाओं में भारत के समग्र विकास की कहानी छिपी हई थी।
सामाजिक, आर्थिक, सांस्कतिक,ओद्योगिक.,शेक्षिक ओर कषि के क्षेत्र में विकास की योजनाएं बनाकर उन्हें क्रियान्वित करने पर विशेष बल दिया गया। इस दिशा में प्रसारण के विकास को भी पंचवर्षीय योजनाओं में प्राथमिकता दी गई।।
1947 में आकाशवाणी के पास केवल 18 ट्रांसमिटर थे. जबकि पहली पंचवर्षीय योजना के अंत तक 46. दूसरी पंचवर्षीय योजना के अंत तक 59, तीसरी पंचवर्षीय योजना के अंत तक 110 और आठवीं योजना के अंत तक 297 ट्रांसमिटर हो गए।
ये आँकड़े प्रसारण के क्षेत्र में विकास को दर्शाते हैं। आठवीं योजना के अंत तक 297 ट्रांसमिटर थे जो 2004 में बढ़कर 337 हो गए। BHDS 184 Free Assignment In Hindi
1947 में रेडियो स्टेशनों की संख्या मात्र छह थी. जो सन 2004 में बढ़कर 215 तक पहुँच गई।
आज मीडियम वेब के 144, शॉर्ट वेब के 54 और एफ.एम. के 139 ट्रांसमिटर, देश के विभिन्न भागों में लगे हुए हैं। जहाँ से कार्यक्रम प्रसारित होते हैं।

प्रश्न 2 रेडियो नाटक के तत्वों का परिचय दीजिए।
उत्तर कथानक
यदि नाटक का सार निकाला जाए तो कुल मिलाकर इसमें एक संक्षिप्तं कहानी होती है, इसी को नाटक का प्लॉट भी कहा जाता है। सबसे पहले कागज पर या कम से कम अपने दिमाग में लेखक को नाटक लेखन से पूर्व इस प्लॉट को ही तैयार करना होता है।
नाटक का यही खाका उसका कथानक है। कथानक के लिए उसके कुछ मुख्य भागों पर नजर रखना जरूरी है।
सबसे पहले उसका “आरंभिक भाग”; यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यही वह समय है जब श्रोता को पूरा नाटक सुनने के लिए तैयार करना होता है। कौतुहल, जिज्ञासा, आत्मीयता और स्पष्टता श्रोता को नाटक की ओर आकर्षित करते हैं।
“आरंभ” को प्रभावी बनाने में संगीत, ध्वनि-प्रभाव और संवादों का सहारा लिया जाता है। लंबी प्रस्तावना, भमिका आदि से बचना बेहतर है।BHDS 184 Free Assignment In Hindi
वैसे आरंभिक भाग में ही नाटक के शीर्षक को भी जोडा जाता है क्योंकि अच्छा शीर्षक न केवल श्रोता को अपनी ओर खींचता है वरन् उसमें सुनने की लालसा और जिज्ञासा भी पैदा करता है। नाटक के कथानक में संघर्ष और गतिशीलता को बराबर स्थान देना चाहिए।
ये ही वे तत्व हैं जो कथानक के संतुलित विकास में सहायक होते हैं। इसके “मध्य”.भाग में सभी पहलुओं पर प्रकाश डालना जरूरी है ताकि पात्रों की भावात्मक पृष्ठभूमि का परिचय मिलता रहे।
कथानक का महत्वपूर्ण भाग उसका “अंत” है। नाटक का अंत सुखांत भी हो सकता है, दुखांत भी।
अच्छे आरंभ और विकास के बाद अंत भी प्रभावशाली होना चाहिए ताकि वह । श्रोता के मन पर छाप छोड़ सके। रेडियो नाटक में सुखांत और दुखांत दोनों अवस्थाएँ आवश्यकता के अनुरूप प्रभावी हो सकती हैं।
पात्र अथवा चरित्र-चित्रण :
जरा सोचिए, क्या बिना किसी पात्र के कोई नाटक लिखा जा सकता है? दरअसल, ये पात्र ही नाटकीय कार्य-व्यापार का वहन करते हैं और अपने संवादों द्वारा नाटकीय कथा उद्घाटित करते हैं।
रेडियो नाटक के पात्रों का चरित्र-चित्रण अन्य नाटय-रूपों से भिन्न होता है क्योंकि रेडियो-नाटक दृश्यमान नहीं होता।
अतः पात्रों के उठने-बैठने से लेकर, उनकी वेशभषा. उनकी आय. उनके बर्ताव और बात करने का ढंग-ये सब कछ आपको ध्वनि से ही तैयार करने होंगे। BHDS 184 Free Assignment In Hindi
ध्वनि को मुख्यतः तीन भागों में विभक्त किया गया हैसंवाद, ध्वनि-प्रभाव (इफेक्ट्स), और संगीत। इनके द्वारा एक दृश्य खड़ा करने का प्रयत्न किया जाता है।
पात्रों की सृष्टि मुख्यतः आवाज की कल्पना पर ही होती है। यदि लेखक चरित्र के साथ आवाज की कल्पना नहीं करता, यदि वह हर लिखे गये शब्द को एक ध्वनि के रूप में नहीं सुनता तो वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं होगा। पात्रों को जीवंत बनाने के लिए सारी मेहनत और निपुणता की जरूरत है।
किसी भी पात्र की सृष्टि के पूर्व लेखक अपने को पात्र की मनःस्थिति में ढालता है। और जब वह पात्र ध्यान में अच्छी तरह पक जाता है तब उसे नाटक के लिए कागज पर उतारना होता है।
सबसे पहला सवाल श्रोताओं से पात्रों का परिचय कराने का है ताकि उनकी छवि श्रोताओं के मन में बन सके। इसके जो तरीके हो सकते हैं, आइये उन पर संक्षेप में नजर डाली जाय
• सूत्रधार (नरेटर) द्वारा
• अन्य पात्रों द्वारा
• स्वगत कथन द्वारा
• सूत्रधार (नैरेटर) के जरिये पात्र या पात्रों का परिचय कराया जा सकता है, जैसे
“सूत्रधार-आप हैं लाला मनुसख लाल। वैसे शायद ही आपने किसी के मन को सख पहुँचाया हो। सुबह उठकर पूजा अवश्य करते हैं-(व्यंग्य से) लेकिन शायदं पूजा में भी लक्ष्मी का ध्यान इन्हें अधिक रहता है।
एक ही बेटा नरेश-जवान है लेकिन मनसुखलाल को बेटे की शादी से ज्यादा मिलने वाले दहेज की ओर अधिक ध्यान है। सारी उम्र अपनी पत्नी से इसी दखड़े का रोना रोते रहे कि उनके ससुर से उन्हें अधिक दहेज नहीं मिला।”
यह पद्धति कम इस्तेमाल होती है। BHDS 184 Free Assignment In Hindi
• अन्य पात्रों द्वारा कहे गये कथनों द्वारा पात्र का परिचय कराया जा सकता है, जैसे
(चौपाल के दृश्य का संकेत करते हुए)
सुखिया – : आओ-आओ चौपाल में तुम्हारा स्वागत है बलदेव। और कहो बेटा ठीक तो है, कब आ रहा है शहर से।
बलदेव : कौन? विनोद के लिए पूछ रहे हो? बस तीन-चार दिन में आ जाएगा। चिट्ठी आयी थी। डॉक्टर बन गया है अब तो।
चेतराम : बड़े भाग्यशाली हो तुम बलदेव। तुम्हें विनोद जैसा लड़का मिला-सौम्य, आज्ञाकारी। और फिर सोने में सहागा, डॉक्टर भी बन गया क्या सोचा उसने? गाँव में रहेगा या शहर में ही डॉक्टरी करेगा?
बलदेव : (हुक्का गुड़गुड़ाते हुए) पिछली बार आया था तो कहता था, गाँव में ही डाक्टरी करेगा, गरीबों की सेवा करेगा।
सुखिया: भई वाह, कितने नेक विचार हैं। बलदेव, हमारी मानो तो अब उसकी शादी भी कर डालो। रायसाहब की बिटिया हेमा और विनोद बचपन के साथी हैं।
बलदेव : सो तो है। लेकिन कहता था हॉक्टरी पूरी करने पर ही शादी की . सोचूंगा और शर्त रखी है कि दुल्हन सिर्फ एक साड़ी में घर लायी _ जाएगी।
• कुछ नाटकों में पात्रों के परिचय के लिए कथन की पद्धति अपनायी जाती है जहाँ पात्र अपना परिचय स्वयं देता है। एक उदाहरण देखिए BHDS 184 Free Assignment In Hindi
सतीश (गीत गुनगुनाते हुए-मारे गये गुलफाम, मानो आइने के सामने खड़े होकर बोल रहे हों) हूँ””हूँ””अब बाल ठीक बने। भगवान ने भी बाप नामी जीव का झंझट क्यों रखा है। शादी लड़की से ‘मुकद्दमा बाप के पास। हुं” आज ही यह टाई की “नाट” भी ठीक से नहीं लग पा रही।-
सत्ताईस वर्षीय सतीश वर्मा। बी.ए. एल.एल.बी. पास। अदालत में अच्छा खासा मुकदमा लड़ लेते हैं लेकिन भला बताइये अपनी शादी के लिए अपनी ही वकालत होने वाले ससुर के सामने की जाय-हुंऊ”” यह भी कोई मुकद्दमा है?”
ध्वनि :
रेडियो नाटक की यदि कोई सब से भिन्न विशेषता है तो वह यह कि इसे नेत्रहीन व्यक्ति भी सुनकर उतना ही आनंद ले सकते हैं जितना कि अन्य कोई और। इसका मुख्य कारण है कि रेडियो नाटक मात्र ध्वनि का ही माध्यम है।
यही इसकी जटिलता कही जा सकती है, किंतु यही इसकी विशिष्टता भी है क्योंकि ध्वनि के कारण श्रोता नाटक को अपनी कल्पना-शक्ति के आधार पर देखता है। ध्वनि को मुख्य तीन भागों में बाँटा जा सकता है।)
1) उच्चरित शब्द ..
2) ध्वनि-प्रभाव
3) संगीत
1) उच्चरित ‘शब्द-इसके अंतर्गत संवाद और भाषा दोनों ही आते हैं। पात्रों का परिचय, उनकी विचारधारा, उनकी अच्छाइयाँ-बुराइयाँ, उनके अन्तर्द्वन्द्व, ये सभी शब्दों और भाषा की मांग करते हैं।
यहाँ तक कि नाटक के अपने उद्देश्य को थोता तक पहुँचाने के लिए भी संवाद और भाषा की आवश्यकता होती है। वातावरण की सृष्टि में भी संवाद मददगार होत
2) ध्वनि-प्रभाय-नाट्य-लेखन में नाट्य-निर्देश महत्वपूर्ण होते हैं। रेडियो में यह कार्य और भी मश्किल होता है क्योंकि यह केवल श्रव्य माध्यम है।BHDS 184 Free Assignment In Hindi
नाट्य-निर्देशों में ध्वनि-प्रभाव या इफैक्टस महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनकी उपस्थिति श्रोता की कल्पना-शक्ति के आधार पर इसे अन्य नाट्य-रूपों के मुकाबले सशक्त बनाती है।
उदाहरण के लिए-मोटर या रेलगाड़ी का प्रभाव, आँधी-तूफान या बिजली का गर्जन, ये वे ध्वनि-प्रभाव हैं जो रंगमंच पर संभव नहीं हैं दूरदर्शन या चलचित्र में भी इन्हें श्रव्य के अतिरिक्त दृश्य के साथ ही दिखाया जा सकता है।
3) संगीत-रेडियो नाटक में ध्वनि का तीसरा रूप संगीत है। एक स्थान पर संगीत दश्य-परिवर्तन के लिए प्रयुक्त होता है तो दूसरे स्थान पर यह मन: स्थिति और अन्तर्द्वन्द्व को उभारने में सहायक होता है।
काल अंतर और काल की पहचान भी संगीत के माध्यम से करायी जा सकती है। कई स्थानों पर वातावरण को निर्मित करने तथा सुखांत और दुखांत दृश्यों को उभारने में भी संगीत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
आइये देखें, ध्वनि के इन तीनों रूपों को लेखन में किस-किस प्रकार प्रयोग में लाया जा सकता है। या इनके प्रयोग के लिए किस निपुणता की आवश्यकता होती है। ।।
उच्चरित शब्द-भाषा के लिए शब्दों का चयन महत्वपूर्ण है। रेडियो नाट्य-लेखन में इस बात को बराबर ध्यान में रखना है कि इसमें लेखक पात्र के अनुरूप ही भाषा और शब्द का चयन करता है।
अत: पात्रों की आयु, उनके शैक्षिक-स्तर, उनके क्षेत्र विशेष का ध्यान रखते हुए उसके अनुरूप शब्दों का चयन करना होता है। BHDS 184 Free Assignment In Hindi
एक अन्य महत्वपूर्ण तथा ध्यान देने योग्य बात यह है कि वाचन अभिनय का आधार है। संवाद सही उच्चारण द्वारा ही संभव होता है।
अतः नाट्य कलाकारों के लिए ऐसे शब्दों का चयन जरूरी होता है जो आसानी और सहजता से उच्चरित किये जा सकें।
संवादों में निहित अर्थ और उनकी तर्क पद्धति स्पष्ट होनी चाहिए जिससे कि श्रोता तुरंत उसे ग्रहण कर लें। श्रोता को यह सविधा नहीं होती कि वह पात्र द्वारा बोले गये संवाद को दबारा मन सके।
के.पी. सक्सेना लिखित “रंगीन रोशनदान” नाटक के एक उदाहरण देखिए
मिनाती : हलो एवरीबडी। तुममें से कोई नागर सर की क्लास में जा रहा हो तो मेरी हाजिरी लगवा देना। प्रीति यू आर गोइंग?
प्रीति : हुश। मैंने खुद अपनी हाजिरी के लिए मलकानी को बोल दिया है। सिम्पली घोरिंग-सी सिक्स एच ट्वेलव, ओ सिक्स” हो गया ग्लकोज। जहाँ जीवन की सारी मिठास कविता में पगी हो वहाँ ग्लुकोज़ की क्या बिसात?
नजमुल : ग्लूकोज को डालो नाइट्रिक एसिड में? बच्ची तुम तो अपना नया वह सुनाओ…क्या कहते हैं उसे मेहरा?’ मेहरा
मेहरा: काव्य प्रयोग। तुम्हारे वालिद के पल्ले नहीं पड़ सकता नजमुल।
हिंदी शब्दावली में उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों को मिलाने से भाषा सहज और सुबोध हो गयी है। भारी भरकम पिलष्ट शब्द संवादों की गतिशीलता में बाधक होते हैं। उदाहरण के लिए कणाद ऋषि भटनागर लिखित “ताजा अखबार” नाटक का यह संवाद देखें
मृदुलजी : आधुनिक युग प्रतिपल, प्रतिक्षण अज्ञात दिशा में उभरते इंद्रधनुष की चकाचौंध में आत्मविस्मत होता जा रहा है। उस लज्जामय रंगीन भाव को कुछ स्वच्छंद पंक्तियों के आवरण में ढंकने का यह अकिंचन एक प्रयास कर रहा है। BHDS 184 Free Assignment In Hindi
भाषा भी अलंकरण, शब्द सौंदर्य जाल से मुक्त होकर जितनी ही स्वाभाविक दैनिक जीवन से संबद्ध होगी, संवाद उतने ही सफल होंगे। संवाद निम्न तीन तरह से कार्य करते हैं
• वातावरण निर्माण करते हैं ..
• पात्रों के कार्यकलाप का ज्ञान कराते हैं
• चरित्र-चित्रण में सहायक होते हैं।
संवादों में श्रोता की आत्मीयता जगाकर उसके मर्म को छूने की क्षमता होनी चाहिए। इतना ही नहीं संवादों को बिंबधर्मी होना चाहिए। गोपालदास कृत “उनका भाई”का यह
उदाहरण देखिए
सुधा : पापा-मम्मी एक पार्टी में गये थे। अभी कुछ देर पहले लौटे।
राधा : फिर?
सुधा : दोनों कपड़े बदलकर अपने कमरे में आये। पापा ने मम्मी से कहा, तुमने देखा विमला का घर? दो कमरे हैं। मामूली आदमी है। लेकिन कैसे साफ सुथरा है। हर चीज सलीके से।
राधा : तो
सुधा : बस, मम्मी तमक गयी।
राधा- : कुछ कहा?
सुधा : बहुत कुछ।
राधा : बॉबी कहाँ था?
सुधा : वह उनके आने की आवाज सुनकर बड़ा इठलाता हुआ अपना खिलौना दिखाने जा रहा था।
राधा : कौन-सा खिलौना?
सुधा : उसे स्कूल में मिला है फर्स्ट आने पर।
राधा : अच्छा, फिर?
सुधा : उनकी लड़ाई सुनकर वह वहीं ठिठककर रह गया। फिर दरवाजे की ओट में खड़ा होकर सुनने लगा। मैं उसे देखती रही। जैसे-जैसे लड़ाई बढ़ती गयी, उसका मुँह सूखता गया। मैं उसके पास गयी।
मैंने कहा, चल खेलें। बाहर राम-शामू आये हैं। वह गुमसुम खड़ा रहा, जैसे वहाँ जम गया हो। फिर मम्मी चौके में चली गयी। पापा अखबार लेकर बैठक में चले गये। बॉबी बिस्तर में जाकर पड़ गया।
प्रश्न 3 मुद्रित लेखन और रेडियो लेखन में अंतर स्पष्ट कीजिए।
लिखित अथवा मुद्रित माध्यम इनमें समाचार-पत्र. पत्रिकाएँ. पुस्तकें तथा अन्य मुद्रित सामग्री शामिल किए जाते हैं। कागज का आविष्कार सन 105 में चीन में हुआ था और कागज निर्माण की कला का विकास सातवीं सदी में जापान में हुआ ओर जापान में ही वर्ष 770 में मुद्रण कला की शुरूआत हुई है।
आधुनिक चल मुद्रण तकनीक का आविष्कार सन 1450 में जर्मन के जोन गुटेनबर्ग ने किया। वर्ष 1798 में अलोइस फेल्डर ने लिथोग्राफी का आदिष्कार किया। फोटो कम्पोजीशन का पेटेंट वर्ष 1995 में हुआ।
1950 में आधुनिक कंप्यूटर नियंत्रित फोटो कम्पोजीशन का प्रचलन हुआ। आजकल प्रिंटिंग में लेजर तकनीक का उपयोग किया जाता है। BHDS 184 Free Assignment In Hindi
भारत में पहला छापाखाना 1780 ई. में श्रीरामपुर में खुला था। छपाई ज्ञान प्रसार का महत्वपूर्ण साधन है। पुस्तक प्रकाशन के मामले में हमारा देश विश्व के बड़े देशों में गिना जाता है। यहाँ के समाचार-पत्रों में सबसे पुराना देनिक 1822 में बंबई से प्रकाशित गुजराती देनिक बंबई समाचार है।
प्रमुख समाचार-पत्रों में आनंद बाजार पत्रिका, युगांतर तथा मलयालम मनोरमा शामिल रहे हैं। वर्ष 2003 तक उपलब्ध आंकड़ा के अनुसार भारत में कुल 5966 देनिक समाचार-पत्र छपते हैं।
सप्ताह में दो या तीन बार छपने वाले अखबारों की संख्या 358. साप्ताहिक पत्र 19631. पाक्षिक 7356. मासिक 16109 आदि मिलाकर पत्रपत्रिकाओं की संख्या हे 55780 जिनमें वार्षिक और अर्ध-वार्षिक तथा अनियमित अवधि के पत्र-पत्रिकाएँ शामिल हैं।
दी हिंदुस्तान टाइम्स (अंग्रेजी-दिल्ली) की कुल देनिक प्राप्तियाँ 11.12.160 छापी जाती हैं।
देनिक भास्करदेिनिक हिंदी) अपने 18 संस्करणों में 17.17.294 प्रतियाँ छपवाता है। पत्रिकाओं में सरस सलिल’ (पाक्षिक- हिंदी) की 10.49.362 प्रतिया छपकर पाठकों के हाथों तक पहुँचती है।
किसी भी भारतीय भाषा में छपने वाले पत्र-पत्रिकाओं में सर्वाधिक संख्या हिंदी (22067) की है. अंग्रेजी का दुसरा (8141) स्थान है। उत्तर प्रदेश से देश की सर्वाधिक पत्र-पत्रिकाएँ (9071) छपती हैं।
उड़ीसा एक ऐसा प्रदेश हे जहाँ से सभी 18 प्रमुख भारतीय भाषाओं में समाचार-पत्र छपते हैं। इन प्रमुख भाषाओं के अतिरिक्त देश में 82 भाषाओं और बोलियों में समाचारपत्र छापे जाते हैं।
प्रश्न 4 रेडियो साक्षात्कार या भेंटवार्ता की विशिष्टताओं पर प्रकाश डालिए।
साक्षात्कार अथवा भेटवार्ता रेडियो कार्यक्रमों की अत्यंत महत्वपूर्ण विधा है। संभवत: रेडियो और टेलीविजन के विभिन्न कार्यक्रमों एवं समाचारों में इस विधा का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है।
जेसाकि इसके नाम से ही स्पष्ट है, जहां वार्ता में एक ही व्यक्ति अपना आलेख पढ़कर सुनाता है. इस विधा में किसी से भेंट की जाती है।BHDS 184 Free Assignment In Hindi
दुरारे एक व्यक्ति भेटकर्ता के रूप में किसी विशेषज्ञ अथवा व्यक्ति से प्रश्न पूछता हे ओर बह विशेषज्ञ अथवा व्यक्ति उनके उत्तर देता है। इस विधा का प्रयोग, किसी सरकारी अधिकारी से सरकारी योजना के बाने में जानने के लिए किया जा सकता है.
किसी वेज्ञानिक, अर्थशास्त्र या अन्य विशेषज्ञ से किसी विषय की जानकारी लेने के लिए अथवा किसी नेता. खिलाड़ी या कलाकार आदि से उसके जीवन के बारे में जानने के लिए किया जा सकता है।
कई बार भेंटवार्ताओं के माध्यम से आम जनता की राय अथवा विचार जानने का प्रयास किया जाता है।
उदाहरण के लिए, आम बजट की प्रस्तुति के बाद आम जनता से यह जानने का प्रयास किया जाता है कि उसे बजट केसा लगा।
कई फिल्म संबंधी कार्यक्रमों में, सिनेषा दर्शकों से किसी फिल्म के विषय पें उनके विचार, भेंटवार्ता के माध्यम से रिकॉर्ड लिए जाते हैं।
भेंटवार्ता चाहे लता मंगेशकर जेसी महान कलाकार से करनी हो या सुनील गावस्कर जेसे खिलाड़ी या अमिताभ जैसे अभिनेता से अथवा किसी सामान्य व्यक्ति से. अत्यंत कुशलता की आवश्यकता होती है।।
भेटवार्ता की तैयारी : BHDS 184 Free Assignment In Hindi
किसी भी भेटवार्ता से पहले. भेटवार्ता को अच्छी तरह तैयारी करने की आवश्यकता होती है। इस तैयारी के लिए.भेंटकर्ता को उस विषय पर अधिकाधिक जानकारी जुटाने की आवश्यकता होती है।
इसके लिए उसे विषय से संबंधित साहित्य पढ़ने की. जानकार लोगों से.फोन से या मिलकर सूचनाएं एकत्र करने को. किस्ली विशेष स्थान का भ्रमण करने की भी आवश्यकता पड़ सकती है।
यदि किसी खिलाड़ी, कलाकार आदि से व्यक्तिगत जीवन पर भेंटवार्ता करनी है तो उसके जीबन के हर पहलू को गहराई से जानने की आवश्यकता होती है।
उदाहरण के लिए यदि किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री से भेंट की जानी है तो उसे उस प्रदेश को सभी प्रमुख समस्याओं जेसे बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा. कानून व्यवस्था आदि की पूरी जानकारी होनी चाहिए।
प्रदेश सरकार की प्रमुख योजनाओं, उनके क्रियान्वयन की स्थिति आदि का भी लेखाजोखा होना चाहिए। प्रदेश में उद्योग लगाने के लिए क्या क्या सुविधाएं या असुविधाएं हैं।
भेंटकर्ता के पास जितनी ज्यादा एवं जितनी सही जानकारी होगी उतना ही वह आत्मविश्वास के साथ प्रश्न कर सकेगा।
इसी प्रकार यदि सुप्रसिद्ध खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर से भेंटवार्ता करनी है तो ऐसे प्रश्न पूछे जाने चाहिए जिससे श्रोताओं को नयी से नयी बातें जानने को मिलें।
यह दो उदाहरण तो बड़ी हस्तियों के उदाहरण थे. किसी भी रेडियो केन्द्र पर लगभग हर रोज कई प्रकार की भेंटवार्ताएं रिकॉर्ड को जातो हैं।BHDS 184 Free Assignment In Hindi
किसी डॉक्टर से स्वास्थ्य संबंधी भेंटवार्ता. किसी अधिकारी से जन समस्याओं पर भेंटयार्ता. कृषि विशेषज्ञ से कृषि संबंधी भेटवार्ता, किसी साहित्यकार से साहित्यिक भेटवार्ता, किसी युवा प्रतिभा से भेंटवार्ता आदि: अक्सर किसी केन्द्र पर विशिष्ट उपलब्धि वाले कुछ व्यक्तित्व अन्य प्रदेशों शहरों से अतिथि के तोर गर आ जाते हैं और अचानक उससे भेंटवार्ता कर ली जाती है।
ऐसीभेटवाताओं को तेयारी का सबसे आसान सत्र हे इस तरह के प्रश्न सोचना – क्या, क्यों, केसे. कहां. कितना, कब… आदि।
अर्थात् उस व्यक्ति की उपलब्धियों के प्रति श्रोताओं की जिज्ञासा का ध्यान रखना। भेंटकर्ता को भेंटबार्ता के लिए निर्धारित समय का ध्यान रखते हुए बहुत सारे प्रश्नों की सूची बना लेनी चाहिए।
भेंटकर्ता ने जब किसी व्यक्तित्व की जीवन की पूरी जानकारी जुटा कर प्रश्न लिख लिए हैं अथवा विषय से जुड़े सवाल तैयार कर लिए हैं तो वह भेंटवार्ता की रिकॉर्डिंग के लिए तेयार है।
यहाँ एक बात और ध्यान देने की है। जैसे कि तैयारी के लिए किसी स्थान स्थल बिशेष के भ्रमण को बात कहो गई थी. तो यदि रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म जाकर नोट्स बनाने होंगे।
यदि किसी किले के संरक्षण पर भेटवार्ता हो तो किले की गहन पड़ताल वहीं जाकर करनी होगी। तो अब भेंटवार्ता की तैयारी के बाद भेंटवार्ता के आवश्यक तत्वों पर बात करें जो भेटवार्ता को सफल एवं रोचक बनाएंगे।
भेंटवार्ता के आवश्यक तत्व भेंटवार्ता के संबंध में सबसे अधिक ध्यान रखने को बात यह है कि जब भी रेडियो श्रोता किसी पेंटवार्ता का प्रसारण सुन रहा होता है तो वह भेंटवार्ता के स्थान पर स्वयं को महसूस करता है।
यदि क्रिकेट खिलाड़ी कपिल देव से साक्षात्कार का प्रसारण हो रहा हे तो श्रोता को महसूस होगा जेसे कि वह स्वय कपिल देव से बात कर रहा है। BHDS 184 Free Assignment In Hindi
भेंटकर्ता को हमेशा यह दिपाग में बैठाकर रखना चाहिए कि श्रोताओं की जिज्ञासाएं क्या होंगी: यदि बह उन जिज्ञासाओं के अनुरूप प्रश्न नहीं कर पाया तो श्रोता को खीझ ही होगी।
उदाहरण के लिए किसी स्थान पर प्रदर्श कर रहे मजदूरों को पुलिस ने बिना कसूर बुरी तरह लाठी चार्ज करके पीटा हे और कई मजदूर घायल हुए हैं।
अब इस घटना पर रेडियो का प्रतिनिधि डायरेक्टर जनरल पुलिस (डीजी पी) से भेटवार्ता करता है और वह डी जी पी लीपापोती करने का प्रयास करता हे तो रेडियो श्रोता जो इस घटना से हषुग में गुस्से में हैं यह अपेक्षा करेंगे कि रेडियो का प्रतिनिधि उनसे सीधी सीधी सफाई मांग, पुलिस की बर्बरता तथा मजदूरों को बेबसी की ओर ध्यान दिलाए।
प्रश्न 5 मनोरंजन के लिए रेडियो की उपयोगिता पर विचार कीजिए।
“मनोरंजन” का अर्थ अलग-अलग व्यक्ति के लिए अलग-अलग होता है। वह उसकी रूचि पर निर्भर करता है। किसी एक व्यक्ति को यदि फिल्मी गीत अधिक पसंद आते हैं तो दसरे को गैर फिल्मी गजलों, लोकगीतों अथवा शास्त्रीय संगीत में रुचि हो सकती है।
इसी प्रकार नाटक पंसद करने वाले श्रोता को संगीत से ज्यादा नाटक से मनोरंजन प्राप्त हो सकता है।
लेकिन यहाँ मनोरंजन से हमारा तात्पर्य उन कार्यक्रमों से है जो हमारे दिलो दिमाग को सुकून पहुँचाए जो हमें रूचिकर लगे जिसे सुनते हुए हम अपनी चिंताओं, परेशानियों, कंठाओं से कुछ देर को निजात पा सकें।
ऐसा नहीं है कि मनोरंजन संबंधी कार्यक्रम नितांत उददेश्यहीन ही हों, किन्त किसी संदेश अथवा उद्देश्य के बावजूद उनका मुख्य उद्देश्य श्रोता के मन को प्रसन्न करना ही होना चाहिए।
वर्तमान समय में जीवन की जटिलताओं के साथ-साथ व्यक्ति के जीवन में कष्ट और अभाव भी बढ़ गए हैं। नगरों और महानगरों में अकेलेपन का बोध बढ़ रहा है, समय अत्यंत सीमित हो गया है।
मनोरंजन के अनेकानेक साधनों के उपलब्ध होते हए भी लोग उनका लाभ उठाने से वंचित रहते हैं। एक तो उनके पास खर्चीले मनोरंजन के साधनों के लिए पैसा नहीं है और यदि पैसा है भी तो समय नहीं है।
ऐसे में रेडियो ही एकमात्र साधन बचता है जो निशुल्क मनोरंजन उपलब्ध कराता है तथा जिसमें काफी विविधता मिलती है। श्रव्य माध्यम के कारण यह किसी दूसरे काम में बाधा भी नहीं डालता और उसके लिए लगकर बैठने की जरूरत नहीं पड़ती।BHDS 184 Free Assignment In Hindi
अतएव निम्न मध्यमवर्गीय लोग या गरीब लोग आज भी रेडियो को ही अपने मनोरंजन का साधन मानते हैं। इसके प्रमाण स्वरूप हमें किसी मजदूर के हाथ में या ठेले पर सामान बेचने वाले के पास ट्रांजिस्टर देखने को मिल जाएंगे।
रेडियो माध्यम और हास्य व्यंग्य :
रेडियो में मनोरंजन प्रधान कार्यक्रमों अथवा मुख्य रूप से हास्य व्यंग्य के कार्यक्रमों पर विचार करते समय हमें इस बात पर भी विचार करना होगा कि रेडियो का माध्यम, ऐसे कार्यक्रमों के लिए कितना उपयुक्त है।
हास्य का संबंध बहुत कुछ हमारी शारीरिक मुद्राओं यानी अंग संचालन तथा मुख मुद्राओं से भी है; साथ ही यह पहनावें या हास्यपूर्ण “हरकतों” पर भी निर्भर है।
यानी कि “हास्य” का संबंध दृश्य यानी “विजुअल” से ज्यादा जुड़ा है। जबकि रेडियों माध्यम पर अंग संचालन, मुख मुद्राओं या ऊलजलूल पहनावे या अन्य दृश्य हरकतें कतई संभव नहीं है।
इसी प्रकार हम पाते हैं कि “हास्य” का संबंध या हास्य की सफलता का संबंध सामूहिक प्रदर्शन पर अधिक निर्भर है। समूह में एक दूसरे को हंसता देखकर हम भी हँसने-मस्कराने को उद्दीप्त होते हैं।
यहाँ भी रेडियो का माध्यम कमजोर पड़ता है क्योंकि रेडियो मूलतः बहुत ‘व्यक्तिगत’ माध्यम है और प्रायः अकेले सुना जाता है।
खासकर वर्तमान में जबकि -बड़े-बड़े रेडियो सेट विदा हो गये हैं उनके स्थान पर छोटे-छोटे बल्कि “जेबी” (पाकेट) ट्रांजिस्टर आम प्रचलन में आ गये हैं।
ऐसे में अकेले-अकेले रेडियो सेट सुनते हए जोर से हंसना या सिर्फ हंसना भी अस्वाभाविक सा लगता है। किन्तु इन दो याधाओं के बावजूद रेडियो पर हास्य व्यंग्य के कार्यक्रम बहुत सफल हुए हैं।
व्यंग्य वार्ता, व्यंग्यकथा से लेकर हास्य व्यंग्य नाटिका, धारावाहिक हास्य नाटिका, धारावाहिक हास्य रूपक, पैरोडी, रेडियो कार्टून, चुटकलों, नाटकीकृत चुटकुलों आदि अनेकानेक रूपों में हास्य कार्यक्रम प्रसारित हो रहे हैं और श्रोताओं में लोकप्रिय भी हुए हैं। अनेक छोटे-छोटे विज्ञापनों में भी हास्य का प्रयोग किया जाता है।
हास्य के प्रायोजित कार्यक्रम भी समसफल हए हैं। हास्य के अनेक ऐसे कार्यक्रम हैं जो आम घरों में चर्चित हैं और रेडियो होताओं के बीच उनकी यादें ताजा हैं, जैसे “हवामहल” कार्यक्रम में “लहरें” धारावाहिक हास्यरूपक “बहरेबाबा” या प्रायोजित कार्यक्रम “मेट्रो के मनोरंजक मुकदमें” या “एस. कुमार का फिल्मी मुकदमा” आदि।
प्रश्न 6 रेडियो समाचार के स्वरूप और विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
रेडियो मूलतः श्रव्य माध्यम है। इसमें सब कुछ ध्वनि, स्वर ओर शब्दों का खेल है। इन सब वजहों से रेडियो को श्रोताओं से संचालित माध्यम माना जाता है। रेडियो पत्रकारों को अपने श्रोताओं का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
इसकी वजह यह है कि समाचारपत्र के पाठकों को यह सुविधा उपलब्ध रहती है कि वे अपनी पसंद और इच्छा से कभी भी और कहाँ से भी पढ़ सकते हैं।BHDS 184 Free Assignment In Hindi
अगर किसी समाचार लेख या फीचर को पढ़ते हुए कोई बात समझ में नहीं आई तो पाठक उसे फिर से पढ़ सकता है या शब्दकोश में उसका अर्थ देख सकता हे या किसी से पूछ सकता है।
लेकिन रेडियो के श्रोता को यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। वह अखबार की तरह रेडियो समाचार बुलेटिन को कभी भी ओर कहीं से भी नहीं सुन सकता है।
उसे बुलेटिन के प्रसारण समय का इंतजार करना होगा और फिर शुरू से लेकर अंत तक बारी-बारी से एक के बाद दूसरा समाचार सुनना होगा।
इस बोच वह इधर-उधर नहीं आ जा सकता है और न ही किसी गढ़ शब्द या वाक्यांश के आने पर शब्दकोश का सहारा लेने का समय होता है।
अगर वह शब्दकोश में अर्थ ढूंढने लगेगा तो बुलेटिन आगे निकल जाएगी। अगर वह किसी शब्द या वाक्यांश का अर्थ नहीं समझ पाता है तो संभव है कि आगे कीबुलेटिन में उसकी रुचि खत्म हो जाए।
स्पष्ट है कि सेंडियो में अखबार की तरह पीछे लोटकर सुनने की सविधा नहीं है। अगर रेडियो बुलेटिन में कुछ भी भ्रामक या अरुचिकर हे तो संभव है कि श्रोता स्टेशन बदल दे या रेडियो स्विच ऑफ कर दे।
रेडियो प्रसारणकर्ताओं को यह समझना होगा कि रेडियो मूलतः एक रेखीय (89) माध्यम हे और रेडियो समाचार बुलेटिन का स्वरूप. ढांचा और शैली इस आधार पर ही तय होती है।
रेडियो की तरह टेलीविजन भी एक रेखीय माध्यम हे लेकिन वहां शब्दों ओर ध्यनियों की तुलना में दृश्यों तस्वीरों का महत्व सर्वाधिक होता है। BHDS 184 Free Assignment In Hindi
टीबी में शब्द दृश्यों के अनुसार ओर उनके सहयोगी के रूप में चलते हैं लेकिन रेडियो में शब्द और आवाज ही सब कुछ है।
बैसे तो तीनों ही माध्यमों-प्रिंट, रेडियो और टीवी की अपनी-अपनी चुनौतियां हैं लेकिन संभवतः रेडियो प्रसारणकर्ताओं के लिए अपने श्रोताओं को बांधे रखने को चुनौतो सबसे कठिन है।
रेडियो समाचार के स्रोत :
रेडियो के समाचारों के स्रोत भी वही हैं जो अन्य माध्यमों के होते हैं। समाचार तो सभी माध्यमों में वही होते हैं. फर्क सिर्फ प्रस्तुति.शेली और लेखन का होता है।
चूंकि भारत में रेडियो के क्षेत्र में आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो या ए आई आराका एकाधिकार सा रहा है
जो कि कछ वर्षों पहले एफएमके क्षेत्र में निजी प्रसारकों को अनुमति मिलने के बाद एक हद तक टूटा है लेकिन निजी प्रसारकों को समाचार प्रसारण की अनुमति न मिलने के कारण समाचारों के मामले में आकाशवाणी का एकाधिकार बना हुआ है।
अन्य समाचार संगठनों की तरह आकाशवाणी के समाचारों का प्रमुख स्रोत खुद उसके रिपोर्टर और संवाददाता हैं। संभवत: आकाशवाणी के पास देश भर में पूर्णालिक और अंशकालिक संवाददाताओं का सबसे बड़ा ओर विस्तृत नेटवर्क हे। BHDS 184 Free Assignment In Hindi
आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग के दिल्ली मुख्यालय में रिपोर्टिंग यूनिट में 10 से अधिक संवाददाता हैं जबकि सभी राज्यों की राजधानियों और प्रमुख शहरों में भी पूर्णकालिक संवाददाता सक्रिय हैं।
इनके अलावा देश के लगभग 524 जिलों में स्थानीय अंशकालिक संबाददाता खबरें जुटाने और उनकी महत्ता के मुताबिक उन्हें राज्य मुख्यालय यो दिल्ली भेजने को तत्पर रहते हैं।
आकाशवाणी के लगभग आधा दर्जन संवाददाता विदेशों में भी हैं। इस तरह आकाशवाणी से 24 घंटे प्रसारित होनेवाले राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय/ षेत्रीय समाचारों का प्रमुख स्रोत उसके अपने संवाददाता हैं।
आकाशवाणी के समाचारों का दूसरा प्रमुख स्रोत समाचार एजेंसियां-पी टी आई/भाषा ओर यू एन आई यूनीवार्ता हैं। समाचार प्रभाग में दोनों एजेंसियों की सेवाएं उपलब्ध हैं और देश-दुनिया की तमाम खबरें समाचार कक्ष में टेलीप्रिंट पर आती रहती हैं।
इसके अलावा विभिन्न राजनीतिक, व्यापारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों व्यक्तियों की प्रेस विज्ञप्तियांहेडआउट्स और बयात भी फेबस वगेरह के जरिए समाचार कक्ष में पहुंचती रहती हैं जिन्हें समायारों की कसोटो पर उपयुक्त होने पर समाचारों में शामिल कर लिया जाता है।
आकाशवाणी के समाचारों का एक स्रोत दूसरे समाचार माध्यम भी हैं। समाचार कक्ष में विधिन्तर टी वी चैनलों ओर समाचाएपत्रों में प्रकाशित-प्रसारित ख़बरों पर भी नजर रखो जाती है।
इसके अलाया आकाशवाणी का मानिटरिंग केन्द्र प्रमुख विदेशी रेडियो प्रसारणों (जेरो बी त्री सी. वी ओ ए. रेडियो डचेवेले. रेडियो पाकिस्तान आदि) को सुनता रहता है और उनकी अहम खबरों से समाचार कक्ष को अवगत कराता रहता है।
प्रश्न 7 एफ.एम. सेवा और प्राइवेट रेडियो चैनल
इन दिलों एफ एम रेडियो एक लोकप्रिय बहुचर्चित शब्द है। आमतौर पर मनोरंजन प्रधान तथा निजी रेडियो के कार्यक्रमों को ही एफ एम समझ लिया जाता है।
लेकिन यह धारणा गलत है। वास्तव में एफ एम आवाज प्रसारण की एक तकनीक हे. कोई कार्यक्रम नहीं।
रेडियो के संकेत ध्वनि तरंगों के माध्यम से प्रसारित होते हैं। इन ध्वनि तरंगों की यात्रा रेडियो स्टेशन के ट्रांसमिटर से श्रोता के रेडियो रिसीवर तक वायुमंडल के माध्यम से होती है।
ट्रांसमिटर का काम रेडियो कार्यक्रमों के संकेतों को ध्वनि तरंगों में बदलना होता है। मध्यम तरंग का मीडियम बेव तथा लघु तरंग का शार्टवेब कहते हैं।BHDS 184 Free Assignment In Hindi
आमतौर पर इन दिनों दुनियाभर में रेडियो संकेतों का प्रसारण ए एम अर्थात एम्पलीट्यूड माड्यूलेशन” अथवा एफ एम अर्थात “फ्रीकेसी माड्यूलेशन ” तकनीक से होता है।
एफ एम रेडियो स्टेशन अत्यंत उच्च आवृत्ति (VHF) पर प्रसारण करते हैं। इसी कारण एफ एम रेडियो ट्रांजिस्टर पर मेगा हर्टूज MHz लिखा रहता है. जबकि मीडियो वेव में किलो हर्दूज में KHz मीटर को अभिव्यक्त किया जाता है।
प्रश्न 8 रेडियो कोड एवं संकेत
रेडियो के संदेश जिन संकेतों एवं उनसे बने “कोड” के ज़रिए प्रेषित होते हैं. उन पर विस्तार से चर्चा की जाएगी। इस इकाई के भाग 5.3, (अन्य माध्यमों की तुलना में रेडियो ) में हम जान ही चुके हैं कि आपसी बातचीत में हमारे संदेश पहुंचाने वाले कोड होते हैं: भाषा, चेहरे के हावभाव एवं अंगसंचालना छपे माध्यम में ” कोड होते हैं : ‘लिखित शब्द” चित्र “फोटो सारणी-ग्राफ आदि।
दृश्य माध्यमों जैसे फिल्म एवं टेलीविजन में तस्वीरें : -संवाद” और परदे पर आने वाले केप्शन’ कोड का काम करते है।
इसी तरह रेडियो के कोड हैं ‘शोर’ और मीन”शोर स्वयं शब्दों, ध्वनियों और संगीत से मिलकर बनता है। इन पर बात आगे बढ़ाने से पहले संकेतों के वर्गीकरण पर गौर सकते हैं।
संकेतों के वर्गीकरण का कार्य अमेरिकी दार्शनिक श्री सी.एस. पीर्स ने किया था। पीर्स के अनुसार वह संकेत जो किसी पदार्थ के समरूप होता हे आइकान या बिम्ब कहलाता जैसे कि फोटोग्राफ।
जो संकेत किसी पदार्थ से किसी क्रम के अनुसार जुड़ा होता है सूचक” या इन्डेक्स कहलाता है जैसे धुआं: आग का सूचक हे।
वह संकेत जो किसी पदार्थ से न कोई संबंध रखते हैं.नही समरूपता. किंतु पदार्थका प्रतिनिधित्व करते हैं. प्रतीक या सिम्बल कहलाते हैं जैसेकि तिरंगा झंडा भारत देश का प्रतीक है।
अब रेडियो के श्रव्य संकेतों ओर कोड पर अलग अलग विस्तार से चर्चा करते हैं।
प्रश्न 9 आँखों देख हाल (कमेंट्री)
अब आप समझ गए होंगे कि आँखों देखा हाल या कमेंट्री से हमारा क्या तात्पर्य है? आँखों देखा हाल का संबंध सार्वजनिक महत्व की घटनाओं के सजीव वर्णन से होता है। आपने तरह-तरह के खेल तथा मुख्य राष्ट्रीय घटनाओं की कमेंट्री सुनी होगी।BHDS 184 Free Assignment In Hindi
मसलन, पन्द्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी, सैनिक परेड, प्रमुख सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव, क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी आदि खेलों और किसी महान व्यक्ति की मृत्यु पर उसकी शोभा यात्रा का वर्णन।
कमेंट्री को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-(1) सार्वजनिक महत्व की घटना (2) खेल संबंधी कमेंट्री।
सार्वजनिक महत्व की घटना की कमेंट्री में स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, विदेश से आये अतिथि का नागरिक अभिनन्दन और महान विभूति की मृत्यु की शोभा यात्रा आदि की कमेंट्री शामिल की जाती है।
खेल-कमेंट्री के अंतर्गत महत्वपूर्ण खेलों का आँखों देखा हाल प्रसारित किया जाता है, मसलन क्रिकेट, फुटबॉल, हाकी आदि। आपने विभिन्न मैचों का रसास्वादन कमेंट्री के माध्यम से जरूर किया होगा।
आँखों देखा हाल या कमेंट्री की उपयोगिता :
आँखों देखा हाल किसी स्थान पर घट रही घटना को श्रोताओं तक पहुँचाता है। सभी व्यक्ति सभी स्थान पर नहीं जा सकते। सबके पास इतना साधन नहीं होता और जिनके पास साधन होता है, उनके पास समय नहीं होता।
आज इलैक्ट्रानिक संचार का यग है। रेडियो इस इलैक्ट्रानिक संचार का प्रमुख माध्यम है। इस माध्यम के जरिए श्रोता और घटना विशेष को जोड़ा जाता है।
कमेंट्री इसमें प्रमुख भूमिका निभाती है। रेडियो दुनिया … भर में अनगिनत लोगों को यह आभास करा देता है कि वे अपने घर के किसी भी कमरे में बैठे ही दुनिया भर के सम्पर्क में हैं।
समाचार पत्र तो केवल दुनिया को समाचार दे पाता है, किन्तु रेडियो पर आँखों देखा हाल दुनिया के किसी भी भाग में घटित होने वाली घटनाओं को आँखों के सामने जैसे का तैसा प्रस्तुत कर देता है।
इससे श्रोता कहीं भी घटने वाली उस घटना से उसी प्रकार संपर्क में आ जाता है, जिस प्रकार उस स्थल पर बैठे हुए लोग। BHDS 184 Free Assignment In Hindi
प्रश्न 10 कम्पीयरिंग
जैसे ही उद्घोषक रेडियो केन्द्र की फ़िक्वेन्सी इत्यादि बताकर किसी कार्यक्रम को उद्घोषणा करता है जेसे कि-लीजिए अब प्रस्तुत हे महिलाओं का कार्यक्रम घर संसार वेसे हो कम्पीयर की भूमिका प्रारंभ हो जाती है। कम्पीयरिंग यानीकि कार्यक्रम का प्रस्तुतिकरण।
कम्पीयर को, “एन्कर भी कहते हैं और उर्दू में मेजबान तथा अंग्रेजी में ‘होस्ट भी। कम्पीयर की भूमिका समझने के लिए हम किसी कवि सम्मेलन का उदाहरण ले सकते हैं।
वहां मंच संचालक की भूमिका होती हे सामने बेठे हजारों श्रोताओं के सामने बारी बारी से कवियों को बुलाता. उनकी कविता से जनता को परिचित कराना।
जो कविता सुनाई गई है उसी के समानांतर अन्य कबिता पंका तयां सुनाना। कह सोच विचार कर कवियों को बुलाता है कि माहोल जमा रहे। जरूरत के अनुसार वह रोचक किस्से भी सुनाता है. लतोफे भी।
कवि सम्मेलन को सफलता बहुत कुछ उस पर भी निर्भर करती है। लगभग इसी प्रकार रेडियो कार्यक्रम का कम्पीयर, हजारों श्रोताओं को उन आइटमों की बढ़िया भूमिका बनाकर पेश करता है जो उस कार्यक्रम में सुनाए जाने हैं। BHDS 184 Free Assignment In Hindi
वह गीत संगीत भी सुनाता है तथा अपनी ओर से भी कई सारी सूचनाएं व जानकारियां बताता है। कार्यक्रम की सफलता बहुत कुछ उसकी कम्पीयरिंग पर निर्भर करती है।
BHDS 183 Free Assignment In Hindi Jan 2022