BHDC 110
BHDC 110 Free Solved Assignment
BHDC 110 Free Solved Assignment jan 2022
भाग-क
प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
चंपा! मैं ईश्वर को नहीं मानता, मैं पाप को नहीं मानता, मैं दया को नहीं समझ सकता, मैं उस लोक में विश्वास नहीं करता।…….213 कामना की हँसी खिखिलाने लगी; पर मैं न हँस सका!
उत्तर आकाशदीप कहानी छायावादी कवि एवं आधुनिक कहानीकार जयशंकर प्रसाद की सर्वाधिक चर्चित कहानी रही है। इसमें कहानीकार ने बड़ी ही सजगता के साथ इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य बिठाया है।
प्रेम और कर्तव्य के अन्तद्वन्द्व को लेकर लिखी गयी यह कहानी कर्तव्य-भावना का समर्थन करती है। बुद्धगुप्त चम्पा से परिणय करना चाहता है। वह स्तंभ पर दीप जलाती है।
समुद्र-जल में चमकती दीपों की रोशनी में वह खो जाती है तो अचानक बुद्धगुप्त आकर चम्पा से दीपों के प्रति आकर्षण का कारण जानना चाहता है तो वह बताती है कि ये दीपक किसी के आगमन की आशा लिए रहते है। जब मेरे पिता भी समुद्र में जाया करते थे,
इस तरह आकाशदीप कहानी की कथावस्तु काल्पनिकता का सहारा लिए हुए है, फिर भी उसमें जिस प्रकार हृदय-परिवर्तन दिखाया गया है, वह निश्चित ही सफल कहानी की ओर संकेत करता है। बुधगुप्त ने चम्पा के पैर पकड़ लिये।
उच्छवसित शब्दों में वह कहने लगा-चम्पा, हम लोग जन्मभूमिभारतवर्ष से कितनी दूर इन निरीह प्राणियों में इन्द्र और शची के समान पूजित हैं। पर न जाने कौन अभिशाप हम लोगों को अभी तक अलग किये है।
स्मरण होता है वह दार्शनिकों का देश! वह महिमा की प्रतिमा! मुझे वह स्मृति नित्य आकर्षित करती है; परन्तु मैं क्यों नहीं जाता? जानती हो, इतना महत्त्व प्राप्त करने पर भी मैं कंगाल हूँ! मेरा पत्थर-सा हृदय एक दिन सहसा तुम्हारे स्पर्श से चन्द्रकान्तमणि की तरह द्रवित हुआ।
“चलोगी चम्पा? पोतवाहिनी पर असंख्य धनराशि लाद कर राजरानी-सी जन्मभूमि के अंक में? आज हमारा परिणय हो, कल ही हम लोग भारत के लिए प्रस्थान करें।
महानाविक बुधगुप्त की आज्ञा सिन्धु की लहरें मानती हैं। वे स्वयं उस पोत-पुञ्ज को दक्षिण पवन के समान भारत में पहुँचा देंगी। आह चम्पा चलो।”BHDC 110 Free Solved Assignment
चम्पा ने उसके हाथ पकड़ लिये। किसी आकस्मिक झटके ने एक पलभर के लिए दोनों के अधरों को मिला दिया। सहसा चैतन्य होकर चम्पा ने कहा-“बुधगुप्त! मेरे लिए सब भूमि मिट्टी है; सब जल तरत्न है; सब पवन शीतल है। कोई विशेष आकांक्षा हृदय में अग्नि के समान प्रज्वलित नहीं।
सब मिलाकर एक शून्य है। प्रिय नाविक! तुम स्वदेश लौट जाओ, विभवों का सुख भोगने के लिए, और मुझे, छोड़ दो इन निरीह भोले-भाले प्राणियों के दुःख की सहानुभूति और सेवा के लिए।”
“तब मैं अवश्य चला जाऊँगा, चम्पा! यहाँ रहकर मैं अपने हृदय पर अधिकार रख सकूँ-इसमें सन्देह है। आह! उन लहरों में मेरा विनाश हो जाय।”- महानाविक के उच्छ्वास में विकलता थी।
फिर उसने पूछा”तुम अकेली यहाँ क्या करोगी?” “पहले विचार था कि कभी-कभी इस दीप-स्तम्भ पर से आलोक जला कर अपने पिता की समाधि का इस जल से अन्वेषण करूँगी। किन्तु देखती हूँ, मुझे भी इसी में जलना होगा, जैसे आकाश-दीप।” ..
उद्देश्य – प्रसाद की कहानी आकाशदीप ही नहीं, कोई भी कला या रचना निरुद्देश्य नहीं होती। इस कहानी में उद्देश्य को स्पष्ट रूप से उजागर किया गया है। BHDC 110 Free Solved Assignment
इसका उद्देश्य है- मानव के भीतर विश्वास की भावना जगाना, बिना सोचे समझे किसी से घृणा न करने, गरीब असहायों की सेवा करने जैसी भावनाओं को जगाना।
चम्पा के आचरण द्वारा बुद्धगुप्त के हृदय में दस्यु-वृति का त्याग करवाकर लेखक ने अपने उद्देश्य को दर्शाते हुए कहानी के अंत में कर्तव्य के सम्मुख प्रेम की बलि चढ़ाव दी है।
इससे पता चलता है कि ‘आकाशदीप’ कहानी अपने उद्देश्य का पोषण करने में सक्षम रही है। कर्तव्य की भावना को पुष्ट करना ही इसका प्रमुख उद्देश्य रहा है। ..
भाषा-शैली – ‘आकाशदीप’ कहानी की भाषा पर कवि प्रसाद के कवि-हृदय का पर्याप्त प्रभाव रहा है। खड़ी-बोली का सहज! सरल एवं प्रांजल रूप इसमें साकार हो उठा है। तत्सम शब्दों की प्रचुरता कहानी को शिष्ट भाषा का आयाम प्रदान करती चली गयी है।
कहीं-कहीं इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग अस्वाभाविक-सा लगता है, परन्तु भावों की गति ने उसे अनुभव नहीं होने दिया है।

प्रश्न 2. बाबा भारती और खड़गसिंह अस्तबल में पहुंचे। बाबा ने घोड़ा दिखाया घमंड से, खड़गसिंह ने देखा आश्चर्य से। उसने सैकड़ों। …. बालकों की-सी अधीरता से बोला, “परन्तु बाबाजी, इसकी चाल न देखी तो क्या?” ।
उत्तर- सुदर्शन की हार की जीत’ काफी प्रभावपूर्ण कहानी है। इसका सार इस प्रकार है बाबा भारती का घोड़े से लगाव-जिस प्रकार माँ को अपने बेटे को देखकर आनन्द मिलता है,
उसी प्रकार बाबा भारती को अपने सुलतान घोड़े को देखकर मिलता था। हार की जीत’ कहानी के कथनानुसार बाबा भारती वैरागी तपस्वी थे, BHDC 110 Free Solved Assignment
परन्तु अपने घोड़े सुलतान के प्रति उनका मन असीम प्रेम से भरा था। वे भगवद्भजन से बचे समय में अपने घोड़े का पालन-पोषण करते थे। उन्हें वह घोड़ा अत्यन्त प्रिय था ।
सच्चा प्रेमी अपने प्यार को भी इतना न चाहता होगा ऐसा स्नेह उनका अपने घोड़े के प्रति था। साथ ही वे गरीबों एवं असहायों के प्रति पूरी सहानुभूति रखते थे।
डाकू खड्गसिंह द्वारा घोड़ा छीन लेने पर उन्हें अपनी हानि की चिन्ता न होकर मनुष्यता की हानि की चिन्ता हो रही थी। पहले तो डाकू खड्गसिंह यह सोचता था कि ऐसा घोड़ा खड्गसिंह के पास होना चाहिए था,
इस साधु को ऐसी चीजों से क्या लाभ? बाबा भारती को सुलतान नाम का घोड़ा अनेक विशेषताओं से युक्त डाकू उसे हर स्थिति में प्राप्त करना चाहता था।
दूसरों की चीज छीनने में उसे कोई दुःख या संकोच नहीं था। एक अपाहिज व्यक्ति का वेश बनाकर उसने धोखा देकर बाबा भारती से घोड़ा छीन लिया था। BHDC 110 Free Solved Assignment
बाबा भारती ने घोड़ा छीनकर भागते हुए डाकू से कहा था कि यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका, मैं तुमसे वापस करने के लिए न कहूँगा।
उन्होंने क्रोध व्यक्त न कर डाकू से प्रार्थना की थी कि तुम इस घटना को किसी के सामने प्रकट मत करना कारण यह है कि लोगों को यदि इस घटना का पता लग गया, तो वे किसी गरीब पर विश्वास न करेंगे।
घोड़ा डाकू के पास पहुँच जाने पर बाबा ने घोड़े की ओर से इस तरह मुँह मोड़ लिया था जैसे उनका उससे कभी कोई सम्बन्ध न था।
बाबा के ये विचार सुनकर डाकू सोचने लगा कि ऐसा मनुष्य नहीं देवता है। डाकू खड्गसिंह ने धोखे से बाबा भारती से उनका प्रिय घोड़ा छीन लिया था।
जब घोड़ा बाबा के पास था तब वे उसकी बहुत सेवा करते थे। वे रात को लाठी लेकर उसका पहरा भी देते थे, किन्तु घोड़े के चले जाने से हुई हानि के कारण अब उन्हें और कोई हानि होने की चिन्ता नहीं थी।
घोड़ा चोरी होने की चिन्ता भी अब समाप्त हो गयी थी। घोड़े के अलावा हानि या चोरी हो जाने योग्य अन्य कोई कीमती वस्तु अब उनके पास नहीं थी। इस कारण उन्होंने पहरा देना भी छोड़ दिया। था और अब बेपरवाह रहने लगे थे। BHDC 110 Free Solved Assignment
‘हार की जीत’ कहानी का उद्देश्य यह बतलाना है कि यदि स्वार्थ की चिन्ता नं करके परहित या मान कल्याण के भाव से आचरण किया जावे, तो दुष्ट व्यक्ति में भी मानवता की भावना उत्पन्न हो सकती है।
बाबा भारती ‘हार की जीत’ कहानी के प्रमुख पात्र हैं। उनके चरित्र की निम्न विशेषताएँ प्रमुखता से व्यक्त हुई हैं। श्रेष्ठ भक्त-बाबा भारती भगवद्-भंजन करते थे। वे बाबा या साधु थे, इसलिए भजन ही उनका मुख्य काम था।
प्रश्न 3. मुंशी जी के निबटने के पश्चात सिद्धेश्वरी उनकी जूठी थाली लेकर चौके की जमीन पर बैठ गई। बटलोई की दाल को कटोरे में उड़ेल दिया, पर यह पूरा भरा नहीं।
उत्तर छिपुली में थोड़ी-सी चने की तरकारी बची थी, उसे पास खींच लिया। रोटियों की थाली को भी उसने पास खींच लिया। उ. केवल एक रोटी बची थी।
मोटी-भद्दी और जली उस रोटी को वह जूठी थाली में रखने जा रही कि अचानक उसका ध्यान ओसारे में सोए प्रमोद की ओर आकर्षित हो गया। उसने लड़के को कुछ देर तक एकटक देखा, फिर रोटी को दो बराबर टुकड़ों में विभाजित कर दिया। BHDC 110 Free Solved Assignment
एक टुकड़े को तो अलग रख दिया और दूसरे टुकड़े को अपनी जूठी थाली में रख लिया। तदुपरांत एक लोटा पानी लेकर खाने बैठ गई। उसने पहला ग्रास मुँह में रखा और तब न मालूम कहाँ से उसकी आँखों से टप-टप आँसू चूने लगे।
उत्तर अमरकान्त की कहानी ‘दोपहर का भोजन’ में निम्न मध्यवर्गीय परिवार की आर्थिक तंगी, भुखमरी, बेकारी का मार्मिक चित्रण किया है।
परिवार की स्थिति इतनी अधिक गरीब है कि सबके खाने के लिए पूरा भोजन भी नहीं है किन्तु सिद्धेश्वरी किसी प्रकार से सब को भोजन करा ही देती है और स्वयं आधी रोटी खाकर गुजारा करती है।
कहानी मुंशी चन्द्रिका प्रसाद के परिवार की है। उनकी उम पैंतालीस वर्ष के लगभग थी, किन्तु पचास-पचपन पा लगते थे। शरीर के चमड़े झूल रहे थे और गंजी खोपड़ी आईने की भाँति चमक रही थी।
डेढ़ महीने पूर्व मुंशी जी की मकान-किराया नियन्त्रण विभाग से क्लर्की से छंटनी हो गयी है। उनके परिवार में उनकी पत्नी सिद्धेश्वरी तथा तीन लड़के रामचन्द्र, मोहन और प्रमोद क्रमश: इक्कीस, अठारह और छ: वर्ष के थे।
रामचन्द्र समाचार-पत्र के कार्यालय में प्रूफ रीडिंग सीख रहा है तथा मोहन ने दसवीं की प्राइवेट परीक्षा देनी है। सिद्धेश्वरी दोपहर का खाना बनाकर सब की प्रतीक्षा कर रही है।
घर के दरवाजे पर खड़ी देखती है कि गर्मी में कोई कोई आता जाता दिखाई दे रहा है।
वह भीतर की ओर आती है, तो तभी उसका बड़ा बेटा रामचन्द घर में आता है। वह भय और आतंक से चुप एक तरफ बैठ जाती है। लिपे पुते आंगन में पड़े पीढ़े पर आकर रामचन्द बैठ जाता है।
वह उसे दो रोटियाँ दाल और चने की तरकारी खाने के लिए देती है। माँ के कहने पर भी और रोटी नहीं लेता क्योंकि वह जानता है कि अभी औरों ने भी खाना है। BHDC 110 Free Solved Assignment
मोहन को भी वह दो रोटी, दाल और तरकारी देती है और रोटी लेने से वह भी मना कर देता है पर दाल मांग कर पी लेता है।
आखिर में मुंशी जी आते हैं। उन्हें भी वह दो रोटी, दाल, चने की तरकारी देती है। जब और रोटी के लिए पूछती है तो वे घर की दशा से परिचित होने के कारण रोटी लेने से मना कर देते हैं किन्तु गुड़ का ठड़ा रस पीने के लिए मांगते हैं।
इस प्रकार सब को भोजन कराने के बाद वह स्वयं खाने बैठती है तो शेष एक मोटी, भद्दी और जली हुई रोटी बची होती है जिसमें से आधी प्रमोद के लिए बचा कर, आधा कटोरा दाल और बची हुई चने की तरकारी से अपना पेट भरने का प्रयास करती है।
घर में गरीबी इतनी है कि सब को भरपेट भोजन भी नसीब नहीं हो रहा। रामचन्द्र इण्टर पास है फिर भी उसे कहीं काम नहीं मिलता।
रामचन्द्र को खाना खिलाते सिद्धेश्वरी पूछती है, “वहाँ कुछ हुआ क्या?” रामचन्द्र भावहीन आँखो से माँ की ओर देखकर कहता है, “समय आने पर सब कुछ हो जाएगा।
जब रामचन्द्र मोहन के बारे में माँ से ए.. है तो मोहन दिन भर इधर-उधर गलियों में घूमता रहता है पर वह रामचन्द्र के सामने यही कहती है कि अपन किसी मित्र के घर पढ़ने गया हुआ है। “मुंशी चन्द्रिका प्रसाद के पास पहनने के लिए तार-तार बानियाइन है। BHDC 110 Free Solved Assignment
आँगन की अलगनी पर कई पैबन्द लगी गन्दी साड़ी टॅगी हुई हैं। दाल पनिऔला बनती है। प्रमोद अध-टूटे खटोले पर सोया है। वह हड्डियों का ढांचा मात्र रह गया है। मुंशी जी पैंतालीस के होते हुए भी पचास पचपन के लगते हैं।
सिद्धेश्वरी ने खाना बनाने के बाद चूल्हे को दिया और दोनों घुटनों के बीच सिर रखकर शायद पैर की अंगुलियों या जमीन पर चलते चींटे-चींटियों को देखने लगी। अचानक उसे मालूम हुआ कि बहुत देर से उसे प्यास लगी है।
वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लौटाभर पानी लेकर गटगट चढ़ा गयी। खाली पानी उसके कलेजे में लग गया और वह ‘हाय राम’ कहकर वहीं जमीन पर लेट गयी।
लगभग आधे घण्टे तक वहीं उसी तरह पड़ी रहने के बाद उसके जी में जी आया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ‘दोपहर का भोजन’ कहानी में अमरकान्त ने निम्न मध्यम वर्गीय जीवन की त्रासद स्थिति का जीवन्त निरूपण किया है।
परिवार का मुखिया बेरोजगार है फिर भी उसकी पत्नी खींचतान कर के घर का खर्चा चला रही है परन्तु खाना खाने के बाद मुंशी जी औंधे मुंह घोड़े बेचकर ऐसे सो रहे थे जैसे उन्हें काम तलाश में कहीं जाना ही नहीं है।
अभावों में जीने के कारण सिद्धेश्वरी चाहकर भी किसी से खुलकर नहीं बोल पाती। मुंशी जी भी चुपचाप दुबके हुए खाना खाते हैं।
इन सब से इस परिवार की घोर विपन्नता का ज्ञान होता है जो इस परिवार की ही नहीं जैसे निम्न मध्यम वर्गीय जीने वाले सभी परिवारों की त्रासदी है।
खंड-2
प्रश्न 4. हिंदी कहानी के विकास पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर- हिन्दी कहानी ने बहुत कम समय में एक श्रेष्ठ साहित्यिक विधा का रूप प्राप्त कर लिया। इसका प्रमुख कारण यह है कि आरंभ में ही कुछ महत्वपूर्ण रचनाकारों ने अपनी प्रतिभा से उसे (हिन्दी कहानी) प्रारंभिक दौर की लड़खड़ाहट और अनपढ़पन से मुक्त कर दिया।
चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की उसने कहा था कहानी की गणना हिन्दी की श्रेष्ठ कहानियों में होती है। यह कहानी सन् 1915 में प्रकाशित हुई थी। BHDC 110 Free Solved Assignment
(1) आरंभिक हिन्दी कहानी-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ‘इन्दुमती’ (किशोरीलाल गोस्वामी), ‘गुलबहार (किशोरीलाल गोस्वामी), ‘प्लेग की चुडैल’ (मास्टर भगवानदास), ‘ग्यारह वर्ष का समय’ (रामचन्द्र शुक्ल), ‘पंडित और पंडितानी’ (गिरजिादत्त वाजपेयी) और ‘दुलाई वाली’ (बंग महिला) को सामने रखकर हिन्दी की पहली मौलिक कहानी का निर्णय किया है।
ये कहानियाँ क्रमशः 1900 ई., 1902 ई., 1903 ई., और 1907 ई. में लिखी गई। इन पर विचार करते हुए शुक्ल जी ने लिखा है
‘इनमें यदि मार्मिकता की दृष्टि से भावप्रधान कहानियों को चुनें तो तीन मितली हैं-‘इन्दुमती’, ‘ग्यारह वर्ष का समय’ और ‘दुलाई वाली’। ‘इन्दुमती’ किसी बंगला कहानी की छाया नहीं है तो हिन्दी की यही पहली मौलिक कहानी ठहरती है।
इसके उपरान्त ‘ग्यारह वर्ष का समय’, फिर ‘दुलाई वाली’ का नम्बर आता है। आचार्य शुक्ल के बाद हिन्दी की पहली मौलिक कहानी को ढूँढने के क्रम में काफी अनुसंधान हुआ।
‘इन्दुमती’ को शेक्सपीयर के ‘टेम्पेस्ट’ की छाया कहकर विद्वानों ने उसे मौलिक कहानी के दायरे से बाहर कर दिया।
देवीप्रसाद वर्मा ने सन् 1901 में ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ में छपी माधव सप्रेस कहानी ‘एक टोकरी पर भट्टिी’ को हिन्दी की पहली मौलिक कहानी सिद्ध किया।
हिन्दी कहानी की विकास-यात्रा ‘सरस्वती’ पत्रिका के प्रकाशन के साथ ही शुरू हुई और वह उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर चलती गई।
इसी पत्रिका के माध्यम से किशोरीलाल गोस्वामी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, बंग महिला, वृन्दावन लाल वर्मा, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, विश्वम्भरनाथ शर्मा-कौशिक, प्रेमचन्द प्रभृति महत्वपूर्ण कहानीकार प्रकाश में आये।
गुलेरी जी की अमर कहानी ‘उसने कहा ) था’ सन् 1915 में और मुंशी प्रेमचन्द की ‘पंच परमेश्वर’ कहानी सन् 1916 में इसी पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। BHDC 110 Free Solved Assignment
‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित कुछ कहानियों और उसके पूर्व लिखी गई कहानियों को ‘आरंभिक हिन्दी कहानी’, ‘प्राचीन हिन्दी कहानी’ या ‘प्रेमचन्द पूर्व हिन्दी कहानी’ की संज्ञा दी जा सकती है।
ऐसी कहानियों में भारतेन्दु के पूर्व लिखी गई ‘प्रेमसागर’ (लल्लू लाल), ‘नासिकेतोपाख्यान’ (सदल मिश्र), ‘रानी केतकी की कहानी’ (सैयद इंशा अल्ला खाँ) तथा ‘सरस्वती’ पत्रिका के आरंभिक दो वर्षों में प्रकाशित कहानियों को परिगणित किया जा सकता है।
(2) प्रेमचन्दयुगीन हिन्दी कहानी-प्रेमचन्द-युग का साहित्य प्रथम विश्व युद्ध के बाद का साहित्य यह युग भारतीय स्वाधीनता-संघर्ष का भी स्वर्ण-काल है।
इसी समय स्वाधीनता-संघर्ष का नेतृत्व महात्मा गांधी के हाथों में आया, जिनके सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विचारों और कार्यकलापों का गहरा प्रभाव उस समय लेखकों पर पड़ा।
आरंभ में प्रेमचन्द ने गांधी के प्रभावस्वरूप आदर्शवादी और सुधारवादी कहानियाँ लिखीं जिनमें देश-भक्ति के साथ-साथ आदर्श, नैतिकता, मर्यादा, मर्यादा, कर्तव्यपरायणता आदि का स्वर काफी ऊँचा है।
‘स्रोत’, ‘पंचपरमेश्वर’, ‘विचित्र होली’, ‘आहुति’, ‘जुलूस’, ‘सत्याग्रह’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, नमक का दारोगा’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘अलग्योझा’, आदि कहानियाँ प्रेमचन्द की उपर्यक्त कथा-प्रवृत्ति को समझने में सहायक हैं
प्रेमचन्द की तरह सामाजिक यथार्थ को केन्द्र में रखकर कहानी लिखने वालों में सुद विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’, भगवती प्रसाद वाजपेयी, ज्वालादत्त शर्मा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
कौशिक की ‘ताई’, ‘रक्षाबंधन’, ‘विधवा’, ‘इक्केवाला’, सुदर्शन की ‘हार की जीत’, ‘सूरदास’, ‘हेरफेर’, भगवती प्रसाद वाजपेयी की ‘निंदिया लागी’, मिठाई वाला’ आदि कहानियाँ उल्लेखनीय है
किन्तु इन कहानीकारों ने सामाजिक यथार्थ के चित्रण में न तो प्रेमचन्द जैसी सिद्धता हासिल कर सके और न ही उनकी जैसी व्यापक मानवीय संवेदना उभारने में सफलता प्राप्त की है, फिर भी इनकी कलात्मक उपलब्धि उल्लेखनीय है। BHDC 110 Free Solved Assignment
सुदर्शन की ‘हार की जीत’, कौशिक की ताई’, भगवती प्रसाद वाजपूयी की ‘निंदिया लागी’ जैसी कहानियों ने अपने मार्मिक संवेदना, मानव-हृदय की सच्ची अभिव्यक्ति और मनोवैज्ञानिक चित्रण के कारण पाठकों के हृदय पर अमिट छाप छोड़ी हैं।
‘सरस्वती’ पत्रिका के प्रकाशन के लगभग 9 वर्ष बाद जयशंकर प्रसाद की प्रेरणा से एक दूसरी पत्रिका प्रकाशित हुई–’इन्दु’।
‘प्रसाद’ जी की पहली कहानी ‘ग्राम’ इसी पत्रिका में छपी। इस पत्रिका के माध्यम से भी अनेक श्रेष्ठ कहानीकार प्रकाश में आये, जिनमें जी.पी. श्रीवास्तव और ।
राधिकारमण प्रसाद सिंह के नाम उल्लेखनीय है। ‘सरस्वती’ और ‘इन्दु’ पत्रिकाओं ने हिन्दी कहा .. के विकास में पर्याप्त योग दिया बल्कि कहना चाहिए कि यदि इनका सहयोग न मिला होता तो आज शायद हिन्दी कहानी की स्थिति कुछ और ही होती। BHDC 110 Free Solved Assignment
जिस तरह प्रेमचन्द की समाजपरक यथार्थवादी धारा में अनेक कहानीकारों ने रचनात्मक योगदान किया, उसी तरह प्रसाद की भाववादी धारा को भी चंडीप्रसाद ‘हृदयेश’, रामकृष्ण दास, वाचस्पति पाठक, मोहनलाल महतो, विनोदशंकर व्यास, चतुरसेन शास्त्री ने अपनी कहानियों से गति प्रदान की।
इन कहानीकारों ने ‘प्रसाद’ जैसी भावप्रधान कहानियों की रचना की, आदर्श और रोमांस की आवेगमयी अभिव्यक्ति की, किन्तु ये प्रसाद की काव्यात्मक ऊँचाई, दार्शनिक गूढ़ता और भाषा की प्रांजलता का पूरा-पूरा निर्वाह न कर सके।
प्रेमचन्दोत्तर हिन्दी कहानी-यशपाल प्रेमचन्द के सामाजिक यथार्थ को मार्क्सवादी दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने वाल उल्लेखनीय कहानीकार हैं।
उन्होंने सामाजिक शोषण, दरिद्रता, नग्नता, अत्याचार, उत्पीड़न आदि को अपी कहानियों का विषय बनाया और हमारे सामाजिक, राजनीतिक,नैतिक एवं सांस्कृतिक जीवन के संघर्षों, मूल्यों, मर्यादाओं एवं नैतिकता के खोखलेपन को उद्घाटित किया।
उन्होंने ‘कर्मफल’, ‘फूल की चोरी’, ‘चार आने’, ‘पुनियाँ की होली’, ‘आदमी का बच्चा’, ‘परदा’, ‘फूलों का कुर्ता’, ‘धर्मरक्षा’, ‘करवा का व्रत’, ‘पतिव्रता’ आदि कहानियों में आर्थिक एवं सामाजिक विषमता के दोषों, तज्जनित परिणामों और कुरीतियों की मार्मिक अभिव्यक्ति की।
यशपाल ने मर्यादा, धर्म और नैतिकता के थोथेपन पर तीव्र आघात किया और उसके विरुद्ध अपने पात्रों में संघर्ष-चेतना जाग्रत की। BHDC 110 Free Solved Assignment
उनकी कहानियों में व्यंग्य का स्वर मुखरित हुआ, कहानी-कला में स्थूल समाज-चित्रण के स्थान पर उसेक मार्मिक एवं सांकेतिक उद्घाटन की कला का विकास हुआ, कहानी का स्थलूता समाप्त हुई और उसे सूक्ष्म संगठित व्यक्तिवाद प्राप्त हुआ।
यशपाल की इस मार्क्सवादी यथार्थवादी कलादृष्टि को प्रश्रय देने वाले कहानीकारों में रांगेय राघव, भैरवप्रसाद गुप्त, नागार्जुन आदि के नाम उल्लेखनीय हैं,
जिन्होंने शोषण, अन्याय और पूँजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष-भाव को प्रेरित करने वाली कहानियाँ लिखीं।
रांगेय राघव ने राष्ट्रीय स्वाधीनता-संघर्ष, बंगाल का अकाल, देश-विभाजन, साम्प्रदायिक विद्वेष, मजदूरों की देशव्यापी हड़तालों, गोलीकांड, बेरोजगारी और भुखमरी आदि को विषय बनाकर जो कहानियाँ लिखीं, वे उनकी सामाजिक-राजनीतिक जागरूकता का पता देती हैं।
उनकी उल्लेखनीय कहानियों में ‘गदल’, ‘पंच परमेश्वर’, ‘मृगतृष्णा’, कुत्ते की दुम शैतान’ का नाम लिया जा सकता हैं। BHDC 110 Free Solved Assignment
जैनेन्द्र भी मनोवैज्ञानिक सत्य को उद्घाटित करने वाले कहानीकार हैं किन्तु उनकी दृष्टि सिद्धांतबद्ध और संकुचित नहीं हैं। उन्होंने व्यावहारिक मनोविज्ञान का सहारा लिया है, मनोवैज्ञानिक युक्तियों का नहीं।
‘पत्नी’, पाजेब’, ‘जाह्नवी’, ‘ग्रामोफोन का रिकार्ड’, ‘एक गौ’ जैसे कहानियों में केवल मनोवैज्ञानिक युक्तियाँ नहीं हैं बल्कि उनमें गहरी मानवीय संवेदना और वास्तविकता भी है। जैनेन्द्र का मनोवैज्ञानिक चित्रण स्वस्थ एवं स्वच्छ है,
उसमें विश्वसनीयता और आत्मीयता है वे हिन्दी के पहले ऐसे कहानीकार हैं जिसने हिन्दी कहानी को घटना-वर्णन के घेरे से निकालकर पूरी तरह चरित्र-प्रधान बनाया।
जैनेन्द्र ने मनोवैज्ञानिक वास्तविकताओं का चित्रण करते हुए समाज की कुरीतियों और कुसंस्कारों से लड़ने के लिए विद्रोह-भाव भी पैदा किया।
प्रश्न 5. ‘परिन्दे’ कहानी के संरचना-शिल्प पर प्रकाश डालिए।
उत्तर‘परिंदे’ निर्मल वर्मा की सशक्त कहानियों में से एक है। ‘परिन्दे’ कहानी-संग्रह की यह अंतिम कहानी है और इसका शीर्षक प्रतीकात्मक है, जिससे आधुनिक मानव की नियति को पकड़ने की कोशिश किया गया है।
जहाँ सभी मनुष्य किसी-नकिसी के लिए प्रतीक्षित हैं। कहानी की नायिका लतिका इस कहानी का केन्द्र बिन्दु है। वह एक पहाड़ी स्कूल में वार्डन है ।
वह कुमाऊँ के कॉन्वेन्ट स्कूल में शिक्षिका भी है। मिस्टर ह्यूबर्ट, डॉ. मुकर्जी और मिस वुड आदि उसके साथ उस स्कूल में शिक्षक हैं। कहानी में उस समय का ज़िक्र है,
जब सर्दी की छुट्टियाँ होने वाली हैं और होस्टल खाली होने का समय आ गया है। पिछले दो-तीन सालों से मिस लतिका होस्टल में ही रह रही हैं और डाक्टर मुकर्जी छुट्टियों में कहीं नहीं जाते, डाक्टर तो सर्दी-गर्मी में भी यहीं रहते हैं।BHDC 110 Free Solved Assignment
परिंदे मूलतः प्रेम कहानी है, कहानी में प्रेम के प्रति जितना तीब्र सम्मोहन है उतना ही उस सम्मोहन से मुक्ति होने की अकुलाहट भी। ‘परिंदे’ कहानी में निर्मल की मनोवैज्ञानिक सूझ-बूझ भी काफी उभर कर सामने आई है।
कहानी की नायिका लतिका अपने प्रेमी- कैप्टन नेगी की मृत्यु के बाद एक पहाड़ी स्कूल में अकेलेपन की जिंदगी गुजार रही है।
अप सहकर्मी डॉ. मुकर्जी के काफी प्रेरित करने पर भी वह दूसरा संबंध नहीं बना पाती, अपनी स्थिति से निकल नहीं पाती। लतिका ही नहीं मि. [बर्ट, मुकर्जी आदि सभी पात्रों की अपनी एक व्यक्तिगत परिस्थिति है, जिसका समाधान सभी चाहते हैं, लेकिन न ढूँढ़ पाने के कारण एब्सर्ड के शिकार हैं।
सभी का जीवन एक ही प्रश्न का उत्तर खोज रहा है- ‘हम कहाँ जाएँगे?’ यही वह प्रश्न है जो कहानी के केंद्र में शुरू से अंत तक बना हुआ है और बिना किसी प्रत्यक्ष या ठोस समाधान के बना ही रह जाता है। अगर कहानी के पात्रो पर गौर करें तो लतिका, डॉ मुकर्जी सभी अपना दर्द लिए जीते है।
ऊपर से हंसने की असफल कोशिश करने वाले और अन्दर ही अन्दर रोते हुए चेहरों पर आने वाली बारीक से बारीक प्रतिक्रियाओं का प्रभाव समेटने का प्रयास काफी प्रभावशाली बन गया है।
उनके र्सवाद से पता चलता है कि वे अन्दर से उदास है तभी तो डॉ.मुकर्जी मिस बुड से कहते है- ” कहीं नहीं जमती, तो पिछे भी कुछ नहीं छूट पाता।”
फिर डॉ.मुखर्जी से कहते है- कभी-कभी तो मैं सोचता हूं कि इंसान जिंदा ही क्यों रहता है, क्या उसे इससे कोई बेहतर काम करने को नहीं मिला है?BHDC 110 Free Solved Assignment
अगर इस कहानी के वातावरण को ध्यान से समझे तो वातावरण का अंकल चित्रण काफी अच्छा हुआ है। पहाड़ी इलाका है, सर्दी की छुट्टियों में पत्तो की सायं-सायं करते आवाज हैं।
पिकनिक के लिए भूलादेवी के मंदिर का वर्णन है । पहाड़ी इलाका में वर्षा का क्या क्या ठिकाना कब वर्षा आ जाएगी । ‘बुरूस के फूला , चीड़ के पत्ते बहते नाले यह सब दृश्य प्रकृति की ओर मोड़ देते है।
जब मेघाच्छन्न आकाश में सरकते हुए बादलों के पीछे पहाड़ियों के झुण्ड कभी ऊपर आते थे, कभी छिप जाते थे।इस प्रकार पूरी कहानी में प्रकृति तथा वातावरण कफी रोचक दंग से किया गया है। इनकी भाषा इस कहानी में भावानुकूल है। कही भाषा चिन्तन प्रधान है, कहीं रूमानी।
परिन्दे कहानी, रूमानी बोध को चित्रित करती है उर्दू के शब्दो की, है कहीं-कहीं पूरे अंग्रेजी व्याकरण है। कुल मिलाकर अलंकृत भाषा है, मानवीय करण है, प्रतीक और बिम्ब है।
प्रवासी होने के कारण इनके कम्य शिल्प और भाषा में प्रवासीय प्रभाव स्पष्ट दिखलाई पड़ता है।
परिन्दे कहानी के माध्यम से निर्मल वर्मा से अपना उद्देश्य भी प्रकट किया है। प्रमी के मर जाने के बाट अतीत को याद कर लतिका पूरे संसार में स्वयं को मिसकिट पाती है निर्मल वर्मा की मान्यता है ।
अतीत का मोह व्यथ है मरे हुए के साथ मरना बेवकूफी है। शून्यता का अनुभव मनुष्य के जीवन में निराशा और अंधकार के सिवाय कुछ नहीं लाता अतः अतीत को जब तक हम विस्मृत नहीं करते हमें भविष्य में आगे कदम ठीक दंग से नहीं बढ़ा सकते है।BHDC 110 Free Solved Assignment
अतीत को याद जरूर किया जाए लेकिन अतीत के साथ ही चिपक कर रहना यह बेवकूफी है। अतीत को भूलाकर भविष्य की कामनाएं रची जाए गदी जाए यही संदेश हम पाते है।
प्रश्न 6. ‘तीसरी कसम’ कहानी की अंतर्वस्तु का विवेचन कीजिए। –
उत्तर- फणीश्वरनाथ रेणु तीसरी कसम कहानी के लेखक हैं। इसमें उन्होंने बिहार प्रांत के ग्रामीण जीवन को उभारने का सफल प्रयास किया है। तीसरी कसम कहानी सारांश इस प्रकार है।
यह कहानी हिंदी कथा साहित्य पाठ्यक्रम में पढ़ी जाती है। कहानी गांव के हीरामन गाड़ी वाले के जीवन को लक्ष्य करके लिखी गई है। हीरामन एक बार एक नौटंव में काम करने वाली नृत्यांगना हीराबाई को अपनी गाड़ी में अत्यधिक दूर ले जाता है।
मीराबाई गाड़ी में अकेली ही यात्रा करती है। उसका स्वरूप उसकी भाषा सब कुछ हीरामन को अच्छे लगते हैं। वहां हीराबाई की ओर आकर्षित और आसक्त हो जाता है।
हीराबाई भी हीरामन को पसंद करने लगती है। किसी अन्य कंपनी में हीराबाई नौकरी लग जाने के कारण वह गांव छोड़ कर चली जाती है। इस प्रकार हीरामन की दुनिया सूनी हो जाती है। आप तीसरी कसम कहानी सारांश पढ़ रहे हैं। BHDC 110 Free Solved Assignment
वह यह कह कर कलेजा थाम लेता है ‘अजी हां मारे गए गुलफाम’ ‘तीसरी कसम’, कहानी इस प्रकार है– हीरामन प्रायः 20 साल से गाड़ी हाकता है। वह संभवतः सीमा के उस पार सोरंगराज नेपाल से तस्करी ढोता रहता है।
यह करते हुए उसके दिल में थकान हो गया है। एक सीमा के इस पार तराई में उसकी गाड़ी पकड़ी गई थी, जब वह बड़ी गद्दी के बड़े मुनीम जी को कपड़े की गांठों के साथ ले जा रहा था। उस स उसने अपने बैलों के साथ अंधेरों में भाग कर अपनी जान बचाई थी।
एक बार उसने ?100 लेकर सर्कस कंपनी के बाघ ढोए थे किंतु आज हीरामन एक महिला को ले जा रहा। था। नाम है हीराबाई।
वह पहले मथुरा मोहन नौटंकी में काम करती थी किंतु उसको छोड़ कर वह रीता नौटंकी में काम करने के लिए फारबिसगंज जा रही है। उसने चंपा का इत्र अपने कपड़ों में लगा रखा है। चंपा की सुगंध हीरामन को पागल बनाए दे रही है।
आप तीसरी कसम कहानी सारांश पढ़ रहे हैं। हीरामन के मन में हलचल होती है और वह हीराबाई से बातें करता है। हीराबाई एक चालाक नारी की भांति उस को बढ़ावा देती रहती है। लेखक लिखता है कि हीराबाई ने परख लिया है कि हीरामन सच ही रहा है।
हीरा को वह घटना याद आ जाती है कि जब वह इसी प्रकार अपने भाभी को बंद गाड़ी में ला .. था। रास्ते में गांव की बोली ठिठोलो उसके कल्पना लोक में भेज देती है।
जब वह इसी प्रकार अपनी दूसरी दुल्हन को लेकर आएगा। उसकी पत्नी मर चुकी है। विवाह के थोड़े ही दिन बाद। आप तीसरी कसम कहानी सारांश पढ़ रहे हैं।BHDC 110 Free Solved Assignment
हीराबाई के प्रति हीरामन एक विचित्र लगाव पैदा हो जाता है। वह नहीं चाहता है कि अन्य कोई व्यक्ति हीराबाई को देखें अथवा हीराबाई से उसको बात करते समय उसको कोई देखे। कई गाड़ी वालों को आते जाते देखकर वह टप्पर का पर्दा डाल देता।
लेखक लिखता है कि हीरामन कजरी नदी के किनारे ठहर जाता है। वह हीराबाई को हाथ मुंह धोने के लिए भेज देता है। हीराबाई के स्वयं लौट कर आ जाने के बाद वह स्वयं नदी पार जाता है।
नहा धोकर बा पास के गांव में दही चूडा ले आता है। तब तक हीराबाई सो जाती है।
हीरामन हीराबाई को जगा कर कहता है, उठिए नींद तोड़िए दो मुट्ठी जलपान कर लीजिए।औपचारिकता के पश्चात दोनों व्यक्ति जलपान करते हैं।
हीराबाई गाड़ी में और हीरामन दरी बिछाकार एक पेड़ के नीचे सो जाते हैं। दिन ढलने के समय दोनों एक साथ जगते हैं। हीरामन गाड़ी चला देता है !
हीरामन प्रमुख सड़क छोड़कर कनकपुर वाली सड़क पर गाड़ी मोड़ देता है। यहां सड़क भी फारबिसगंज जाती है। आप तीसरी कसम कहानी सारांश पढ़ रहे हैं।
हीरामन को महआ घटवार इन की कथा याद आ जाती है और उसका रसिक स्वरूप मुखर हो उठता है। कथा के संदर्भ में वह दो-तीन गीत भी गाता है। हीराबाई उन गीतों को समझती है और उनका रस लेती है।
गीतों को गाते गाते हीरामन भाव विभोर हो जाता है। आप तीसरी कसम कहानी सारांश पढ़ रहे उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं। हीराबाई हीरामन के गाने द्वारा प्रभावित होती है और उसका अपना गुरु एवं उस्ताद मान लेती है।BHDC 110 Free Solved Assignment
हीरामन हीराबाई के लिए कानपुर पहुंच कर चाय ले आता है। वहां से चलकर रात के पहले पहर में वे लोग फारबिसगंज पहुंच जाते हैं। फारबिसगंज तो हीरामन हेतु घर की तरह है।
यहां उसके अन्य गाड़ीवान साथी मिल जाते हैं। हीराबाई सबके लिए कौतूहल एवं आकर्षक का विषय बन जाती है। साथ ही सब लोग हीरामन को लक्ष्य करके छींटाकशी भी करते हैं।
हीराबाई हीरामन को किराए भाड़े के 150 दे देती है। हीरामन को यह अच्छा नहीं लगता है। हीराबाई उसको अपनी स्थिति का एहसास करा देती है। हीरामन को मानो कोई आसमान से जमीन पर गिरा देता हो।
हीराबाई हीरामन को रीता कंपनी में जाकर उससे भेंट करने के लिए कहती है। हीराबाई नौटंकी के अठन्नी वाले 50 पैसे दे देती है। हीरामन अपने रुपयों वाली थैली हीराबाई को सौंप देता है।
आप हीरामन कहानी का सारांश पढ़ रहे हैं। नौटंकी प्रारंभ होती है हीराबाई पर लोग आवाजे करते हैं हीरामन के साथियों को विशेषकर पलट दास को यह बुरा लगता है। थोड़ी सी कहासुनी के पश्चात मारपीट होने लगती है।
पुलिस वाले अपना डंडा फटकारते हैं। नौटंकी का मैनेजर बीच में पकड़ कर पुलिस वालों को समझा देती है कि यह लोग हमारे आदमी हैं। मथुरा मोहन कंपनी के आदमी दंगा कराना चाहते थे।
वे लोग उन्हीं लोगों को ठीक कर रहे हैं। करीब 10 दिन तक नौटंकी चलती है 10 दिन और 10 रात ऐसे ही व्यतीत हो जाते हैं।BHDC 110 Free Solved Assignment
हीराबाई की सेवा करने में वह स्वयं को भाग्यशाली समझता है। कहानी का घटनाक्रम सर्वथा रोचक है। उसके प्रति पालक की उत्सुकता बरकरार बनी रहती है। विशेष रूप क्या है कि प्रत्येक घटना के साथ एक मनोवैज्ञानिक व्यक्तित्व जुड़ा रहता है।
कहानी का नाम सदैव सार्थक है हीराबाई को गाड़ी में बैठ कर उसने सहज भाव से एक नई दुनिया की कल्पना कर ली था उसने जो सपना देखा था वह झटके में टूट जाता है जब। हीराबाई उसको केवल दया का पात्र समझती है
वह तीसरी कसम खाता है कि वह कंपनी की औरत की व हनी कभी नहीं करेगा। दो कसमे वह एक अन्य (घटना के संदर्भ में पहले ही खा चुका था।
वह चोर बाजारी का माल कभी नहीं ला देगा तथा बांस की लदान किसी भाव नहीं करेगा चाहे कितनी भी मजदूरी क्यों ना दें। ।
प्रश्न 7. निम्नलिखित विषयों पर टिप्पणी लिखिए।
(क) अकहानी आन्दोलन
उत्तर- सन् 1950 के आस-पास ‘नयी कहानी’ नये मूल्यों, नये जीवन-बोध, नये शिल्प और नये अनुभव-संसार की प्रामाणिक अभिव्यक्ति करने का जो संकल्प लेकर चली,
वह सन् 1960 तक आते-आते पुराना पड़ गया और यह कहानी भी अपनी रूढ़ियों में फँसकर एक प्रकार से निस्तेज हो गयी।BHDC 110 Free Solved Assignment
इसका एक कारण यह भी था कि ‘नयी कहानी’ स्वतंत्रता-प्राप्ति के जिस नये वातावरण में नयी चुनौतियों के बीच पनपी थी, वे समाप्त हो गयी और देश तथा समाज अपनी असफलताओं, कमियों और असमर्थताओं का बुरी तरह शिकार हो गया।
स्वतंत्रता-प्राप्ति को लेकर उसके मन में जो सपने थे, वे सातवें दशक के आरंभिक वर्षों में ही चकनाचूर हो गये, पंचवर्षीय योजनाओं और पंचशील सिद्धातों का अपेक्षित फल नहीं मिला।
एक ‘, से जनता को ऐतिहासिक मोहभंग की पीड़ा झेलनी पड़ी। राजनीतिक उठा-पटक, दलबन्दी, नये-नये दला का निर्माण, दलों का टूटना-बिखरना, राजनीतिक आदर्शो-मर्यादाओं का छिन्न-भिन्न होना आदि जो राजनीति परिदृश्य सामने आया, उसने साहित्य-जगत् को भी प्रभावित किया।
इस सबके चलते सातवें दशक में हिन्दी कहानी में दो-तीन वर्षों के अंतराल पर और कभी-कभी समानान्तर छोटे-मोटे कहानी-आंदोलन शुरू हुए। इतना अवश्य है कि इन आंदोलनों के बीच से हिन्दी को कुछ अच्छे कहानीकार भी प्राप्त हुए।
(ख) हिंदी कहानी और दलित विमर्श
उत्तर- दलित साहित्यकारों ने हिन्दी में दलित साहित्य की विशेष स्थिति और आवश्यकता को रेखांकित करते हुए यह प्रतिपादित किया है कि दलितों के द्वारा दलितों के जीवन पर लिखा गया साहित्य दलित साहित्य है।
किसी गैर-दलित या सवर्ण द्वारा लिखे गए दलित संबंधी साहित्य को वे दलित साहित्य मानने के लिए तैयार नहीं हैं। उनकी दृष्टि में ऐसा साहित्य सहानुभूति या दया का साहित्य है, वह चाहे प्रेमचंद या निराला का ही दलित चेतना से जुड़ा हुआ साहित्य क्यों न हो।BHDC 110 Free Solved Assignment
मोहनदास नैमिशराय का मानना है कि दलित साहित्य दलितों का ही हो सकता है क्योंकि उन्होंने जो नारकीय उपेक्षापूर्ण जीवन भोगा है, वह कल्पना की चीज नहीं है।
वह उनका भोगा हुआ यथार्थ और जख्मी लोगों का दस्तावेज है। वह उनकी मुक्ति का संदेश है, वह चेतना का उगता हुआ सूरज है।
उसमें गुस्सा और नफरत अनुभूति-प्रेरित है। उसे कला के छल की जरूरत नहीं है। श्योराज सिंह बेचैन मानते हैं कि दलित साहित्य का संबंध कबीर, रैदास जैसे दलितों के साहित्य से भी नहीं है और न व्यास और वाल्मीकि के साहित्य से।
कबीर और रैदास उन्हें ईश्वर के सहारे छोड़ देते हैं और वाल्मीकि और व्यास तो ब्राह्मणवाद को ही मजबूत करते हैं। आज का दलित साहित्यकार अपने अनुभव से अपना रास्ता निकालने का हिमायती है, उसमें क्रोध, नफरत, नकार और आत्मपहचान का तत्व प्रमुख है।
वह इतिहास धारा में बहने के लिए नहीं, उसकी ज्यादतियों के विरुद्ध संघर्ष करने और उसे पलटने के लिए कटिबद्ध है। वह बाबा साहब अम्बेडकर और ज्योतिबा फुले का अनुयायी है।
दयानंद वटरोटी का कहनी संग्रह ‘सुरंग’, संजय खाती की कहानी ‘रोजगार’, ओमप्रकाश वाल्मीकि की कहानी ‘गोहत्या’, ‘अंधड़’ आदि को पढ़ने के बाद यह कहना पड़ता है कि एक तो हिन्दी में दलित कहानी अभी शैशवावस्था में है, BHDC 110 Free Solved Assignment
दूसरे सवर्ण लेखकों ने दलित चेतना की जो कहानियाँ लिखी हैं, वे भले ही उनका भोगा हुआ यथार्थ न हो, लेकिन दलित लेखक की कहानियों से ज्यादा मार्मिक और प्रभावशाली है।
अत: दलित चेतना की पड़ताल अधिक सार्थक एवं समीचीन है। हिन्दी में दलित चेतना से जुड़ी हुई मार्मिक कहानियों की एक सुदीर्घ परंपरा है। इस परंपरा के अग्रणी लेखक हैं-प्रेमचंद।
उनकी ‘सद्गति’, ‘ठाकुर का कुँआ’, ‘दूध का दाम’, ‘बाबा जी का भोग’, ‘सवा सेर गेहूँ’, और ‘कफन’ जैसी कहानियाँ आज भी सामाजिक विषमता, उत्पीड़न, शोषण और अमानवीय आचरण का जो रूप प्रस्तुत करती हैं, वह भोगे हुए यथार्थ के दलित लेखकों की कहानियों पर भारी पड़ता है।
उन्होंने वर्ण-विभक्त समाज में दीन-हीन दलितों का पक्ष लेकर अपनी जनचेतना और जनपक्षधरता का जो सहज स्वाभाविक परिचय दिया है, वह हिन्दी साहित्य की एक अमूल्य निधि और उनकी बेमिसाल साहित्य साधना का ठोस उदाहरण है।
प्रेमचंदोत्तर कहानीकारों ने भी दलित जीवन से संबंधित स्मरणीय कहानियाँ लिखी हैं, जैसे-‘हलयोग’ (मार्कण्डेय), ‘अकालदंड’ (शिवमूर्ति), ‘बराबरी का खेल’ (रमेश उपाध्याय), ‘बच्चे बड़े हो रहे हैं’ (मदन मोहन), ‘प्रतिहिंसा’ (मुद्राराक्षस), ‘बगल में बहता सच’ (महेश कटारे), “धनीराम’ (पुन्नीसिंह) आदि।
इन कहानियों में न केवल दलित जीवन की त्रासदी और संघर्ष-कथा चित्रित है बल्कि अन्याय, शोषण उत्पीड़न और संहार के प्रति सक्रिय विरोध और विद्रोह भी अंकित है।
उल्लेखनीय यह है कि यह सहानुभूति या दया का साहित्य नहीं है बल्कि यथार्थ का स्वीकार है और मानवता की दिशा में उठाया गया सही कदम है। इसे गैर-दलित का लेखन कहकर उपेक्षित नहीं किया जा सकता।
दलित साहित्यकारों के इस तर्क में दम है कि भोगे हुए यथार्थ की ही अभिव्यक्ति प्रामाणिक एवं विश्वसनीय होती है, किंतु इसके साथ यह भी सच है कि कोई वाल्मीकि की क्रौंच की मर्मान्तक पीड़ा को अपने हृदय में महसूस करके उसकी मार्मिक अभिव्यक्ति कर सकता है।
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