BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi 2022- Helpfirst

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BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

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BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi jan 2022

प्रश्न 1. समाचार लेखन की प्रक्रिया और शैली पर प्रकाश डालिए।

उत्तर समाचार लेखन समाचार पत्रों में सबसे बुनियादी किस्म का लेखन है। समाचार पत्रों में काम करने के इच्छुक सभी लोगों को समाचार लेखन की प्रक्रिया से अवगत होना ज़रूरी है।

समाचार लेखन के साथ अच्छी बात यह है कि इसकी गिनी-चुनी शैलि हैं और उनमें भी एक शैली-उल्टा पिरामिड (इन्वर्टेड पिरामिड) शैली सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रचलन में है। सभी समाचार पत्रों में प्रायः उसका पालन होता है।

(1 उल्टा पिरामिड शैली उल्टा पिरामिड शैली समाचार लेखन की सबसे पुरानी, पारम्परिक और स्वीकार्य शैली है। दुनिया भर के समाचार मीडिया, चाहे अखबार हो या रेडियो या टी.वी में समाचार लेखन की यही शैली लोकप्रिय है।

इस शैली का इस्तेमाल 19वीं सदी के मध्य से ही शुरू हो गया था लेकिन इसका विकास अमेरिकी गृह-युद्ध के समय हुआ।

इस शैली के विकास और उसकी लोकप्रियता के पीछे कई कारण थे जिनमें प्रमुख हैं- पाठकों की उत्सुकता के अनुकूल होना, संपादन में सुविधा और उसका लचीलापन।

उल्टा पिरामिड शैली किसी समाचार को लिखने की वह शैली है जिसमें किसी घटना/विचार/समस्या के सबसे अहम और नये तथ्यों या सूचनाओं को सबसे पहले लिखा जाता है और उसके बाद घटते हुए महत्व क्रम में अन्य तथ्यों/सूचनाओं को लिखा जाता है।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

इस शैली में किसी घटना का ब्यौरा कालानुक्रम के बजाय सब महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरू होता है।

यह शैली कथा या कहानी लेखन की उस प्रक्रिया के ठीक उलट है जिसमें कहानी कालानुक्रम से आगे बढ़ती हुई क्लाइमैक्स यानी चरम तक पहुंचती है।

कथा या कहानी लेखन को अगर सीधा पिरामिड मान लिया जाए तो समाचार लेखन में यह ढांचा उलट दिया जाता है। समाचार सीधे क्लाइमैक्स से शुरू होता है।

इसके बाद घटते हुए महत्व क्रम में सूचनाएं दी जाती हैं। इस तरह से यह शुरू तो सबसे प्रमुख बिंदु से होता है लेकिन उसका समापन कहीं भी हो सकता है।

उल्टा पिरामिड शैली के तहत लिखे गए समाचार के ढांचे को मुख्यतः तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है- मुखड़ा या इंट्रो/लीड, बॉडी और समापन।

मुखड़ा या इंट्रो आमतौर पर समाचार की पहली तीन-चार पंक्तियों या पहले पैराग्राफ को कहा जाता है। इसके बाद की पंक्तियों में खबर के अन्य ब्यौरे बॉडी में आते हैं और उसके बाद खबर कहीं भी समाप्त हो जाती है।

खबर को औपचारिक रूप में समाप्त करने की घोषणा नहीं करनी पड़ती है। कहने की जरूरत नहीं है कि उल्टा पिरामिड शैली में मुखड़ा या इंट्रो लेखन से महत्वपूर्ण होता है क्योंकि वास्तव में वहीं समाचार होता है।

मुखड़ा से ही पूरे समाचार के मिजाज और उसके प्रवाह की दिशा तय होती है। मुखड़ा लेखन के लिए न सिर्फ भाषा पर पूरा अधिकार होना चाहिए, बल्कि समाचार को पहचानने की भी गहरी समझ होनी चाहिए।

एक आदर्श मुखड़े में किसी समाचार की सबसे महत्वपूर्ण सूचना आ जानी चाहिए और उसे किसी भी स्थिति में 35 से 50 शब्दों और तीन-चार वाक्यों से अधिक नहीं होना चाहिए । वाक्यों को छोटा, सरल और सहज होना चाहिए।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

(2 रेतघड़ी शैली : रेतघड़ी शैली में उल्टा पिरामिड शैली और कथा लेखन शैली यानी दोनों का मिश्रण होता है। वैसे इस शैली का प्रयोग कम होता है लेकिन खेल, सांस्कृतिक प्रधान विवरणों की प्रस्तुति में यह शैली प्रभावी मानी जाती है।

इस शैली में समाचार के मुखड़े की शुरुआत उल्टा पिरामिड शैली में होती है यानी सबसे महत्वपूर्ण बातें पहले पैराग्राफ या शुरू के दो-तीन पैराग्राफ में आ जाती है। उसके बाद समाचार को एक कथा की तरह शुरू से कालानुक्रम में लिखा जाता है।

इसके लिए समाचार के पहले हिस्से और दूसरे हिस्से को जोड़ने के लिए एक पंक्ति लिखनी होती है जैसे -पूरा घटनाक्रम कुछ इस तरह से घटा’ या, ‘इससे पहले आज सुबह जब मैच शुरू हुआ तो सचिन तेंदुलकर और वीरेंद्र सहवाग ने पारी की शुरुआत की।

इस शैली को रेतघड़ी शैली इसलिए कहते हैं कि उल्टा पिरामिड से शुरू होकर यह कथा शैली की ओर मुड़ जाती है।

इस प्रक्रिया में समाचार के दोनों हिस्से रेतघड़ी की शक्ल में दिखते हैं। इस शैली में पाठक को कहानी का आनंद भी मिलता है और उसे लगता है जैसे पूरा घटनाक्रम उसके सामने चल रहा हो।

इस शैली में लिखे गए एक खेल समाचार पर ध्यान दीजिए – “कोलंबो, 15 अगस्त (एपी)। बाएं हाथ के सीमर चामिंडा वास ने आज घातक गेंदबाजी करते हुए छह विकेट लिए और श्रीलंका ने उनके इस प्रदर्शन की बदौलत दक्षिण अफ्रीका को दूसरे टेस्ट में 313 रनों से रौंद डाला।

इस जीत के साथ ही श्रीलंका ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सीरीज 1-0 से जीत ली। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ श्रीलंका की यह पहली जीत है।”

जीत के लिए 493 रनों का विशाल लक्ष्य लेकर खेल रही दक्षिण अफ्रीका टीम मैच के अंतिम दिन दूसरी पारी में सिर्फ 179 रनों पर ढेर हो गई।” इस मुखड़े के बाद खबर का विस्तार एक कथात्मक रूप ले लेता है, जिसमें उल्टा पिरामिड शैली की बजाय कथात्मक शैली का उपयोग किया गया है –

“एसएससी ग्राउंड पर दक्षिण अफ्रीका ने आज दो विकेट पर 21 रनों से आगे खेलना शुरू किया लेकिन श्रीलंका के तेज गेंदबाजों ने उसके शीर्ष क्रम के बल्लेबाजों को ध्वस्त कर दिया। लंच के समय तक दक्षिण अफ्रीका 5 विकेट पर 125 रन ही बना पाया था।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

वास ने पहले कल नाट आउट रहे जैक्स केलिस को आउट कर मेहमान टीम को करारा झटका दिया।

कैलिस ने तेजी से उठती हुई गेंद पर दूसरी स्लिप में खड़े तिलकरत्ने दिलशान को कैच दे दिया। कप्तान ग्रीम स्मिथ (17) भी दो ओवर बाद तेज गेंदबाज ललित मलिंगा का शिकार बने।

उन्होंने तिलान समरवीरा को शाट स्क्वेयर लेग पर कैच दे दिया और दक्षिण अफ्रीका का स्कोर चार विकेट पर 26 रन हो गया।

दक्षिण अफ्रीका का पांचवां विकेट भी इसी स्कोर पर गिर गया जब जैक्स रुडोल्फ वास की गेंद को पुल करने की कोशिश में गेंद को ठीक से टाइम नहीं कर पाए और डीप में खडे मलिंगा को कैच दे बैठे। उन्होंने एक रन बनाया।

प्रश्न 2. सांस्कृतिक फीचर लेखन के विषय क्षेत्रों को रेखांकित कीजिए।

उत्तर संस्कृति के अंतर्गत आमतौर पर मंचीय कलाएं आती हैं जिनमें गायन, वादन, नृत्य और अभिनय प्रमुख हैं चाहे वे शास्त्रीय हों या लोक।

इसके अलावा साहित्यिक संगोष्ठियों, कविता या कहानी पाठ, चित्रकला आदि को भी इसी के अंतर्गत रखा जाता है। हमारी फिल्में भी लोकचेतना जगाने और मनोरंजन के साधन के रूप में काफी लोकप्रिय हैं।

टेलीविजन का तेजी से प्रसार होने के कारण न सिर्फ ज्यादातर घरों में टेलीविज . सेट आ गए हैं बल्कि टी.वी चैनलों की भरमार हो गई है और चौबीसों घंटे कार्यक्रमों का प्रसारण शुरू हो गया है।

इस तरह फिल्में और टेलीविजन भी हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा बन गए हैं। सांस्कृतिक फीचर के दायरे में इन्हें भी शामिल किया जाता है। सिनेमा और टेलीविजन कार्यक्रमों पर फीचर की परंपरा काफी समृद्ध हुई है।

हर अखबार और पत्रिका इस क्षेत्र से संबंधित खबरों, कलाकारों से साक्षात्कार और कार्यक्रमों की समीक्षाएं प्रमुखता से प्रकाशित करने लगा है।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

लगभग सभी अखबार फिल्म और टेलीविजन कार्यक्रमों पर सप्ताह में एक दिन अलग से विशेष परिशिष्ट निकालने लगे हैं।

बाकी सांस्कृतिक आयोजनों की खबरें या तो दैनिक समाचारों के साथ प्रकाशित की जाती हैं या शहर के लिए अलग से निकाले जाने वाले परिशिष्ट में शामिल कर ली जाती हैं। इस तरह सांस्कृतिक आयोजनों पर फीचर लेखन की गुंजाइश काफी बढ़ी है।

सांस्कृतिक फीचर के लिए निम्नलिखित क्षेत्र से सम्बन्धि विषय चुने जा सकते हैं। 1 संगीत संगीत संबंधी फीचर के अंतर्गत गायन और वादन को लिया जा सकता है।

इसमें शास्त्रीय, लोक और इन दिनों प्रचलन में पॉप टॉक फ्यूजन संगीत और जैज भी शामिल हैं। संगीत के क्षेत्र में निरंतर नए प्रयोग हो रहे हैं।

शास्त्रीय संगीत के जानकार नए रागों की रचनाएं करने के साथ-साथ लोक संगीत को मिलाकर नयी तरह का संगीत रच रहे हैं। हिंदुस्तानी और कर्नाटक के मेल से नए राग और धुनें रचने के प्रयोग भी काफी पहले से हो रहे हैं।

अब यह दायरा सिर्फ अपने देश तक सीमित नहीं रह गया है। दूसरे देशों में प्रचलित लोक परंपराओं से भी संगीत उढ़ाकर हिंदुस्तानी संगीत में पिरोने की कोशिश की जा रही है।

इसमें जैज और दूसरे पश्चिी संगीत का काफी अच्छा मेल दिखाई देता है। इन दिनों फ्यूजन संगीत काप… लोकप्रिय हो रहा है।

(2 नृत्य नृत्य भी संगीत की ही एक विधा है, मगर पिछले काफी समय से इसने अपनी स्वतंत्र पहचान बना ली है। गायन और वादन की तरह नृत्य की भी दो धाराएं हैं- शास्त्रीय और लोक।

शास्त्रीय परंपरा में कथक, भरतनाट्यम, कथकलि, कुचिपुड़ी, ओडिसी, मोहिनी अट्टम आदि आते हैं।

लोक नृत्य हर प्रांत में अनेक रूपों में प्रचलित हैं। नृत्य नाटिका (बल) आदि प्रचलन महा नृत्य म गायन-वादन क साथ-साथ आभनय की भी गुंजाइश होती है। हमारे यहां कृष्ण लीला पर आधारित अनेक नर्तकों ने नृत्य संरचनाएं तैयार की हैं।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

इसी तरह बैले यानी नृत्य नाटिका चूंकि अभिनय प्रधान होती है, इसमें नाटक के तत्त्व काफी मात्रा में पाए जाते हैं। जब से फिल्मों में नृत्य का प्रचलन बढ़ा है, नए प्रयोग काफी होने लगे हैं। .

(3 अभिनय हालांकि अभिनय शब्द मुख्य रूप से नाटकों के लिए प्रयोग होता रहा है, लेकिन फिल्मों और टेलीविजन धारावाहिकों के प्रचलन से यह व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होने लगा है। अभिनय, नायक-नायिका, खलनायक, सहनायक या विदूषक किसी भी में हो सकता है।

नाटकों के बारे में अक्सर साहित्यिक कार्यक्रमों के अंतर्गत लिखा-पढ़ा जाता है। जबकि फिल्मों और टेलीविजन धारावाहिकों के बारे में मनोरंजन की विधाओं के अंतर्गत समीक्षा होती है।

यही वजह है कि ज्यादातर पत्र-पत्रिकाओं में आज भी जहां फिल्मों के लिए अलग से परिशिष्ट निकाला जाता है, नाटकों की समीक्षाएं साहित्यिक कार्यक्रमों के अंतर्गत ही की जाती है।

इस अर्थ में कहा जा सकता है कि आज भी नाटकों को फिल्मों और धारावाहिकों की अपेक्षा गंभीर विधा के रूप में देखा जाता है।

अभिनय संबंधी फीचर के अंतर्गत न सिर्फ अभिनय, बल्कि कथा-वस्तु, मंच-सज्जा, प्रकाश व्यवस्था, ध्वनि संयोजन, पार्श्व संगीत, परिधान, निर्देशन, संवाद शैली आदि पर भी विचार किया जाता है। फिल्मों और धारावाहिकों के संदर्भ में भी ये बातें लागू होती हैं।

नाटकों से इतर इन विधाओं में कैमरे का संचालन, स्थान का चुनाव, संपाद । कौशल आदि की भी समीक्षा की जाती है।

भिनय संबंधी फीचर लेखन मुख्य रूप से समीक्षात्मक होता है इसलिए इसमें अधिक शोध या आंकड़े एकत्र करने की जरूरत नहीं होती। BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

लेकिन फिल्मों और धारावाहिकों के अभिनेताओं-अभिनेत्रियों की लोकप्रियता को देखते हुए उनके बारे में दिलचस्प या गपशप जैसी बातें प्रकाशित करने का प्रचलन इधर कुछ समय से काफी तेजी से बढ़ा है।

इस तरह के फीचर पाठकों की रुचि को भुनाने की दृष्टि से उपयुक्त हो सकते हैं, चटखारे लेकर इन्हें पढ़ा भी जाता है, लेकिन ऐसे लेखन को गंभीर लेखन की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

इस तरह के चलताऊ फीचर लेखन के कारण ही हिंदी में गंभीर फिल्म समीक्षाएं लिखने की परंपरा विकसित नहीं हो पाई है। अभिनय संबंधी फीचर लेख. करने वाले को ऐसी सस्ती लोकप्रियता से बचना चाहिए।

(4 चित्रकला पहले माना जाता था कि चित्रकला महज सजावट की वस्तु है, लेकिन धीरे-धीरे यह धारणा टूटी है। साहित्य, संगीत और दूसरी मंचीय कलाओं की तरह चित्रकला और मूर्तिकला भी अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है।

अन्य विधाओं में शब्दों और भंगिमाओं के जरिए अभिव्यक्ति की जाती है तो चित्रकला में रंगों और रेखाओं के माध्यम से दूसरी कलाओं की तरह ही चित्रकला में भी नित नए प्रयोग हो रहे हैं और हाल के वर्षों में उसका बाजार भी बना है। आधुनिक कलाकृतियां खासी मंहगी बिकने लगी हैं।

लोक चित्रकला शैलियों को आधुनिक शैलियों के साथ मिला कर नया रचने की कोशिश भी की जा रही है।

यहां तक कि इसमें भित्ति-चित्र, संस्थापन, छापा चित्र, फोटोग्राफी आदि को भी एक-दूसरे के साथ मिला कर नए प्रयोग किए जा रहे हैं। चित्रकला अब रंगों और रेखाओं के अलावा धातु, चमड़ा, कांच, मिट्टी, लकड़ी आदि जरिए भी बनाई जा रही है।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

इधर रद्दी की टोकरी में फेंक दी जाने वाली वस्तुओं के इस्तेमाल से भी रचनाएं तैयार करने का प्रचलन बढ़ा है। भवनों के नक्शे तैयार करने और उनकी आंतरिक साजसज्जा में भी चित्रकला की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो रही है।

(5 साहित्य अखबारों-पत्रिकाओं में आमतौर पर साहित्यिक गोष्ठियों की खबरें प्रकाशित होती हैं, लेकिन रविवारी या विशेष परिशिष्टों में साहित्यकारों या साहित्यिक विधाओं पर लेख लिखने की परंपरा भी है।

साहित्य के लिए अलग से अनेक पत्रिकाएं निकलती है. इसलिए अखबारों में साहित्य पर उतना जोर नहीं होता जितना साहित्यिक पत्रिकाओं में होता है।

कई अखबार इस आधार पर साहित्य संबंधी फीचर और लेख प्रकाशित करने की परंपरा को बंद कर चुके हैं। फिर भी लिखित साहित्य के साथ-साथ मौखिक साहित्य की परंपरा पर अक्सर उनमें कुछ न कुछ प्रकाशित होता ही रहता है। लिखित साहित्य के अलावा लोक में अब भी मौखिक साहित्य की काफी समृद्ध परंपरा है।

लिखित साहित्य की अधिकता और प्रकाशन संबंधी सुविधाओं के कारण लोक और मौखिक की परंपरा धुंधली होती जा रही है। देवेंद्र सत्यार्थी जैसे कुछ लोगों ने गांव-गांवघूम कर लोक और मौखिक साहित्य को लिपिबद्ध करने का काम किया।

(6 फैशन और रहन-सहन संस्कृति के क्षेत्र में इन दिनों फैशन एक महत्त्वपूर्ण विषय के रूप में उभर कर आया है। पत्र-पत्रिकाएं और टेलीविजन चैनल फैशन पर फीचर अधिक देने लगे हैं।

हालांकि इसकी एक बड़ी वजह फैशन उद्योग में लगी कंपनियों के विज्ञापन पाने की मंशा भी है। लेकिन फैशन अब हमारे जीवन में काफी गहराई तक प्रवेश कर चुका है और इसे नजरअंदाज कर पाना मुश्किल है।

आमतौर पर फैशन का अर्थ पहनावे और रहन-सहन से लगाया जाता है, लेकिन यह इतने तक सीमित नहीं है।

कपड़ों की डिजाइन से लेकर महिलाओं के आभूषण, सौंदर्य प्रसाधन, नेल पॉलिश, बैग, कपड़ों और बालों की स्टाईल, चलने का तरीका, सजने-संवरने की शैलियों तक को लेकर अध्ययन हो रहे हैं।

फैशन उद्योग में लगी कंपनियां फैशन शो आयोजित कर अपने उत्पाद के प्रचार-प्रसार और लोगों को उनके प्रति आकर्षित करने की कोशिश करती हैं।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

इसके लिए वे मीडिया का सहारा लेती हैं। सौंदर्य प्रतियोगिताओं, भूमंडलीकरण और फैलते बाजार के इस दौर में फैशन संबंधी फीचर काफी प्रचलन में हैं।

खंड – ख

प्रश्न 3. समाचार संकलन क्या है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर मोटे तौर पर समाचार का अर्थ नई घटना से लगाया जाता है। हर पल कोई न कोई नई घटना घटती है और वह किसी न किसी रूप में समाचार होती है।

जब आप किसी से बहुत दिनों या काफी देर बाद मिलते हैं तो बातचीत शुरू करते हुए पूछते हैं, ‘क्या हालचाल है’ या ‘क्या नई खबर है?’ अक्सर लोगों को यह भी पूछते सुना जाता है कि ‘क्या समाचार है’ या ‘और सुनाइए, क्या चल रहा है?’

यानी न सिर्फ हर कहीं न कहीं कोई न कोई नई घटना घटती और समाचार बनती है, बल्कि हर व्यक्त्ति में हर पल नया कुछ जानने की जिज्ञासा बनी रहती है। व्यक्ति के भीतर नई घटनाओं के बारे में जानने की इसी भूख के कारण मीडिया का विस्तार होता रहता है।

मगर मुश्किल यह है कि हर घटना को प्रकाशित-प्रसारित कर पाना किसी भी संचार माध्यम के लिए संभव नहीं है।

इसलिए हर पल घटने वाली घटनाओं में से ऐसी खबरों को छांटना होता है जो व्यापक जनता के हित में हों, उनका किसी न किसी रूप में समाज पर असर पड़ता हो या उन्हें जानना जरूरी हो।।

जैसा कि ऊपर कहा गया है, समाज में हर पल कोई न कोई घटना घटती रहती है और वह समाचार हो सकती है, इसलिए समाचारों का संकलन खासा पेचीदा काम हो जाता है। हर संचार माध्यम की कोशिश होती है कि वह हर महत्वपूर्ण घटना पर नजर रखे।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

जिससे कोई ऐसी घटना छूट जाती है, उसे पिछड़ा हुआ मान लिया जाता है और आज जिस तरह संचार माध्यमों में, खासकर इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में, खबरों से जरिए ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की होड़-सी पैदा हो गई है उसमें समाचार संकलन को लेकर सतर्कता काफी बढ़ी है।

टी.वी. के समाचार चैनलों के विज्ञापनों में ‘सबसे तेज’, ‘नंबर वन’, ‘सबसे आगे जैसे जुमले यही बताने के लिए इस्तेमाल होते हैं।

मगर क्या किसी भी संचार माध्यम के लिए यह संभव है कि वह हर गांव, तहसील, जिले स्तर तक अपने संवाददाता भेज कर समाचारों का संकलन कर सके?

सामाजिक विषयों के अलावा केन्द्र, राज्य और पंचायत सरकारों के फैसलों, खेल और उद्योग जगत की सूचनाओं पर भी नजर रखनी होती है। क्या हर माध्यम के लिए यह संभव है कि वह केन्द्र और सभी राज्यों के हर मंत्रालय और विभाग तक अपने संवाददाता को भेज सके?

दुनिया के तमाम देशों में कुछ न कुछ घटनाएं घटती रहा… हैं जो लोगों की रुचि का विषय हो सकती हैं। विभिन्न देशों की सरकारें राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मसलों पर आए दिन फैसले करती रहती हैं।

जरा सोचिए, क्या किसी भी संचार माध्यम के लिए अपने नियमित संवाददाताओं के जरिए उन्हें जुटा पाना संभव है? इसी तरह विभिन्न खेलों और औद्योगिक समूहों, बाजार के बदलते राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मसलों पर आए दिन फैसले करती रहती हैं।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

जरा सोचिए, क्या किसी भी संचार माध्यम के लिए अपने नियमित संवाददाताओं के जरिए उन्हें जुटा पाना संभव है? इसी तरह विभिन्न खेलों और औद्योगिक समूहों, बाजार के बदलते रुख से संबंधित समाचार जुटाना भी मुश्किल काम हो सकता है।

इसीलिए कोई संचार माध्यम समाचारों के लिए सिर्फ अपने नियमित संवाददाता पर निर्भर नहीं रह सकता। कई स्थानों पर उन्हें अंशकालिक संवाददाता यानी स्ट्रिंगर रखने होते हैं।

विभिन्न एजेंसियों की मदद लेनी पड़ती है। आप में से बहुत से लोगों को पता होगा कि हमारे देश में प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) और यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) दो प्रमुख समाचार एजेंसियां हैं (पत्र-पत्रिकाओं, टेलीविजन चैनलों को हिन्दी और अंग्रेजी में समाचार उपलब्ध कराती हैं।

इस तरह एसोसिएटेड प्रेस (एपी)एजेंसे फ्रांस प्रेस (एएफपी), रायटर, जैसी अनेक विदेशी समाचार एजेंसियां हैं जो विभिन्न संचार माध्यमों को खबरें बेचती हैं।

पहले एजेंसियां टेलीप्रिंटर के जरिए विभिन्न संचार माध्यमों तक खबरें पहुंचाती थीं जिसके लिए उन्हें भारतीय टेलीग्राफ विभाग से लाइन लेनी पड़ती थी।

यह तरीका अब भी काम में लिया जाता है, मगर जबसे इंटरनेट का प्रचलन अस्तित्व में आया है, उपग्रह के जरिए खबरें पहुँचाना आसान हो गया है।

टेलीग्राफ के जरिए विदेशी एजेंसियों से समाचार मंगाना पहले सभी संचार माध्यमों के लिए संभव नहीं था। अब इंटरनेट के जरिए यह काम आसान हो गया है। आइए, पहले जानते हैं कि समाचारों के संकलन का तरीका क्या होता है।

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प्रश्न 4. भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में मनाए जा रहे ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ पर फीचर तैयार कीजिए।

उत्तर- 15 अगस्त 1947 एक ऐसी तिथी है जिसे हमारे इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखा गया है। एक ऐसा दिन जब भारत आज़ाद हुआ, अंग्रेज़ भारत छोड़ने पर मजबूर हो गये थे।

हमें दो सौ साल कि गुलामी से आज़ादी मिली थी, तो जश्न भी उतना ही बड़ा होना था और शायद यही वजह है कि आज भी हम इसे उतने ही धूम-धाम से मनाते हैं। भारत दशकों से ब्रिटिश शासन के अधीन था। उस दौरान अंग्रेजों के अत्याचार समय के साथ बढ़ते चले जा रहे थे।

बाल गंगाधर तिलक, शहीद भगत सिंह, महात्मा गांधी, सरोजिनी नायडू, रानी लक्ष्मी बाई और सुभाष चंद्र बोस जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के नेतृत्व में, भारत के नागरिकों ने एकजुट होकर अपनी आजादी के लिए संघर्ष किया। स्वतंत्रता सेनानियों के नेतृत्व द्वारा बहुत से आंदोलनों, स्वतंत्रता संग्रामों की शुरुआत की गई।

इन आंदोलनों के कारण कई लोगों को अपने प्राणों की आहुती देनी पड़ी तो कईयों को जेल जाना पड़ा, हालांकि फिर भी लोगों ने ब्रिटिश हकूमत के खिलाफ़ लड़ने की अपनी इस भावना को नहीं छोड़ा।

स्वतंत्रता दिवस पर यह हमें उनके उन बलिदानों की याद दिलाता है और हमारे देश के नागरिकों के लिए विशेष महत्व रखता है BHDG 173 Free Assignment In Hindi

स्वतंत्रता दिवस का स्वर्णिम इतिहास—अंग्रेजों के भारत पर कब्जे के बाद हम अपने ही देश में गुलाम थे। पहले सब कुछ हमारा था जैसे कि धन, अनाज, ज़मीन परंतु अंग्रेजों के आने के बाद किसी चीज़ पर हमारा अधिकार नहीं था।

वे मनमाना लगान वसूलते और जो मन उसकी खेती करवाते जैसे नील और नकदी फसलों की खेती आदि।

ऐसा खास तौर पर बिहार के चंपारण में देखा गया। हम जब भी उनका विरोध करते हमें उससे भी बड़ा जवाब मिलता, जैसे कि जलियांवाला बाग हत्याकांड।

प्रतारण की कहानियों की कमी नहीं है और न ही कमी है हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के साहस पूर्ण आंदोलनों की, उनके अथक प्रयासों का ही नतीजा है कि आज हमारे लिए यह इतिहास है।

अंग्रेजों ने हमें बुरी तरह लूटा, जिसका एक उदाहरण कोहिनूर भी है, जो आज उनकी रानी की ताज कि शोभा बढ़ा रहा है।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

लेकिन हमारे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर आज भी सबसे कुलीन है और शायद यही वजह है कि आज भी हमारे देश में अतिथियों को देवताओं की तरह पूजा जाता है और जब-जब अंग्रेज भारत आएंगे हम उनका स्वागत करते रहेंगे लेकिन इतिहास का स्मरण करते हुए।

स्वतंत्रता सेनानीयों का योगदन हमारे स्वतंत्रता सेनानी जैसे गांधी जी, जिनका आज़ादी के संघर्ष में अतुल्य योगदान रहा है और वे सबसे लोकप्रिय भी थे।

उन्होने सबको सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया और वह अहिंसा ही था, जो सबसे बड़े हथियार के रूप में उभरा और कमज़ोर से कमज़ोर व्यक्ति के जीवन में भी उम्मीद के दीपक जलाए।

गांधी जी ने देश से कई कुप्रथाओं को हटाने के कुलजोर प्रयास किये और सभी तबकों को साथ लाया, जिसकी वजह से यह लड़ाई और आसान हो गई। उनके लिये लोगों का प्यार ही था जो लोग उन्हें लोग बापू बुलाते थे।

साइमन कमीशन के विरोध में सब शांतिप्रिय तरीके से विरोध कर रहे थे, लेकिन इसी बीच अंग्रेजों ने लाठी चार्ज शुरू कर दिया और इसमें लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई।

इससे आहत होकर भगत सिंह, सुख देव, राजगुरू ने सांडर्स की हत्या कर दी और बदले में इन्हें फ़ासी की सजा हुई और वे हंसतेहंसते फ़ासी की तख्त पर चढ़ गए

आजादी की इस लड़ाई में सैकड़ों ऐसे नाम हैं जैसे सुभाष जन्द्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, मंगल ५.८, रानी लक्ष्मीबाई, गणेश शंकर विद्यार्थी, राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि जिनके योगदान अतुलनीय हैं।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

प्रश्न 5. पर्यावरण जागरूकता संबंधी फीचर की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तरवैज्ञानिक शोधों, अनुसंधानों और उपलब्धियों के चलते जहां दैनिक जीवन में अनेक सुविधाएं प्राप्त हुई हैं वहीं औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले रासायनिक धुएं, कचरे, गंदे पानी और शोर के कारण वायु, ध्वनि और भू-प्रदूषण काफी तेजी से बढ़ा है।

औद्योगिक इकाइयों के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों को फेफड़ों, सांस और त्वचा संबंधी अनेक समस्याएं पैदा हुई हैं। पर्यावरण प्रदूषण के कई कारण हैं, जिनमें एक कारण बढ़ती जनसंख्या भी है।

जनसंख्या बढ़ने से लोगों के रहने के लिए घर, भोजन के लिए खाद्य उत्पादन और दूसरी सुविधाओं की आवश्यकता भी लगातार बढ़ी है। इसके चलते लगातार जंगल कट रहे हैं।

अनेक वनस्पतियां, पेड़-पौधे और जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। हमारा पारिस्थितिकी संतुलन गड़बड़ा रहा है। कंकरीट के मकानों और सड़कों का विस्तार हो रहा है।

धरती की सतह का काफी बड़ा हिस्सा कंकरीट से ढक रहा है जिससे वर्षा जल का अधिकांश हिस्सा जमीन के भीतर जाने की बजाय बह कर व्यर्थ चला जाता है।

औद्योगिक इकाइयां वातावरण में अनेक रासायनिक गैसों के घुलने से प्राकृतिक गैसें नष्ट हो रही हैं जिसका प्रभाव हमारे मौसम पर पड़ रहा है।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

इससे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है सूर्य की घातक किरणों को थामने वाली ओजोन की परत क्षरित हो रही है। इसके अलावा कृषि उत्पादन को बढ़ाने के उद्देश्य से खाद को लेकर नए-नए प्रयोग हो रहे हैं।

लेकिन इसका परिणाम यह हुआ है कि उत्पादन में तो जरूर कुछ बढ़ोतरी हुई है मगर जमीन की उर्वरा शक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ा है।

पर्यावरण संबंधी जागरूकता पैदा करने की दिशा में कई सरकारी और गैरसरकारी संगठन काफी समय से प्रयासरत हैं, विद्यालयों में पर्यावरण शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है लेकिन इसका अपेक्षित परिणाम नजर नहीं आ रहा।

जैसा कि हमने ऊपर का है, दुनिया के अधिकांश देश पर्यावरण प्रदूषण को कम करने और पारिस्थिति संतुलन कायम करने के मकसद से एकजुट होकर प्रयास कर रहे हैं।

औद्योगिक विकास के साथ-साथ उन तकनीकी पक्षों पर भी ध्यान दिया जा रहा है जिससे पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को रोका जा सके।

लेकिन पर्यावरण के प्रति जब तक जमीनी स्तर पर जागरूकता पैदा नहीं होती, साधारण जनता में इसके प्रति सजगता का भाव पैदा नहीं होता, इस समस्या से निपटना आसान नहीं होगा।

पर्यावरण संबंधी फीचर लिखने वालों की यह बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि वे समस्याओं को उठाते हुए उनके प्रति लोगों में सजगता पैदा करें। कई बार सिर्फ समस्याओं के सामने रख देने भर से लोगों में उसके प्रति जागरूकता नहीं आ पाती इसलिए उस उपायों पर भी प्रकाश डालना जरूरी हो जाता है।

पर्यावरण और पारिस्थितिकी के संबंध में फीचर लिखने वालों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे इस दिशा में दुनिया भर में चल रहे प्रयासों के बारे में भी जानकारी उपलब्ध कराएं।

प्रश्न 6. महिला लेखन के परिप्रेक्ष्य पर विचार कीजिए।

उत्तर महिलाओं पर लिखते समय सबसे पहली चीज यह है कि उनके बारे में बने-बनाए मिथकों को तोड़ा जाए। उनके जीवन पर रहस्य का जो पर्दा पड़ा हुआ है उसे हटाया जाए। उनकी पहचान और सम्प्रेषण के नए-पुराने रूपों को जाना जाए।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

भारतीय स्त्री की आधुनिक छवि और आधुनिक चेतना के निर्माण में महात्मा गांधी के नेतृत्व में चले स्वाधीनता संग्राम, महिला आन्दोलन, विश्वव्यापी महिला जागरण की लहर और समाजवादी विचारों की केन्द्रीय भूमिका रही है।

महिला आन्दोलन के विकास पर स्त्री जागरूकता का सारा दारोमदार टिका है। यह संभव ही नहीं है कि महिलाओं के हितों की रक्षा के संघर्ष के बिना महिला जागरण पैदा हो। महिला आन्दोलन वास्तविक में स्त्री जागरण की धुरी है।

महिला आन्दोलन के विकास के लिए जनतंत्र का चौतरफा विकास करना जरूरी है। पितृसत्तात्मक मूल्यों और संरचनाओं के प्रति जागृति पैदा की जानी चाहिए।

स्त्री अस्मिता के निर्माण के लिए पहली शर्त है कि स्त्री-पुरुष के बीच समानता की धारणा को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किया जाए।

उन तमाम सवालों, स्थितियों और संरचनाओं को चुनौती दी जाए जो स्त्री-पुरुष के बीच असमानता की खाई पैदा करते हैं। परंपरागत नजरिए से स्त्री को सौन्दर्य, प्रकृति, पवित्रता, अच्छाई, अनुकरणकर्ता के रूप में महिमामंडित किया गया है।

इसके अलावा स्त्री के प्रति हमारे समाज में निषेध प्रचलन में हैं। स्त्री के लिए प्रचारित निषेधों के कारण उसका सामाजिक दायरा संकुचित हुआ है।

स्त्री को पुरुष संदर्भ के जरिए परिभाषित करने की परंपरा चल निकली, जिसके कारण स्त्री के प्रति परंपरागत और रूढ़िवादी नजरिए का प्रयोग किया जाता रहा है।

स्त्री की आधुनिक पहचान के लिए जरूरी है कि उसे स्त्री-संदर्भ में देखा जाए उसके जीवन के अन्तर्विरोधों की स्त्री-संदर्भ में मीमांसा की जाए। उसके पराश्रित भाव को चुनौती दी जाए। मां, बहन, पत्नी से पहले वह स्त्री है, इंसान है, व्यक्ति है।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

इसके लिए जरूरी है कि स्त्री की अस्मिता को तयशुदा स्त्री-पहचान के रूपों से बाहर लाकर चित्रित किया जाए। यह भी ध्यान रहे कि स्त्री का संघर्ष बहुआयामी होता है। उसे कभी एकायामी नजरिए से नहीं देखना चाहिए।

सामान्य तौर पर जिन चीजों को छोटा मानकर अमूमन उपेक्षा की जाती है, स्त्री के लिए वे चीजें महत्वपूर्ण होती हैं। स्त्री अस्मिता का संघर्ष छोटे-छोटे मसलों में ही सबसे पहले अभिव्यक्ति पाता है।

उसकी जिन्दगी की छोटी-छोटी ख्वाहिशें, छोटी-छोटी चीजों की इच्छाएं बड़े परिवर्तनों को जन्म दे सकती हैं। स्त्री की पहचान को स्थापित करने के संघर्ष का पहला चरण वह है जिसमें स्त्री अपने को अभिव्यक्त करे। दूसरा चरण वह है जिसमें वह लिखे।

ये दोनों चरण क्रमशः और एक साथ चल सकते हैं। इस क्रम में स्त्री अपना सामाजिक स्थान बनाती है, समाज में अपनी जगह बनाती है, निजी को सामाजिक करती है।

इसका अर्थ यह है कि स्त्री संबंधी विषयों पर लिखते समय कोशिश होनी चाहिए कि स्त्री ज्यादा से ज्यादा अपने को व्यक्त करे।

पुरुष जिन सवालों को महत्वपूर्ण मानता है, जरूरी नहीं है कि स्त्रियों के लिए भी वे उतने ही महत्वपूर्ण हों। स्त्री पर फीचर लिखते समय यथार्थ के एकायामी चित्रण की बजाय समग्र स्त्री रूप पर जोर दिया जाना चाहिए।

स्त्री के सार्वभौम रूप की बजाय विशिष्ट रूप पर जोर दिया जाना चाहिए। स्त्रियों में अनेक सामाजिक वर्ग हैं।

इनमें स्वभावगत, मूल्यगत और संस्कारगत अंतर होता है। इस भिन्नता को ओझल नहीं करना चाहिए। स्त्री को मूलतः लैंगिक के रूप में देखना चाहिए। BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

लिंग या लैंगिकता का अंग्रेजी में पर्यायवाची शब्द है। जेंडर, इसके पर्यायवाची के रूप में सेक्स (यौन), ‘सेक्सुअल डिफरेंस (लैंगिक या यौन भिन्नता) पदबंधों का इस्तेमाल किया जाता है।

इतिहासकारों में लैंगिक अध्ययन की परंपरा बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में शुरू हुई। इसके पहले अध्ययन की परंपरा का जिक्र नहीं मिलता। साहित्य में लैंगिक अध्ययन पहले शुरू हुआ, समाजविज्ञान में इसका प्रयोग बाद में हुआ।

स्त्री के संदर्भ में लिंग पदबंध का ज्यों ही इस्तेमाल करते हैं इससे कई अर्थ व्यंजित होते हैं। पहला यह कि लिंग एक नहीं दो हैं। उनमें भी फर्क होता है। दूसरा अर्थ यह व्यंजित होता है लिंग सामाजिक संबंधों को व्यक्त करता है।

तीसरा अर्थ व्यक्त होता है कि इसमें उभयलिंगी अन्तर्विरोध निहित है। प्रसिद्ध नारीवादी लुइस इरीगरी ने लिखा है नई स्त्री न तो बंद है और न खुली है। वह अनिश्चित है, अधूरी है या यूं कहें कि कभी पूरी थी ही नहीं। उसकी अपनी कोई इकाई भी नहीं थी।

उसकी इमेज बनाने वाली अनेक चीजें हैं जिनमें उसका पूरा नाम, उसका अजनबीपन आदि सहज पहचान के आधार हैं। अधूरे रूप के कारण ही वह कभी भी कुछ भी बन जाती है।

उसे किसी भी रूप के जरिए पूरा नहीं किया जा सकता। बल्कि वह तो ऐसी चीज का विस्तार है जिसे किसी ने देखा ही नहीं है और न वह कभी वैसी होगी।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

‘इरीगैरय’ ने यह भी लिखा कि ‘जब वह किसी जगह हस्तक्षेप करती है तो उसे लिपिबद्ध करना बेहद कठिन होता है। उसने कभी स्त्री कि तरह देखा नहीं, स्त्री के प्रति अन्यमनस्क रही, अतः उसमें पुनः स्त्री की संवेदनाएं पैदा करना, निर्णायक हस्तक्षेप के बिना संभव ही नहीं है।

खंड -ग

प्रश्न 7. आर्थिक फीचर क्या है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर किसी देश, समाज या संपूर्ण विश्व की आर्थिक स्थिति के संबंध में लिखा गया फीचर आर्थिक फीचर कहलाता है। राजनीति और अर्थव्यवस्था का घनिष्ठ संबंध है।

शासन तंत्र के स्वरूप से आर्थिक नीति की दिशा निर्धारित होती है। समाजवादी शासनतंत्र की अर्थव्यवस्था अलग होगी जबकि पूंजीवादी शासनतंत्र की अर्थव्यवस्था अलग।

इसके अलावा राजनीति की स्टीयरिंग सीट पर बैठे राजनेता की सोच से अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। जब किसी देश की राजनीतिक स्थिति में परिवर्तन होता है तो उसका असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है।

इसी प्रकार जब देश में, बाढ़ का प्रकोप होता है और उत्पादन घट जाता है या निर्यात व्यापार कम हो जाता है तब राजनीति भी प्रभावित होती है। राजनीतिक स्थिरता के लिए अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होना आवश्यक है।

ऐसे कई उदाहरण हैं जब अर्थव्यवस्था डावांडोल होने पर सरकारें गिर गयीं या बदल गयीं। आर्थिक शक्ति ही देश की असली शक्ति है। किसी देश की शक्ति या प्रगति का अंदाजा केवल उसकी फौजी ताकत से नहीं लगाया जा सकता।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

इसके लिए प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय के आंकड़ों को देखा जाता है। यह भी देखना होता है कि सबको जीवन की बुनियादी आवश्यकताएं सुलभ हो रही हैं या नहीं। कृषि और औद्योगिक उत्पादन अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार स्तंभ हैं।

जब दोनों क्षेत्रों में स्थिति संतोषजनक होती है तभी देश खुशहाली की ओर बढ़ता है। जिस प्रकार साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है उसी तरह वाणिज्य व्यापार को अर्थव्यवस्था का दर्पण माना जाता है।

उत्पादन या औद्योगिक प्रगति के लाभ वाणिज्य व्यवसाय के जरिए ही जनसाधारण तक पहुंचता है। आप अच्छी तरह समझ गये होंगे कि देश के विकास में अर्थव्यवस्था का कितना महत्व है।

अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं की जानकारी समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाले आर्थिक लेखों या आर्थिक फीचर से हो सकती है।

यह सही है कि समाचार पत्रों का ध्यान आर्थिक फीचर की ओर जरा देर से गया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के इस युग में अब हिंदी समाचार पत्र लगातार आर्थिक फीचर प्रकाशित कर रहे हैं।

आर्थिक फीचर की परिपाटी अंग्रेजी अखबारों से शुरू हुई थी लेकिन इस फीचर का लाभ आम जनता को नहीं मिल पाता था।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

बाद में हिंदी के प्रमुख समाचार पत्रों ने धीरे-धीरे आर्थिक फीचर प्रकाशित करना शुरू किया। अब ऐसे फीचर लगातार छप रहे हैं। इन खबरों से जुड़े हुए सवाल और उनके विश्लेषण पाठकों के सामने पेश किये जाते हैं।

आर्थिक समाचारों की विवेचना फीचर में की जाती है जिससे पाठकों के सामने पेश किये जाते हैं। आर्थिक समाचारों की विवेचना फीचर में की जाती है जिससे पाठकों के सामने खबरों के पीछे और खबरों के आगे के प्रभाव का खुलासा हो सके।

प्रश्न 8. ‘पर्वतीय पर्यटन’ विषय पर फीचर तैयार कीजिए।

उत्तर- बचपन से ही मेरा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करते रहे हैं। दूर से किसी रूखे-सूखे टीले को देख, उसे पहाड समझ, मेरा जी करता रहा है कि भाग के उस पर चढ़ जाऊँ।

इस कारण पिछले वर्ष जब मुझे पर्वतीय स्थान की यात्रा का अवसर मिल तो मैं उसका नाम सुन कर ही फड़क उठा।

सोचा, बचपन से पर्वतों पर चढने की जो कल्पना करता आ रहा था, अब उसे पूरा कर पाने का अवमा मिलेगा। सचमुच, बडा ही आनन्द आ जाएगा।

आखिर निश्चित दिन हमारी यात्रा आरम्भ हुई। दिल्ली से देहरादून तक तो हमने रेल में यात्रा की। यहाँ तक की यात्रा में कोई खास रोमांच नहीं था।

हाँ, देहरादन की सीमा में प्रवेश करने पर ऊँचे-नीचे रास्तों, कहीं-कहीं पर्वत लगने वाले पठारों, खाइयों सफेदे (यूक्लिप्टिस) और देवदार के ऊँचे-ऊँचे वृक्षों ने ध्यान अवश्य आकर्षित किया।

वातावरण और भावों के रोमानी हो जाने की एक प्रकार से भूमिका भी बंधने लगी।

लेकिन असली पर्वतीय यात्रा तो देहरादून से आगे आरम्भ हुई कि जो हमें बस द्वारा पूरी करनी पड़ी। निश्चित समय पर यात्रा आरम्भ हुई।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

पूछने पर पता चला कि यदि पगडण्डियों के रास्ते चढ़ाई चढ़ पाने की शक्ति हो, तो देहरादून से मंसूरी पाँच-सात किलोमीटर से अधिक नहीं।

स्थानीय लोग अभ्यस्त होने के कारण प्रायः आते-जाते रहते हैं। लेकिन बस-मार्ग से जाने पर पच्चीस-तीस किलोमीटर से कम नहीं पड़ता। हमें तो बस-मार्ग से ही जाना था, सो बस चल पड़ी।

नगर से बाहर निकलकर बस ने जैसे ही अपना पहाड़ी रास्ता पकडा, मैं फटी-फटी आँखों से खिड़की के रास्ते चारों ओर बिखरा प्राकृतिक सौन्दर्य देखने-बल्कि पीने लगा।

बस जैसे कुम्हार के चरक पर चढ़ी ऊपर ही ऊपर उठ रहे रास्ते पर बड़ी सावधानी से घूमती या चढ़ती जा रही थी।

अभी जहाँ था, घूम कर फिर उसी स्थान पर आ जाती, पर पहले से काफ़ी ऊँची। यह मेरे लिए एकदम नया और पहला अनुभव था।

कहीं-कहीं सिर पर लकड़ियाँ या कुछ और लादे गीत गाती जातीं गरीब घरों की पहाड़ी औरतें भी पैदल चलती दिखाई दे जातीं। उनकी सुन्दरता जहाँ वातावरण को चार-चाँद लगाने वाली थी, गरीबी लज्जा से मस्तक झुका देने वाली थी।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

पहाड़ी घाटियाँ, उनमें उगे वृक्ष, झाड़ियाँ, पौधे, वनस्पतियाँ और ऊपर आकाश पर बार-बार उमड़-घुमड़ आने वाले बादल सभी कुछ बड़ा ही सुन्दर एवं मन को मोह लेने वाला था।

जब तक बस मसूरी के बस-स्टॉप पर पहुँची, वहाँ शाम ढलने लगी थी। बस के रुकते ही बड़े ही फटे हाल सामान ढोने वालों और होटलों के एजेण्टस ने हमें घेर लिया।

होटल के एजेण्टस का बनावटी सभ्यता का प्रदर्शन करने वाला व्यवहार जहाँ हमें खल रहा था, गरीब और लाचार कुलियों का व्यवहार मन द्रवित कर करुणा से भर रहा था।

कुली हमें यह आश्वासन दे रहे थे कि वे हमारा सामान उठा कर तो ले ही जाएँगे, हमें ठीक-ठाक जगह भी पहुँचा देंगे, जहाँ रहने-खाने का सस्ता और उचित प्रबन्ध होगा।

मैंने पिता जी से कह कर एजेण्टों की बजाए कुलियों की बात मानना ही उचित समझा। सचमुच कुलियों सामान उठा कर हमे ऐसे होटल में पहुंचा दिया, जो मुख्य रास्ते (माल रोटी हट कर अवश्य था; पर सस्ता और अच्छा था।

अभी हम कमरे में जाकर टिके कि मैंने खिड़की से बाहर देखा। घाटी में धुआँ-सा भरता जा रहा था और लगता कि वह हमारे कमरे की तरफ ही बढ़ा आ रहा है।

कुछ देर में सचमुच चारों तरफ घुप अन्धेरा हो गया और मुझे लगा कि वह धुआँ खिड़की के रास्ते भीतर भी घुस आया मोमो चकित देख पिता जी ने बताया कि ये बादल हैं।

पहाड़ों में ऐसे ही धुएँ के से बादल उमडा करते है। लगता है, जैसे हमारे घरों में घुसते आ रहे है। कुछ ही क्षण बाद रिमझिम-रिमझिम वर्षा आरम्भ हो गई और कोई आधे घण्टे बाद सारा वातावरण पहले का सा साफ हो गया। हाँ, लगता था कि आस-पास के वृक्ष-पर्वत आदि जैसे ताजे-ताजे नहा कर आए हैं।

प्रश्न 9. पुस्तक समीक्षा और आलोचना में अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर समीक्षा और आलोचना को आम तौर पर एक समझ लिया जाता है। लेकिन यहाँ हम इन्हें दो भिन्न अर्थों में प्रयुक्त कर रहे हैं। BHDG 173 Free Assignment In Hindi

समीक्षा, जिसे अंग्रेजी में रिव्यू (Review) कहा जाता है, और प्रयोग पुस्तक समीक्षा (Book review) के अर्थ में किया गया है जबकि आलोचना (criticism) अधिक व्यापक अर्थ वाला शब्द है। वस्तुतः समीक्षा आलोचना विधा की एक शाखा या उपशाखा है। समीक्षा का तात्पर्य पुस्तक समीक्षा से है।

निश्चित रूप से वह आलोचना के दायरे में आती है पर आलोचना के दायरे में और भी बहुत कुछ आता है, जैसे किसी विधा, लेखक, आदि का मूल्यांकन । पुस्तक समीक्षा में पुस्तक केन्द्र में होती है और आलोचना में विधा, लेखक और प्रवृत्ति भी केन्द्र में हो सकती हैं।

लेकिन ऐसा नहीं है कि पुस्तक समीक्षा में विधा, लेखक और प्रवृत्ति की चर्चा नहीं होती या आलोचना में किसी पुस्तक की चर्चा नहीं होती, होती है पर संदर्भ के रूप में किसी पुस्तक पर समीक्षा लिखते समय समीक्षक उस धारा या प्रवृत्ति और उस क्षेत्र के समकालीन लेखकीय रूझान की चर्चा करता है या कर सकता है, पर चर्चा के केन्द्र में वह पुस्तक ही रहेगी।

इसी प्रकार किसी विषय विशेष पर विचार करते समय आलोचक विभिन्न पुस्तकों का संर्दभ के तौर पर उल्लेख कर सकता है, उन पर अपनी राय व्यक्त कर सकता है, पर केन्द्र में वह विषय विशेष ही रहेगा न कि कोई पुस्तक। मसलन, अगर कोई लेखक भी, साहनी के उपन्यास ‘मय्यादास की माड़ी’ का विश्लेषण करता है,

तो यह पुस्तक.. समीक्षा का उदाहरण होगा, और कोई साहित्यकार भीष्म साहनी के उपन्यास शिल्प का विश्लेषण करता है और इसके लिए वह संदर्भ के तौर पर तमस’ और ‘मय्यादास की माड़ी’ का उपयोग करता है तो वह आलोचना का उदाहरण होगा।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

कभी-कभी पुस्तक समीक्षा आलोचना के दायरे में प्रवेश कर जाती है। जब पुस्तक समीक्षक पुस्तक के बहाने उस लेखक के संपूर्ण लेखन या पुस्तक के विषय को आधार बनाकर एक स्वतंत्र लेख लिख दे।

उदाहरण के लिए जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक ‘भारत की खोज के प्रसिद्ध इतिहासविद् दामोदर धर्मानंद कोसंबी द्वारा लिखित समीक्षा को सिर्फ पुस्तक समीक्षा नहीं कहा जा सकता। वह एक स्वंतत्र लेख की तरह महत्वपूर्ण है।

इस प्रकार के आलोचनात्मक मूल्यांकन के माध्यम से लेखक पुस्तक समीक्षा करते हुए कुछ ऐसी महत्वपूर्ण स्थापनाएँ कर जाता है जो पुस्तक से अलग भी अपना महत्व रखती हैं।

साहित्यिक विषयों पर लिखी गयी समीक्षाओं में भी इसकी संभावना रहती है कि समीक्षक पुस्तक के बहाने रचनाकार के संपूर्ण लेखन या किसी खास प्रवृत्ति या उसकी भाषिक और शैलीगत विशेषताओं का ऐसा मूल्यांकन प्रस्तुत करें जो उस ‘समीक्षा’ को आलोचना के दायरे में पहुँचा दे।

अब तक आप एक बात समझ गये होगें कि आलोचना का क्षेत्र समीक्षा से व्यापक होता है।

यहाँ व्यापकता का अर्थ क्षेत्र विस्तार से नहीं, बल्कि विश्लेषण की व्यापकता से है। समीक्षा का दायरा छोटा होता हैं, उसमें विश्लेषण किसी पुस्तक तक सीमित रहता है।

यह विश्लेषण ही समीक्षा और आलोचना को एक दूसरे से जोड़ता है। दोनों में शोध-प्रवृत्ति भी होती है। किसी पुस्तक की समीक्षा करते समय समीक्षक तथ्यों की गहरी छानबीन करता है। आलोचना में खोजबीन का यह दायरा और भी बड़ा और मूल्य-आधारित हो जाता है।

प्रश्न 10. सिनेमा पर लेखन की विशेषताओं को रेखांकित कीजिए।

उत्तर फिल्म समीक्षा के दौरान जिन दो बिंदुओं पर खास ‘फोकस’ की जरूरत है, वह हैपठनीयता और विश्लेषण। यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि बीते कई वर्षों में सिनेमा पर आलोचनात्मक लेखन अपनी सीमाएं पार करता हुआ राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र और मनोवविज्ञान के क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है।

इस दिशा में काफी गंभीर प्रयास हो चुके हैं और सिनेमा पर विभिन्न दृष्टिकोणों से तैयार कई महत्वपूर्ण किताबें भी सामने आ चुकी हैं।BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

इस किस्म के तमाम आलोचनात्मक प्रयासों से अवगत हो पाना तो संभव नहीं है, मगर सिनेमा में दिलचस्पी रखने वाले समीक्षक के लिए बेहतर होगा कि वह सिनेमा लेखन के गंभीर और अकादमिक पक्ष की भी थोड़ी-बहुत (समझ विकसित कर सके।

सिनेमा पर समीक्षात्मक लेखन सबसे पहले इस विधा के सामाजिक सरोकारों की बात करता है। कला या नाटक के मुकाबले सिनेमा की पहुँच कहीं ज्यादा व्यापक है।

नाट्य प्रस्तुति एक बार में कुछ सौ या हजार दर्शकों तक पहुंचती है। आर्ट गैलरी लगने वाली कला प्रदर्शनियों का आस्वाद लेने वालों की संख्या भी सीमित होती है. साथ ही इन दोनों विधाओं के दर्शक एक विशिष्ट रुचि और खास वर्ग के होते हैं।

सिनेगा एक साथ लाखों लोगों को और हर उन या वर्ग के लोगों को प्रभावित करता है। इतना ही नहीं भूमंडलीकरण के दौर में सिनेमा सीमाओं के पार भी अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहा है।

सिनेमा को हम उसके कथानक में निहित राजनीतिक ‘अंतर्धाराओं तथा सामाजिक मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में समझ सकते हैं।

हम यह भी देख सकते हैं कि किसी फिल्म में प्रस्तुत चरित्र, वातावरण और कथानक दर्शकों पर क्या प्रभाव डालता है और उनके लिए किस ‘अर्थ’ का सृजन करता है।

उदाहरण के लिए, गोविंद निहालानी की ‘आक्रोश’, ‘अर्धसत्य’, ‘तमस’ और ‘देव’ जैसी फिल्में तीखे राजनीतिक तेवर वाले यथार्थवादी सिनेमा का उदाहरण हैं।

विमल राय की ‘सुजाता’ और ‘दो बीघा जमीन तथा वी.शांताराम की दुनिया न माने सामाजिक विडंबनाओं को सामने रखने वाली फिल्में हैं। BHDG 173 Free Solved Assignment In Hindi

राजकपूर की ‘आवारा’, ‘श्री चार सौ बीस’ और ‘जागते रहो’ रूमानी समाजवादी आशाओं से भरी फिल्में थीं। वहीं गुरुदत्त की ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’ तथा ‘साहब, बीबी और गुलाम मोहभंग और निराशा के दौर को चित्रित करती हैं।

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